राजनीति अनहोनी का दूसरा नाम है। सिद्धारमैया का अनुभव उनके काम आया। हमेशा नाप-तोल के साथ चलने वाले सिद्धारमैया दूसरी बार कर्नाटक के मुख्यमंत्री की शपथ लेने जा रहे हैं। छोटे कदमों से राजनीति शुरू करने वाले सिद्धारमैया पहली बार 1983 में भारतीय लोक दल पार्टी से चुनाव लड़कर विधानसभा पहुंचे थे।
सिद्धारमैया ने धीरे-धीरे कांग्रेस पार्टी में जगह बनाई। वह ऐसी जगह थी कि पार्टी आलाकमान को फिर उनसा कोई दूसरा नजर नहीं आया। हालांकि एक समय वे जनता दल के पार्टी अध्यक्ष (1999 से लेकर 2004 तक) थे और कांग्रेस के कट्टर विरोधी। अब राजनीति कहां सिद्धांत का अधिक खयाल रखती है। जब एचडी देवगौड़ा के बिगाड़ हुआ और दूरी बढ़ी तो वे जनता दल सेकुलर छोड़कर कांग्रेस में शामिल हो गए। इस बात को महज 15 साल हुए हैं।
उसके ठीक पांच साल बाद यानी 2013 में सिद्धारमैया को कांग्रेस पार्टी ने सूबे का कामन सौंप दिया। करीब तीन दशक से भी अधिक समय बाद सूबे की जनता को ऐसा मुख्यमंत्री मिला जो अगले पांच वर्षों तक लगातार कुर्सी पर टिका रहा। इससे जाहिर है कि सिद्धारमैया कांग्रेस की पसंद के साथ-साथ उनकी कमजोरी भी हैं। इसकी खास वजह यह है कि कर्नाटक के ग्रामीण इलाकों में उनकी पकड़ा मजबूत है। छवि साफ सुथरी है।
यही वजह रही कि तमाम उठापटक के बीच कर्नाटक के मुख्यमंत्री के तौर पर उन्होंने अपना कार्यकाल पूरा किया। उन्होंने 2018 तक सूबे की कमान संभाली। एक लंबे समय बाद कर्नाटक की जनता ने पांच साल तक किसी राजनेता को लगातार मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठा देखा।
सिद्धारमैया को बागी तेवर वाला राजनेता माना जाता है। जहां रहे, उनके बागी तेवर उठते रहे। कर्नाटक की जनता को उनका यह अंदाज शायद पसंद है। यह संयोग ही है कि उन्हें कभी भारी विरोध का सामना नहीं करना पड़ा। शासन में रहते हुए उनके कुछ फैसलों का जरूर विरोध हुआ, लेकिन उनकी लोकप्रियता में कोई खास कमी नहीं आई।/ब्रजेश
2023 के विधानसभा चुनाव में कर्नाटक कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष डीके शिवकुमार उनके प्रतिद्वंदी बनकर उभरे, लेकिन आलाकमान ने सिद्धारमैया के नाम पर मुहर लगाई और डीके शिवकुमार को उपमुख्यमंत्री तक सीमित रखा।
चुनावी राजनीति के साथ-साथ शासन को संभालने में सिद्धारमैया माहिर हैं। 1985 में वे जनता पार्टी की रामकृष्ण हेगड़े सरकार में मंत्री थे। तब उन्होंने अपनी कार्यशैली से लोगों को प्रभावित किया था। वे अबतक 12 चुनाव लड़ चुके हैं और नौ में जीत दर्ज की है।
सिद्धारमैया का जन्म 10 अगस्त, 1948 को मैसूर जिले के सिद्दरामनहुंडी गांव में हुआ था। वे किसान परिवार से आते हैं। मैसूर विश्वविद्यालय से बी-एससी की डिग्री हासिल की है। माता-पिता चाहते थे कि सिद्धारमैया डॉक्टर बनें, लेकिन उन्होंने मैसूर यूनिवर्सिटी से ही एलएलबी की पढ़ाई कर वकील बनना पसंद किया। वर्ष 1978 में राजनीति में कदम रखा। वह सफर आज भी जारी है।
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