ओस्लो (Oslo)। साल दर साल प्रकृति (Nature) में आ रहे बदलाव के कारण पर्यावरण पर भीषण (harsh on the environment) असर पड़ा है। सैकड़ों वैश्विक चर्चाएं और कई प्रयासों के बाद भी पर्यावरण को नियंत्रित नहीं किया जा सका। नई जांच रिपोर्ट के अनुसार, अब आर्कटिक महासागर (Arctic Ocean) में गर्मियों वाली बर्फ 2030 तक विलुप्त हो जाएगी।
दक्षिण कोरिया के एक शोधकर्ता और लेखक सेउंग की मिन ने बताया कि पर्माफ्रॉस्ट को पिघलाकर यह ग्लोबल वार्मिंग को बढ़ा देगा। बर्फ के टुकड़े के पिघलने के कारण इससे ग्रीनहाउस गैस और समुद्री स्तर में बढ़ावा होगा। बता दें, अगर आर्कटिक महासागर एक मिलियन वर्ग किलोमीटर से कम बर्फ से घिरा है या पूरे महासागर में बर्फ सात प्रतिशत से कम है तो वैज्ञानिक इसे बर्फ मुक्त कहते हैं। फरवरी में अंटार्कटिका में समुद्री बर्फ 1.92 मिलियन वर्ग किलोमीटर तक गिर गई, जो अब तक के अपने सबसे निचले स्तर पर है। 1991-2020 के औसत से यह स्थिति लगभग एक मिलियन वर्ग किलोमीटर नीचे है।
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