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    क्‍या कर्नाटक में चलेगा मोदी फैक्‍टर या कांग्रेस की सफल होगी रणनीति? जानिए क्‍या कहती है ये 4 थ्योरी

  • May 09, 2023

    नई दिल्‍ली (New Delhi) । दक्षिण के राज्य कर्नाटक (Karnataka) में विधानसभा चुनाव (assembly elections) का प्रचार समाप्त हो गया है. 10 मई को वोटिंग है और 13 मई को नतीजे आएंगे. चुनाव के आखिरी हफ्ते में एक सवाल सब जगह उठने लगा कि क्या जिस तरह कई राज्यों में मोदी फैक्टर के दम पर बीजेपी (BJP) जीत हासिल करती रही है? वैसे ही इस बार कर्नाटक में भी हो सकता है? इस सवाल का जवाब तलाशने की कोशिश इस रिपोर्ट में पहले करते हैं, फिर आगे आपको बताएंगे कि चुनाव के लिए बीजेपी ने क्या रणनीति अपनाई और कांग्रेस (Congress) ने जीत के लिए क्या ब्लूप्रिंट अपनाया?

    वोटिंग से पहले दो तरह के सवाल पूरे देश में कर्नाटक को लेकर चल रहे हैं. पहला- बीजेपी या कांग्रेस क्या कोई इसमें अपने दम पर बहुमत पाएगा? दूसरा सवाल- अगर किसी एक दल को बहुमत नहीं मिला तो फिर सरकार किसकी होगी? 38 साल का कर्नाटक का चुनावी इतिहास बताता है कि 2004 और 2018 में दो मौके ऐसे आए, जब हंग असेंबली, त्रिशंकु सरकार यानी किसी भी दल को पूर्ण बहुमत नहीं मिला.

    14 साल में कांग्रेस, जेडीएस और बीजेपी की सरकार बनी
    2004 और 2018 के चुनाव में नतीजे के बाद अगर देखें तो 2004 में 1 साल 251 दिन कांग्रेस के मुख्यमंत्री रहे. एक साल 253 दिन जेडीएस के मुख्यमंत्री और सात दिन बीजेपी की सरकार रही. इसी तरह, 2018 में जब जनता ने किसी को पूर्ण बहुमत नहीं दिया तो पहले बीजेपी की सरकार 6 दिन रही, फिर जेडीएस की एक साल 64 दिन तक सरकार रही और फिर बीजेपी की सरकार करीब 3 साल 286 दिन से अभी चल रही है.


    इस बार कौन जीतेगा कर्नाटक?
    जब पूर्ण बहुमत नहीं आता तो सत्ता स्थाई नहीं रहती. लोकतंत्र में टूट-फूट, दल-बदल के मौके मिलते हैं. जनता का भरोसा कमजोर होता है. इस बार क्या होगा? कर्नाटक में किस करवट जनादेश आएगा? इसे समझने के लिए हमने पांच थ्योरी पकड़ी हैं. वो चार फॉर्मूले जो तय कर सकते हैं कौन जीतेगा कर्नाटक?

    थ्योरी नंबर-1
    कर्नाटक में बीजेपी और कांग्रेस के बीच 144 सीटों पर सीधी टक्कर होती है. 2018 में बीजेपी ने बढ़त हासिल की थी और सीधी टक्कर में 85 सीटें जीती थीं. जबकि कांग्रेस को 59 सीटों पर जीत मिलेगा. ऐसे में सवाल उठता है कि अबकी बार आमने-सामने की टक्कर में कौन ज्यादा जीत जीतेगा? क्या बीजेपी के सामने कांग्रेस बेहतर कर पाएगी?

    थ्योरी नंबर 2
    राज्य में कुल 224 सीटें हैं. इनमें 29 सीटें ऐसी हैं, जिन्होंने चुनाव में हर बार नया विजेता चुना है. क्या इस बार भी यही 29 सीटें तय करेंगी कि कर्नाटक में नया विजेता कौन होगा?

    थ्योरी नंबर 3
    कर्नाटक की 55 सीटें ऐसी हैं, जहां पिछले तीन चुनाव में पहले A जीती, फिर B जीती और फिर A को जीत मिली. ऐसी 55 में से 40 सीटें ऐसी हैं, जिन पर बीजेपी का कब्जा है. फिलहाल, बदलकर पार्टी जिताने वाली सीटों पर 13 मई को फैसला आएगा और पता चल सकेगा कि बीजेपी-कांग्रेस कितने पर सीटों पर कब्जा कर पाएंगी.

    थ्योरी नंबर 4…
    देश में पिछले 30 महीने में 17 राज्यों में चुनाव हुए और 13 राज्यों में सत्ता दल की वापसी हुई, जिसकी पहले सरकार रही. उन 13 राज्यों में 10 में बीजेपी या बीजेपी गठबंधन की सरकार वापस लौटी. इसके अलावा, जिन 4 राज्यों में सत्ता का बदलाव हुआ, उनमें एकलौता राज्य हिमाचल है, जहां बीजेपी कुछ वोट शेयर की वजह से हार गई. क्या कर्नाटक में भी बीजेपी अपना रिकॉर्ड दोहरा पाएगी या फिर कहानी कुछ और हो जाएगी?

    ‘कांग्रेस जीत के लिए कर रही है पूजा-पाठ’
    बीजेपी को हराने के लिए कांग्रेस पूजा-पाठ का सहारा ले रही है. प्रदेश अध्यक्ष डीके शिवकुमार खुद चुनाव के बीच पूजा-पाठ में बिजी देखे गए. हवन-पूजन के बीच कुछ ऐसे पोस्टर भी देखने को मिले, जिन्होंने सबका ध्यान खींचा है. इनमें महंगी गैस, महंगे पेट्रोल के साथ मौजूदा बोम्मई सरकार पर लगे 40 फीसदी करप्शन वाले आरोपों को दर्शाया गया है.

    ‘क्या करप्शन बन पाया चुनावी मुद्दा’
    कर्नाटक के चुनाव में कांग्रेस की तरफ से भ्रष्टाचार के मुद्दे को प्रमुखता से रखा गया है, लेकिन सवाल है कि क्या इससे जीत मिलती है? चुनावी राजनीति के अहम जानकार संजय कुमार के मुताबिक, भ्रष्टाचार भले मतदाताओं के जीवन से जुड़ा मसला हो. लेकिन, 1989 और 2014 के चुनाव को छोड़ दें तो करप्शन कोई बड़ा चुनावी मुद्दा नहीं बन पाया. बीते कुछ समय में 13 में से 12 राज्यों में चुनावी सर्वे के दौरान लोगों ने ये तो माना कि भ्रष्टाचार का मुद्दा अहम है, लेकिन इन 13 में सात राज्यों में सत्तारूढ़ दल ही जीता.

    ‘कर्नाटक में काम आएगा मोदी फैक्टर?’
    यानी जरूरी नहीं कि भ्रष्टाचार के मुद्दे पर जीत का प्रसाद भी कांग्रेस को मिले? वो भी तब जबकि चुनावों में बड़े से बड़े विरोध के खिलाफ ढाल बनकर खड़ा होता है- मोदी फैक्टर! आखिर क्या होता है, मोदी फैक्टर, कैसे काम करता है, क्या इसका फायदा कर्नाटक में मिल सकता है? इन सारे सवालों के जवाब जानने की कोशिश करते हैं.

    ‘क्या होता है मोदी फैक्टर?’
    मोदी फैक्टर यानी वो वोटर जो नरेंद्र मोदी के नाम पर पार्टी से जुड़ता है. वो वोटर जो नरेंद्र मोदी के चेहरे पर भरोसा करके वोट देता है. मोदी फैक्टर वाले वोटर के बारे में ये भी कहा जाता है कि जरूरी नहीं ये वोटर पार्टी की विचारधारा से जुड़ा हो. इसका हिसाब अगर फैक्ट पोल में देखें तो 2013 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी 20 फीसदी वोट पाती है, लेकिन 2014 के लोकसभा चुनाव में कर्नाटक में बीजेपी का वोट शेयर बढ़कर 43.37 फीसदी हो जाता है.

    इसी तरह 2018 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी का वोट का हिस्सा 36.22 फीसदी होता है, जो ठीक एक साल लोकसभा चुनाव के दौरान कर्नाटक में बढ़कर 51.72 फीसदी हो जाता है. कर्नाटक में नरेंद्र मोदी के नाम पर वोट देने वाले लोकसभा चुनाव में बढ़ जाते हैं. 2018 के चुनाव में जब प्रधानमंत्री मोदी ने 150 से ज्यादा सीटों को कवर करते हुए चुनाव प्रचार कर्नाटक में किया था तो 80 सीट बीजेपी उन जगहों पर जीती थी.

    ‘5 साल में पीएम के भाषण में क्या हुआ बदलाव?’
    इस बार नरेंद्र मोदी का प्रचार कितना व्यापक रहा और बीजेपी-कांग्रेस की रणनीति क्या रही, ये जानने से पहले समझिए
    पांच साल में प्रचार के दौरान प्रधानमंत्री के भाषण में क्या बदलाव हुआ है? इसके लिए हमारी डेटा इंटेलिजेंस यूनिट ने 2018 और 2023 के नरेंद्र मोदी दो भाषणों को गहनता से समझा है, जिसमें पता चलता है…
    – इस बार कांग्रेस के बजरंग दल पर बैन वाले वादे की वजह से नरेंद्र मोदी ने भाषणों में बजरंग बली के नाम का जिक्र किया है.
    – 2018 के चुनाव में सर्जिकल स्ट्राइक, शहीद, जवान, सेना जैसे शब्द प्रधानमंत्री के भाषण में ज्यादा थे. ऐसा इस बार नहीं हुआ.
    – इस बार के चुनाव में डबल इंजन सरकार के साथ कर्नाटक को नंबर वन बनाने वाली बात पर जोर रहा.
    – पांच साल के भीतर हो रहे दोनों चुनावों में मुख्य विपक्षी पार्टी होने की वजह से भाषणों में कांग्रेस के खिलाफ वार में सबसे ज्यादा नाम आया.
    – इस बार गांधी परिवार पर आरोप या निशाना साधते वक्त शाही परिवार शब्द का प्रयोग हुआ है.
    – ज्यादातर भाषण में प्रधानमंत्री ने स्थानीय लोगों से अर्थव्यवस्था को मिलने वाले फायदे पर भी जोर दिया है.

    अब 13 मई की सुबह तक बीजेपी-कांग्रेस तो यही कहेंगे कि सरकार उनकी बन रही है, लेकिन फिलहाल जिस रणनीति के आधार पर ये करते हैं, उसे आप जानिए.

    ‘अल्पसंख्यक वोट के लिए बजरंग दल मुद्दा बनाया’
    औरंगाबाद में AIMIM प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने कहा- अरे झूठ है, पुंगी है, हमेशा धोखा देते हैं. माइनॉरिटी को मैसेज देना चाहते हैं बैन करेंगे. पांच साल पहले बैन करते, तुम बैन ही नहीं कर सकते. बीजेपी और कांग्रेस में लड़ाई है- असली हिंदू कौन होगा? दरअसल, कर्नाटक में दो सीट पर लड़ते ओवैसी को लगता है कि कांग्रेस तो अल्पसंख्यकों के वोट के लिए बजरंग दल पर बैन का वादा लेकर आई थी, जहां उसे पीछे हटना पड़ा. तब सवाल उठता है कि आखिर कौन कर्नाटक में सत्ता पाएगा और कैसे?

    ‘क्या है बीजेपी का प्लान 5B’
    बीजेपी का दावा है कि वो 120 सीट जीत सकती है. इस दावे के पीछे बीजेपी का 5B प्लान बताया जाता है. क्या अपने 5B प्लान से बीजेपी वाकई कर्नाटक में इतिहास बना सकती है, जो 1985 के बाद कभी नहीं बना? 5B यानी बेलगामी, बागलकोट, बीदर, बेल्लारी और ग्रेटर बेंगलुरु शहरी.

    ‘PM मोदी ने ग्रेटर बेंगुलुरु में तीन रोड शो किए’
    इन पांच जगहों पर 72 सीट आती है. 2018 में बीजेपी ने यहां पर 30 सीट ही जीती थी. इस बार बीजेपी ने यहां पर 45 से ज्यादा सीट जीतने का लक्ष्य रखा है. ग्रेटर बेंगुलुरु में दावा है कि इसीलिए बीजेपी ने पीएम मोदी के तीन रोड शो कराए, जहां से 32 सीटों को कवर किया जा सके. ग्रेटर बेंगलुरु की 32 में से 15 सीट पर ही बीजेपी पिछली बार जीत पाई थी, इस बार 22 सीट पर जीत का टारगेट बीजेपी ने सेट किया है.

    बीजेपी की तरह ही इस बार पूर्ण बहुमत का लक्ष्य लेकर कांग्रेस भी चल रही है, जिसने अपनी रणनीति पर दावा है कि थोड़ा पहले से अमल करना शुरू किया.
    – सितंबर से ही कर्नाटक में कांग्रेस पेसीएम और 40 परसेंट सरकारा का कैंपेन चलाना शुरू कर चुकी थी.
    – चुनाव से तीन महीने पहले ही प्रियंका गांधी और दूसरे बड़े नेता पांच गारंटी वाले वादे का ऐलान करके जनता तक पहुंचने लगी.
    – लोकल वर्सेज बाहरी के मुद्दे को उठाने पर कांग्रेस ने जोर दिया. नंदिनी बनाम अमूल दूध का मुद्दा इसी के तहत उठाया गया.
    – 20 दिन तक कांग्रेस के कई महासचिवों को कमजोर विधानसभा क्षेत्रों में ड्यूटी लगाकर रखा गया, ताकि कमियों को पहचाना और दूर किया जा सके.

    ‘जाति और क्षेत्र के आधार पर बंट रहे वोट’
    कर्नाटक एक ऐसा राज्य है, जहां जाति और क्षेत्र के आधार पर पार्टियों को लेकर वोटर बंटे रहे हैं. यही वजह है कि पिछली बार ज्यादा वोट शेयर के बावजूद कांग्रेस के पास सीटें बीजेपी से कम ही रहीं. अब सवाल है कि किसकी रणनीति इस बार चलेगी? फैसला 10 मई को होगा. नतीजे 13 मई को आएंगे.

    कर्नाटक में जाति का सियासी खेल…
    लिंगायत
    बीजेपी- 67 सीटें
    कांग्रेस- 51 सीटें

    वोक्कालिगा
    बीजेपी- 42
    कांग्रेस- 43

    ओबीसी
    बीजेपी- 40
    कांग्रेस- 40

    दलित
    बीजेपी- 37
    कांग्रेस- 35

    आदिवासी
    बीजेपी- 17
    कांग्रेस- 16

    लिंगायत की 14 प्रतिशत जनसंख्या है और 76 सीटों पर प्रभाव है. वोक्कलिगा की 11 प्रतिशत जनसंख्या है और 54 सीटों पर प्रभाव है. कुरुबा की 7 प्रतिशत जनसंख्या है और 3 सीटों पर प्रभाव है. मुस्लिम की 13 प्रतिशत जनसंख्या है और 13 सीटों पर प्रभाव है.

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