जबलपुर। छावनी परिषद अंतर्गत आने वाले क्षेत्रों को नगर निगम में शामिल करने के प्रस्ताव को लेकर अभी ऊहा-पोह की स्थिति है। इस दिशा में रक्षा मंत्रालय की मंशा भी स्पष्ट नहीं हुई है। जब तक नियमानुसार संसद से इस प्रस्ताव को मंजूरी नहीं मिलेगी और राजपत्र में इसका प्रकाशन नहीं होगा तब तक उक्त विषय अटकलों तक सीमित है। चूंकि रछावनी परिषद का मामला रक्षा मंत्रालय से जुड़ा होता है इसलिये कोई भी संबंधित अधिकारी या जनप्रतिनिधि खुलकर इस बाबत् कुछ भी बताने की स्थिति में नहीं है। इस बीच इतने संकते तो दिये गये हैं कि- आने वाले समय में उक्त विषय को अमली जामा पहनाया जा सकता है लेकिन समय सीमा पर संशय बरकरार है। यहां यह बात ध्यान देने वाली है कि- जबलपुर सहित प्रदेश की 26 छावनी परिषद में इसी तरह की संभावना है। जहां पर परिषद अंतर्गत आने वाले रिहायशी अथवा व्यापारिक क्षेत्र भविष्य में नगर निगम को हस्तांतरित किये जा सकते हैं। जिसकी राह विभिन्न पार्टियों के राजनेता भी देख रहे हैं। लेकिन जिस तरह के संकेत दिल्ली स्थित सूत्रों ने दिये हैं उसके बाद यह मामला फिलहाल साल 2024 तक लंबित या लटका रह सकता है। जानकार सूत्रों के अनुसार चूंकि इसी साल प्रदेश में भी विधानसभा चुनाव होने वाले हैं। इसके बाद अगले वर्ष अप्रेल मई के दौरान लोकसभा चुनाव हो जाएंगे। इसलिये इतने बड़े विषय को लेकर कोई भी राजनीतिक दल अभी किसी तरह का उत्साह नहीं दिखा रहा है। इसमें सत्ता रूढ़ भाजपा तो इसके लिये कतई तैयार नहीं दिख रही है। भाजपा और कांग्रेस के आला नेताओं का पूरा ध्यान इन दिनों विधानसभा चुनाव की तरफ लगा है। ऐसा कहा जाता है कि मध्यप्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़ के विधानसभा चुनाव लोकसभा के सेमीफाइनल हैं। इसी को देखते हुए छावनी परिषद के मसले पर अभी तो सकारात्मक पहल होती नहीं दिख रही है। जिसके बाद कम से कम राजनीतिक दलों के प्रतिनिधियों अथवा जो छावनी परिषद क्षेत्र और नगर निगम में राजनीति करते हैं, उनके लिये यह खबर निराश करने वाली हो सकती है।
विवेक कृष्ण तन्खा, सांसद राज्यसभा
छावनी परिषद में अभी जो सिविल क्षेत्र हैं, उनकों कब और कैसे नगर निगम में शामिल किया जाना है, यह इतना आसान नही है। चूंकि अतिसंवेदनशील मामला है इसलिये रक्षा विशेषज्ञों द्वारा इस ओर मंथन किया जायेगा, और इस तरह का निर्णय संभावित है जिसमें सेना की स्वीकृती के बाद छावनी परिषद के सिविल क्षेत्र को नगर निगम में शामिल किया जा सकता है। वैसे भी आने वाले दिन चुनाव के लिहाज से काफी महत्वपूर्ण हैं इसलिये अभी तो बड़े नेताओं का पूरा ध्यान चुनाव और संगठन की तरफ लगा हुआ है। इस विषय पर अभी किसी भी तरह की ऐसी जानकारी नहीं मिली है जो जनता के साथ साझा की जा सके।
सुमित्रा बाल्मिकी, सांसद राज्यसभा
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