नई दिल्ली: बहुराष्ट्रीय कंपनियों का चीन से अब मोहभंग हो रहा है. चीन की अमेरिका और ताइवान के साथ तनातनी, श्रमिकों की कमी और चीन सरकार का चीनी कंपनियों को तकनीक हस्तांतरण के बनाए जा रहे दबाव से अब इंटरनेशनल कंपनीज को चीन में अपना भविष्य उज्जवल नहीं दिख रहा है. इन कंपनियों को बिजनेस और मैन्यूफैक्चरिंग के लिहाज से भारत चीन का उपयुक्त विकल्प नजर आ रहा है. ऐपल से लेकर फॉक्सकॉन तक हर बहुराष्ट्रीय कंपनी भारत को एक सुरक्षित ठिकाना मान रही है. हालांकि, चीन अभी भी ग्लोबल मैन्यूफेक्चरिंग में टॉप पर है, लेकिन भारत अब चीन की बादशाहत को कड़ी चुनौती दे रहा है.
वॉल स्ट्रीट जर्नल की एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत के पास न केवल बड़ी श्रम शक्ति है बल्कि दुनिया में भारत की घरेलू मार्केट ही केवल चीन की बराबरी करती है. भारत की लोकतांत्रिक व्यवस्था भी पश्चिमी सरकारों को लुभा रही है. भारत की नरेंद्र मोदी सरकार ने भारत को मैन्यूफेक्चरिंग हब बनाने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगा रही है. इसके सुखद परिणाम भी सामने आए है और विनिर्माण में भारत एक बड़ी ताकत बन रहा है.
भारत सरकार ने देश को मैन्यूफेक्चरिंग हब बनाने के लिए जो कदम उठाए हैं, उनके परिणाम अब आने लगे हैं. भारत का मैन्यूफेक्चरिंग एक्सपोर्ट तेजी से बढ़ रहा है और यह मैक्सिको और वियतनाम जैसी इमर्जिंग मार्केट्स से ज्यादा है. भारत का इलेक्ट्रोनिक्स निर्यात तो 2018 के मुकाबले अब तीन गुना बढ़कर 23 बिलियन डॉलर पर पहुंच गया है.
काउंटरप्वाइंट टेक्नोलॉजी मार्केट रिसर्च की एक रिपोर्ट के अनुसार, साल 2016 में भारत में जहां विश्व में बनने वाले कुल स्मार्टफोन में से 9 फीसदी ही बनाए जाते हैं. वहीं इस साल भारत की हिस्सेदारी 19 फीसदी हो जाएगी. भारत के केंद्रीय बैंक के आंकड़ों के अनुसार, भारत में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश 2020 से 2022 तक सालाना औसतन $42 बिलियन था. यह पिछले एक दशक से कम समय में ही दोगुना होगा.
बहुराष्ट्रीय कंपनियों का बढ़ रहा रुझान
तमिलनाडु के श्रीपेरुमबुदुर इंडस्ट्रियल पार्क में हर महीने कोई न कोई बहुराष्ट्रीय कंपनी आ रही है. साल 2021 में डेनमार्क की कंपनी वेस्टास ने श्रीपेरुमबुदुर में अपनी दो फैक्टरियां लगाई थी. वेस्टास दुनिया का सबसे बड़ा विंड टरबाइन मैन्यूफेक्चरर है. अब कंपनी की भारत में छह असेंबली लाइन्स है और यहां दुनियाभर में यह अपने प्रोडक्ट निर्यात कर रही है. वेस्टास असेंबली इंडिया के सीनियर डायरेक्टर चार्ल्स मैक्कॉल का कहना है कि कंपनी चीन के अलावा अन्य देशों में अपनी निर्माण इकाईयां लगा रही हैं.
मैक्कॉल का कहना है कि कंपनी अपने सभी अंडे केवल चीन में ही एक टोकरी में नहीं रखना चाहती. वेस्टास के कई सप्लायर्स ने भी भारत का रुख किया है. अमेरिकी कांट्रेक्टर टीपीआई कंपोजिट्स इनमें प्रमुख है. टीपीआई ने चीन में अपना कारोबार घटाया है और भारत में बढ़ाया है. मैक्कॉल का कहना है कि आने वाले समय में वेस्टास के 85 फीसदी सप्लायर भारत में ही होंगे.
ऐपल को भारत में दिख रहा भविष्य
आईफोन मेकर ऐपल धीरे-धीरे अपना कारोबार चीन से भारत में स्थानांतरित कर रहा है. पिछले पंद्रह सालों में ऐपल ने चीन में ही अपनी स्टेट ऑफ द आर्ट सप्लाई चेन बनाई थी. चीन में ऐपल की मौजूदगी ने चीन के मैन्यूफेक्चरिंग सेक्टर को खूब मजबूती दी थी. लेकिन, अब ऐपल चीन से ऊब चुकी है. 2017 तक ऐपल भारत में कम कीमत वाले प्रोडक्ट ही असेंबल कर रही थी. लेकिन, अब ऐपल ने अपने फ्लैगशिप आईफोन 14 की लॉन्चिग के कुछ बाद ही भारत में इसकी असेंबलिंग शुरू कर दी.
जेपी मॉर्गन का अनुमान है कि साल 2025 तक एक चौथाई आईफोन भारत में ही बनेंगे. ऐपल की प्रमुख सप्लायर फॉक्सकॉन का भी चैन्नई में प्लांट है. कंपनी अपनी प्रोडक्शन क्षमता को अब वहां बढ़ा रही है. चीन में कोविड 19 प्रतिबंधों और चीन ताइवान की तनातनी के कारण यह प्रमुख कंपनी भी अब चीन के अलावा भारत में निवेश बढ़ाने पर गंभीरता से विचार कर रही है.
मेक इन इंडिया का बड़ा योगदान
भारत में 2014 में भाजपा नीत सरकार ने देश में मैन्यूफेक्चरिंग को बढ़ावा देने के लिए कई कदम उठाए हैं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मेक इन इंडिया अभियान को जोर-शोर से चलाया. सरकार ने बहुत सी सरकारी सेवाओं को डिजिटल किया और रेल, रोड, बंदरगाह और इलेक्ट्रिसिटी जैसे बुनियादी ढांचे को मजबूती दी है. इससे भारत बिजनेस के लिहाज से काफी आकर्षक हो गया है.
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