वाशिंगटन (Washington)। जब से अमेरिका (America) नया मुल्क बना है, तब से ही उस पर कर्जा बढ़ता जा रहा है। कोविड महामारी (covid pandemic) से पहले अमेरिका पर 22.7 ट्रिलियन डॉलर का कर्जा (22.7 trillion dollar debt) था, जो अब बढ़कर (increased) 31.46 ट्रिलियन डॉलर से ज्यादा (more than $ 31.46 trillion) हो गया है। यानी, तीन साल में ही ये कर्ज लगभग 10 ट्रिलियन डॉलर बढ़ गया है। अमेरिका अपनी कर्ज की सीमा को पार कर चुका है। हर अमेरिकी नागरिक (every american citizen) पर इस समय कुल करीब 94 हजार डॉलर का कर्ज (94 thousand dollar loan) है। अमेरिका हर दिन कर्ज पर ब्याज चुकाने में 1.3 अरब डॉलर खर्च कर रहा है। ये तीन आंकड़े अमेरिकी अर्थव्यवस्था की कहानी बयां करते हैं। अमेरिका डिफॉल्ट होने की कगार पर है।
इस समय अमेरिका पर कुल कर्ज बढ़कर 31.46 ट्रिलियन डॉलर हो गया है. भारतीय करंसी के हिसाब से ये कर्ज 260 लाख करोड़ रुपये (260 lakh crore rupees) होता है। अमेरिका के ट्रेजरी सेक्रेटरी जेनेट येलेन (Treasury Secretary Janet Yellen) ने चेताया है कि अगर सरकार ने कर्ज लेने की सीमा यानी डेट सीलिंग नहीं बढ़ाई तो 1 जून से नकदी का संकट खड़ा हो जाएगा।
डेट सीलिंग बढ़ाने के लिए अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन (US President Joe Biden) ने रिपब्लिकन नेता केविन मैक्कार्थी से बात भी की थी. लेकिन ये बातचीत बेनतीजा ही रही. डेट सीलिंग यानी कर्ज लेने की सीमा बढ़ाने के लिए बाइडेन सरकार के पास कुछ ही दिन बचे हैं।
दरअसल, अमेरिका में कर्ज लेने की एक सीमा तय है. इसे ही डेट सीलिंग कहा जाता है. और नया कर्ज लेने के लिए संसद से बिल पास कराना होगा. लेकिन दिक्कत ये है कि बाइडेन डेमोक्रेट हैं और जहां से बिल पास होगा, वहां रिपब्लिकन बहुमत में हैं. कुल मिलाकर बाइडेन सरकार को कुछ न कुछ हल निकालना होगा, वरना नए पेमेंट के लिए पैसा नहीं होगा. अगर ऐसा हुआ, तो तकनीकी तौर पर अमेरिका डिफॉल्ट या डिफॉल्ट माना जाएगाय़
कितना भारी है ये कर्ज?
– अगर हर अमेरिकी परिवार हर महीने एक हजार डॉलर का योगदान दे तो भी इस कर्ज को चुकने में 19 साल का वक्त लग जाएगा।
– चीन (19.37 ट्रिलियन डॉलर), जापान (4.41 ट्रिलियन डॉलर), जर्मनी (4.31 ट्रिलियन डॉलर) और यूके (3.16 ट्रिलियन डॉलर) की कुल जीडीपी से भी ज्यादा कर्ज अमेरिका पर है.
– इस समय भारत की जितनी जीडीपी है, उसका 10 गुना कर्ज अमेरिका पर है. आईएमएफ के मुताबिक, भारत की जीडीपी 3.7 ट्रिलियन डॉलर है.
– 31 ट्रिलियन डॉलर इतनी बड़ी रकम है कि अगले 73 साल तक हर अमेरिकी छात्र को चार साल का डिग्री कोर्स फ्री में कराया जा सकता है.
कैसे बढ़ता गया अमेरिका पर कर्ज?
जब से अमेरिका नया मुल्क बना है, तब से ही उस पर कर्जा बढ़ता रहा है. अमेरिका के ट्रेजरी डिपार्टमेंट के मुताबिक, 1 जनवरी 1791 को देश पर 7.5 करोड़ डॉलर का कर्ज था. अगले 45 साल यानी 1835 तक ये कर्ज बढ़ता चला गया। इसके बाद महामंदी ने कर्जा और बढ़ा दिया. 1860 में अमेरिका पर 6.5 करोड़ डॉलर का कर्ज था, जो सिविल वॉर के कारण 1863 में बढ़कर 1 अरब डॉलर के पार चला गया. 1865 में जब सिविल वॉर खत्म हुआ, तब तक उसपर 2.7 अरब डॉलर का कर्ज चढ़ चुका था।
20वीं सदी में अमेरिका पर भारी कर्ज बढ़ा. पहले विश्व युद्ध में अमेरिका ने 22 अरब डॉलर खर्च किए जिसने उसका कर्जा और बढ़ा दिया। इसके बाद अफगानिस्तान और इराक युद्ध, महामंदी और कोविड महामारी ने भी कर्जा बढ़ाया. 2019 से 2021 के बीच सरकार का खर्चा 50 फीसदी से ज्यादा बढ़ गया।
कैसे कर्जदार बना अमेरिका?
अमेरिकी सरकार के कमाई के स्रोत कम हैं और खर्चा बहुत जगह करना पड़ता है. अमेरिका ने जंग और महामंदी से निपटने में जो खर्चा किया, उसने उसका कर्जा और बढ़ा दिया। ब्राउन यूनिवर्सिटी की कॉस्ट ऑफ वॉर रिपोर्ट के मुताबिक, अमेरिका ने 20 साल में दूसरे देशों में सेना भेजने पर 8 ट्रिलियन डॉलर यानी 660 लाख करोड़ रुपये से ज्यादा खर्च कर दिए. यहां जंग लड़ने के लिए उसे कर्जा भी लेना पड़ा. इस कर्जे पर ब्याज चुकाने पर ही 82 लाख करोड़ रुपये से ज्यादा खर्च करने पड़े।
अमेरिका के कर्जदार बनने की एक वजह से इसकी बुजुर्ग होती आबादी भी है. अनुमान है कि हर दिन 10 हजार लोग 65 की उम्र पार कर रहे हैं. इसकी वजह से यहां सरकार को हेल्थकेयर पर अच्छा-खासा खर्चा करना पड़ता है. पूरी दुनिया में अमेरिका ही ऐसा है जो हेल्थकेयर पर सबसे ज्यादा खर्च करता है. हर अमेरिकी पर सरकार सालाना 12 हजार डॉलर से ज्यादा खर्च करती है।
तीसरी वजह यहां का टैक्स सिस्टम भी है. अमेरिकी सरकार को अपने नागरिकों से इतना टैक्स रेवेन्यू नहीं मिल पाता है, जिससे वो अपने खर्चे पूरे कर सके. खर्च और कमाई के इसी असंतुलन की वजह से उसका कर्ज हर साल बढ़ता जा रहा है।
इससे बचने का रास्ता क्या?
अमेरिका के ऊपरी सदन सीनेट में बाइडेन की पार्टी डेमोक्रेट के सांसदों की संख्या कम है. इसलिए बाइडेन विपक्षी सांसदों को मनाने की कोशिश कर रहे हैं। लेकिन विपक्षी रिपब्लिकन पार्टी खर्च में कटौती की जिद पर अड़ी है. पूर्व राष्ट्रपति और रिपब्लिकन नेता डोनाल्ड ट्रम्प ने अपने सांसदों को साफ कहा है कि जब तक सरकार खर्च में कटौती की बात न माने, तब तक कर्ज की सीमा बढ़ाने का समर्थन न करें।
अमेरिका में कर्ज लेने की सीमा 31.4 ट्रिलियन डॉलर है, जिसे वो पार कर चुका है. इसलिए अब उसे ये कर्ज की सीमा यानी डेट सीलिंग को बढ़ाना होगा. 1960 से लेकर अब तक 78 बार ये सीमा बढ़ चुकी है. आखिरी बार 2021 में ये सीमा बढ़ाई गई थी।
पिछले महीने रिपब्लिकन सांसदों ने एक मसौदा पेश किया था. इसमें प्रस्ताव था कि सरकार अगले एक दशक में खर्च में 4.8 ट्रिलियन डॉलर की कटौती करे. हालांकि, बाइडेन सरकार ने इसे खारिज कर दिया था. व्हाइट हाउस का कहना था कि इस समझौते को लागू करने से मध्यम और कामकाजी लोगों पर टैक्स का बोझ बढ़ जाएगा।
ये नहीं हुआ तो फिर?
सबसे बड़ी समस्या ये है कि समय कम बचा है. अमेरिका उन चंद मुल्कों में शामिल है जहां कर्ज की भी एक सीमा तय है. कर्ज की सीमा बढ़ाने के लिए जल्द से जल्द संसद से कानून पास करवाना होगा. अगर ऐसा नहीं हुआ तो 1 जून से सरकार के पास नकदी का संकट खड़ा हो जाएगा। अमेरिका के लिए ये खतरनाक आर्थिक चोट होगी. सरकार अपने कर्मचारियों और सेना के लोगों को सैलरी नहीं दे पाएगी. पेंशनर्स को भी उनकी पेंशन नहीं मिल सकेगी. सरकारी फंड पर चलने वाली कंपनियां और चैरिटी भी संकट में आ जाएंगी।
इतना ही नहीं, अगर सरकार अपने कर्ज पर ब्याज का भुगतान नहीं कर पाती है तो वो खुद-ब-खुद डिफॉल्ट हो जाएगी. 1979 में भी अमेरिका डिफॉल्ट हो गया था, लेकिन उस समय चेक प्रोसेसिंग को इसकी वजह माना गया था. हालांकि, अगर इस बार डिफॉल्ट होता है तो अमेरिका का पूरा फाइनेंशियल सिस्टम गड़बड़ा सकता है।
फिर क्या रास्ता है?
अगर डेट सीलिंग की बात नहीं बनती है तो भी बाइडेन सरकार के पास एक रास्ता बचता है. हालांकि, उसकी गुंजाइश काफी कम है। रिपब्लिकन सांसदों का साथ नहीं मिलने पर बाइडेन 14वें संविधान संशोधन को लागू कर सकते हैं. 1861 से 1865 तक चले सिविल वॉर के दौरान ये संशोधन किया गया था. ये संशोधन कहता है, ‘अमेरिका के कर्ज की वैधता पर सवाल नहीं उठाया जा सकता।’
हालांकि, इसी महीने बाइडेन ने कहा था कि फिलहाल इस संशोधन को लागू करने की तैयारी नहीं है. इस संशोधन को लागू करने के साथ लंबी कानूनी तकरार भी शुरू हो सकती है, क्योंकि इसे अदालत में चुनौती दी जा सकती है। ट्रेजरी सेक्रेटरी जेनेट येलेन ने भी कहा था कि अगर 14वां संविधान संशोधन लागू किया जाता है तो इससे संवैधानिक संकट खड़ा हो सकता है।
अमेरिका डिफॉल्ट हो गया तो…?
अमेरिका अगर डिफॉल्ट होता है तो इससे न सिर्फ उसकी अर्थव्यवस्था डूबेगी, बल्कि पूरी दुनिया पर इसका असर दिखेगा. अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) पहले ही इसे लेकर चेता चुका है। अमेरिका को सामान बेचने वाले देशों के ऑर्डर बंद हो जाएंगे. इन्वेस्टर्स को नुकसान होगा. और तो और अमेरिकी अर्थव्यवस्था इतनी कमजोर हो जाएगी कि उस कारण कुछ ही समय में 15 लाख नौकरियों पर संकट खड़ा हो जाएगा।
एक एनालिसिस के हवाले से बताया गया है कि अगर अमेरिका लंबे समय तक डिफॉल्ट रहता है तो इससे 78 लाख अमेरिकियों की नौकरी चली जाएगी, ब्याज दरें बढ़ जाएंगी, बेरोजगारी दर बढ़कर 8 फीसदी के पार चली जाएगी और स्टॉक मार्केट में ऐसी खलबली आ जाएगी जिससे घरेलू संपत्ति को 10 ट्रिलियन डॉलर का नुकसान होगा।
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