इंदौर। लम्बे समय से प्रतिक्षित टीडीआर सर्टिफिकेट के आधार पर जो रिसीविंग एरिया तय किया जाना था उसकी कवायद अब शासन ने लगभग पूरी कर ली है। सम्पूर्ण निगम सीमा को ही रिसीविंग एरिया घोषित किया जा रहा है, जो कि लगभग 70 हजार एकड़ का रहेगा, जहां पर पूर्व में नगर निगम द्वारा बांटे गए अतिरिक्त एफएआर यानी टीडीआर के सर्टिफिकेट इस्तेमाल किए जा सकेंगे।
अभी 15 जून को शासन टीडीआर सर्टिफिकेट जारी करने की प्रक्रिया विधिवत रूप से शुरू करेगा, जिसके लिए नगरीय प्रशासन एवं विकास विभाग ने सुरक्षित पोर्टल बनाया है। इसके माध्यम से ऑनलाइन ही सर्टिफिकेट का आदान-प्रदान किया जाएगा। हालांकि रिसीविंग एरिया भले ही पूरी निगम सीमा को रखा गया है मगर किन क्षेत्रों में उसका किस तरह उपयोग होगा इसके अलग से नियम बनाए जाएंगे, ताकि राजवाड़ा जैसे घने क्षेत्रों की बजाय सुपर कॉरिडोर, बायपास अथवा 30 मीटर या उससे चौड़ी सडक़ों पर इसका इस्तेमाल अधिक हो सके।
अभी तमाम प्रोजेक्टों के चलते निजी जमीनें हासिल करना पड़ती है। प्राधिकरण तो लैंड पुलिंग एक्ट के तहत योजना में शामिल जमीनों को लेकर 50 प्रतिशत जमीन वापस उसके मालिकों को सौंप देता है, लेकिन नगर निगम सहित अन्य विभाग ओवरब्रिज, सडक़ों को चौड़ा करने से लेकर मास्टर प्लान की सडक़ों का जब निर्माण करते हैं तो उसमें मकान, दुकान, दफ्तर सहित तमाम निजी निर्माण चपेट में आते हैं।
इंदौर नगर निगम ने ही शहर के मध्य क्षेत्र से लेकर बीआरटीएस कॉरिडोर पर सडक़ चौड़ी करने के चलते निजी जमीनें ली और बदले में टीडीआर सर्टिफिकेट सौंपे, जो अभी तक कागज का टुकड़ा ही साबित हुए। मगर अब शासन 15 जून से टीडीआर सर्टिफिकेट जारी करने के साथ रिसीविंग एरिया को भी घोषित कर रही है। नगरीय प्रशासन एवं विकास विभाग के प्रमुख सचिव नीरज मंडलोईका कहना है कि इसके लिए सुरक्षित पोर्टल तैयार किया गया है, क्योंकि यह पूरी प्रक्रिया ऑनलाइन रहेगी इसलिए दस्तावेजों का आदान-प्रदान पूरी तरह से सुरक्षित रहे, उसके चलते पोर्टल तैयार किया है और अभी 15 जून से सर्टिफिकेट जारी करने के साथ यह प्रक्रिया शुरू हो जाएगी।
इंदौर में सम्पूर्ण निगम सीमा को रिसीविंग एरिया के रूप में मान्य किया जा रहा है। नगर तथा ग्राम निवेश का कहना है कि पिछले दिनों संभागायुक्त व कलेक्टर की बैठक में भी यही तय हुआ कि पूरे निगम क्षेत्र को ही रिसीविंग एरिया माना जाए, जिसमें लगभग 70 हजार एकड़ का क्षेत्रफल शामिल रहता है। इसके लिए ग्राउंड कवरेज, पार्किंग सहित कुछ अन्य संशोधन भी भूमि विकास नियम, बिल्डिंग लाइन सहित वर्तमान मास्टर प्लान में भी करना पड़ेंगे। हालांकि शासन का दावा है कि उसकी प्रक्रिया भी इसके साथ ही की जा रही है। अन्यथा टीडीआर सर्टिफिकेट का कोई लाभ नहीं मिल सकेगा। नकद मुआवजे के बदले टीडीआर इंदौर जैसे शहर में अत्यंत सफल साबित हो सकता है। बशर्ते शासन उसे ठीक तरीके से अमल में लाए।
मेट्रो प्रोजेक्ट के लिए बनाई टीओडी पॉलिसी भी पड़ी है लम्बित
ट्रांसफर ऑफ डवलपमेंट राइट यानी टीडीआर के साथ-साथ टीओडी यानी ट्रांजिट ओरियंटेड डवलपमेंट पॉलिसी को भी अमल में लाया जाना है। दरअसल अभी मेट्रो प्रोजेक्ट भी इंदौर में तेजी से चल रहा है, जिसमें पहले चरण में लगभग 32 किलोमीटर मेट्रो का ट्रैक तय किया गया है, जिसमें 9 किलोमीटर का मध्य क्षेत्र का हिस्सा अंडरग्राउंड रहेगा और शेष 23 किलोमीटर एलिवेटेड कॉरिडोर पर बनेगा।
अभी एयरपोर्ट से लेकर सुपर कॉरिडोर, एमआर-10 होते हुए रोबोट चौराहा तक एलिवेटेड कॉरिडोर पर काम चल रहा है, जिसमें तो निजी जमीन लेने की आवश्यकता नहीं पड़ी। मगर मध्य क्षेत्र में जब कॉरिडोर निर्मित होगा, तब संभव है निजी जमीनें भी लगेगी, जिसके चलते टीओडी पॉलिसी भी लाना पड़ेगी। हालांकि इसका प्रस्ताव भी नगरीय प्रशासन विभाग में पेंडिंग पड़ा है। टीओडी में भी होरिजोंटल डवलपमेंट की ही अवधारणा रखी गई है।
कई महत्वपूर्ण सुझाव अग्निबाण ने भी सौंपे
टीडीआर पॉलिसी तब सफल साबित होगी जब ग्राउंड कवरेज, एमओएस और पार्किंग नियमों में भी बदलाव किए जाएं। अग्निबाण ने इन बदलावों को लेकर विस्तृत सुझाव शासन-प्रशासन को सौंपे हैं। दरअसल अभी मास्टर प्लान में जो डेढ़ से दो एफएआर दिया है। वहीं सुपर कॉरिडोर पर तो 3 तक एफएआर का प्रावधान है।
मगर उतने एफएआर का इस्तेमाल भी बहुमंजिला इमारतों के निर्माण में नहीं हो पाता है। इसके चलते बिल्डर अतिरिक्त एफएआर टीडीआर के जरिए क्यों खरीदेंगे? वहीं शासन ने कम्पाउंडिंग के नियमों में भी परिवर्तन करते हुए अतिरिक्त एफएआर पहले शासन से खरीदने के प्रावधान किए हैं। उसे भी खत्म करना होगा, तभी टीडीआर के जरिए निजी स्तर पर एफएआर की खरीदी और बिक्री हो सकेगी।
पहले 30 मीटर या उससे चौड़ी सडक़ों पर मंजूरी का था प्रस्ताव
पूर्व में टीडीआर सर्टिफिकेट का उपयोग 30 मीटर का उससे चौड़ी सडक़ों पर ही देने का नियम बनाया जा रहा था। यानी रिसीविंग एरिया लगभग 14 हजार एकड़ का ही रहता और चौड़ी सडक़ों यानी सुपर कॉरिडोर, बायपास या अन्य पर ही इसका लाभ मिलता। मगर अब सम्पूर्ण निगम सीमा में इसे लागू किया जा रहा है, जिसके चलते रिसीविंग एरिया का क्षेत्रफल बड़ गया है।
हालांकि उसका इस्तेमाल किन नियमों के तहत होगा उसकी भी विभागीय प्रक्रिया चल रही है। नगर तथा ग्राम निवेश के संयुक्त संचालक एसके मुद्गल का कहना है कि पिछले दिनों हुई बैठकों के बाद भोपाल मुख्यालय को रिसीविंग झोन सम्पूर्ण निगम सीमा को करने के संबंध में प्रस्ताव भिजवा दिया था, जिसमें ग्राउंड कवरेज 30 प्रतिशत से बढ़ाकर 40 प्रतिशत करने, मास्टर प्लान में उपांतरण सहित अन्य प्रावधान किए जाने की अनुशंसा की गई है।
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