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उज्जैन सरोकार बिंदास बोल… आओ हम सब मिलकर उज्जैन को सुंदर नहीं बल्कि सुविधाजनक बनाएँ

June 01, 2023

  • शहर को संभालने वाले फ्रीगंज पुल की रैलिंग नहीं बदल सकते, उसकी जर्जर हालत नहीं सुधार सकते वे फिर करोड़ों उलीचने के चक्कर में

(शैलेन्द्र कुल्मी)
उज्जैन महाकाल लोक का उद्घाटन हो गया..जमीनों के भाव बढ़ गये..हजारों लोग आने लगे, होटल वाले जो घाटे में थे उनकी लाटरी लग गई लेकिन सुविधा के नाम पर कुछ नहीं, केवल पैसों की लूट खसोट, सुविधा के दावे लेकिन परेशान होते महाकाल के भक्त..कहाँ गई विक्रम की नगरी की न्यायप्रियता.. सुना है राजा विक्रमादित्य रात में भेष बदलकर प्रजा का हाल जानने निकलते थे और यहाँ तो दीया तले अंधेरा हो रहा है और आँखों के सामने ही अफसरों को कुछ नहीं दिख रहा..!
यही हाल उज्जैन शहर के भी हैं, यहाँ के रहवासी भी बेहाल और परेशान है और किसी तरह असुविधाओं के बीच जीवन-यापन कर रहे हैं..कहने को तो यह शहर नेताओं का है और यहाँ पर सांसद, मंत्री तथा विधायक और अन्य खादी धारी नेताओ की भीड़ है लेकिन महाकाल लोक में जब भ्रष्टाचार हो रहा था और मूर्तियाँ लग रही थी तो कितनों ने विरोध किया और उसकी गुणवत्ता जाँची शायद एक ने भी नहीं..भाजपा-कांग्रेस के ढेर नेता केवल भाषण देते हैं और जनता को अच्छे दिन आने के सपने दिखाते हैं..उज्जैन शहर में यातायात के नाम केवल चक्काजाम, परेशानी, ट्रैफिक जाम और झंझट है..यातायात पुलिस कहीं दिखाई नहीं देती..इसी प्रकार उद्यानों की बात की जाए तो वे उजाड़ हैं और वहाँ सुबह-शाम लोग नहीं बल्कि कुत्ते तथा सूअर घूमते हैं..इसी प्रकार शहर की लाइटें बंद हैं..रात में कुत्ते पीछे पड़ते हैं..अस्पतालों में बिल्डिंग बना दी गई है लेकिन डॉक्टर नहीं है..इस स्मार्ट सिटी के नाम पर जो काम हुए वह भी दुखदाई रहे..बात महाकाल की की जाए तो महाकाल लोक में भीड़ बढऩे के बाद कमाने की हवस ऐसी लगी कि हम मानवता भूल गए हैं.. महाकाल के आसपास दो-दो कमरे के घर गेस्ट हाउस बन गए हैं, जिनका किराया 200 रुपये था वो 2000 लेने लगे, होटल वाले और लाज वाले 1 हजार कार्य ट्रिप लगाकर पाँच-पाँच हजार वसूलने लगे..भोजनालयों में भी यही हाल है..क्या खिला रहे हैं, कितना पैसा दे रहे हैं..कुछ पता नहीं..ई-रिक्शा और आटो रिक्शा वाले भी लूटने लगे..और तो और मंदिर में दर्शन कराने के नाम पर क्या बाहर के दुकानदार के स्टाफ के लोग और क्या पूजा पद्धति से जुड़े प्रतिनिधि..कोई भी पीछे नहीं रहा और सब अपना उल्लू सीधा करने में लग गए..आए दिन शिकायतें आ रही हैं कि भस्मारती दर्शन कराने के नाम पर पैसा दिया जा रहा है और फर्जीवाड़ा चल रहा है..विशेष अवसरों पर भीड़ बढ़ रही है तो कोहराम की स्थिति मच रही है..बाहर से आने वाले लोग कह रहे हैं कि यहाँ रहना बड़ा दुखदायी है..इसका कारण यह है कि जो जिम्मेदार बैठे हैं वे पैसा इसी जगह लगाना चाहते हैं जिसमें भ्रष्टाचार हो..उनका उद्देश्य सुख सुविधा देखना नहीं है बल्कि सुंदरता का ढिंढोरा पीटना है..हर जगह को सुंदर नहीं बनाना है बल्कि सुविधाजनक बनाना है..बाहर से दर्शनार्थी आता है तो वह सुकून से यहाँ बैठकर दर्शन कर सकें और परेशान न हो..भले ही उसे एक दिन यहाँ रूकना पड़ा है पर उसके साथ ठगी न हो..एक ओर महाकाल लोक तो बना दिया लेकिन ठहरने और पार्किंग की कोई व्यवस्था नहीं की..इसे क्या कहा जाए..कहा जा रहा है कि महाकाल के सवारी मार्ग को सुंदर बनाएँगे, उसमें करोड़ों रुपये लगाएँगे..धिक्कार है ऐसी सोच को, जब हम लोगों को रोजगार नहीं दे सकते, अच्छा निर्माण नहीं दे सकते, अच्छे शौचालय नहीं बना सकते तो बड़ी बात करने का कोई अर्थ नहीं.. तो ऐसी सुंदरता के क्या मायने हैं और यह सुंदरता हमने इस शहर में पहले भी देखी हुई है..किस तरह सुंदरता के नाम पर चौराहों पर लाल पत्थर लगाए गए और करोड़ों बहाए गए..आज उनका क्या हश्र हो रहा है..इसी तरह रामघाट पर पर्यटन विभाग ने लाल पत्थर लगाए थे..हमें कुछ समय बाद उखाडऩा पड़े..इसी तरह महाकाल क्षेत्र में इंटर प्रीटिशन सेंटर बनाया गया था जिसे तोडऩा पड़ा..करोड़ों रुपये खराब किये गये..आज जरूरी नहीं है कि उज्जैन में बड़ी-बड़ी सुविधाएँ लाई जाए, बल्कि मूलभूत सुविधाएँ इक_ा की जाए..तब यह शहर बाहर से आने वाले लोगों के लिए पसंदीदा बनेगा..नहीं तो धीरे-धीरे महाकाल लोक में आने वाली भीड़ बाहर से ही हाथ जोडऩा शुरू कर देगी और हम पहले की तरह निखट्टू और बेकारों की तरह बैठे रहेंगे..अवसर आया है गलत फायदा मत उठाओ.. महाकाल हमारे शहर में है इससे हमारी प्रतिष्ठा जुड़ी हुई है..सोने की मुर्गी मिली है तो उसे एक दिन में मत काटो..बल्कि रोज उसके अंडे लेकर अपने जीवन को संपन्न बनाओ और संतोष की लक्ष्मी का आशीर्वाद प्राप्त करो..जिस तरह ज्यादा भूखा आदमी अधिक खा लेता है कहीं ऐसी हालत हमारी न हो जाए..!

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