नई दिल्ली (New Delhi)। भारत (India) के रोजगार परिदृश्य (employment scenario) में व्यापक बदलाव (Massive change) लाने के उद्देश्य से वर्ष 2019 और 2020 के बीच संसद द्वारा पारित चारों श्रम संहिताओं (New Labour Code) का कार्यान्वयन फिलहाल ठप पड़ा है। मामले के जानकार लोगों का कहना है कि 2024 में होने वाले आम चुनाव (2024 general election) से पहले इनके लागू होने की संभावना नहीं है। इन चार संहिताओं ने कुल मिलाकर 29 केंद्रीय श्रम कानूनों (29 central labor laws) का एक मिला-जुला संस्करण तैयार किया है। इनमें शामिल हैं वेतन संहिता, 2019; औद्योगिक संबंध संहिता, 2020; व्यावसायिक सुरक्षा, स्वास्थ्य और काम करने की स्थिति संहिता, 2020; और सामाजिक सुरक्षा संहिता, 2020। इन चारों संहिताओं की समान रूप से प्रशंसा और आलोचना दोनों की गई है।
ये श्रम संहिताएं मोदी सरकार द्वारा किए गए सबसे महत्वपूर्ण आर्थिक सुधारों में से एक हैं। आलोचक उन्हें विवादास्पद और श्रमिक विरोधी के रूप में देखते हैं, जबकि मुक्त श्रम नीतियों की मांग करने वालों का कहना है कि ये संहिताएं विकास और रोजगार को बढ़ावा देंगी और तेजी से बदलती अर्थव्यवस्था के साथ पुराने कानूनों को समाप्त करेंगी। इनमें जो प्रमुख बदलाव किए गए हैं उनमें सरकार की मंजूरी के बिना श्रमिकों को निकालना, यूनियन द्वारा हड़ताल की घोषणा, महिलाओं को रात की पाली में काम करने की इजाजत जैसे प्रमुख नियम शामिल हैं।
जानकारों के मुताबिक तीन प्रमुख कारण इन संहिताओं को लागू होने से रोक रहे हैं। पहला, कुछ राज्यों को अभी इनको लेकर नियमों को प्रकाशित करना है। दूसरा, केंद्रीय श्रम मंत्रालय और यूनियनों के बीच बातचीत ठप हो गई है और तीसरा, केंद्र सभी हितधारकों को इस प्रक्रिया में शामिल करने का इच्छुक है। यह इसलिए क्योंकि मोदी सरकार को 2021 में कृषि कानूनों को वापस लेना पड़ा था, केंद्र ऐसी स्थिति नहीं चाहता।
दस ट्रेड यूनियन ने किया था इनका विरोध
आरएसएस से जुड़े बीएमएस को छोड़कर 10 ट्रेड यूनियनों के एक मंच ने श्रम मंत्री भूपेंद्र यादव से चारों श्रम संहिताओं को यह कहते हुए रद्द करने का आग्रह किया था कि वे मजदूर विरोधी हैं। वर्तमान में, 31 राज्यों ने वेतन संहिता के तहत मसौदा नियम प्रकाशित किए हैं, जबकि 26 राज्य व्यवसाय सुरक्षा कोड पर मसौदा नियम लेकर आए हैं। औद्योगिक संबंध संहिता पर 28 राज्यों द्वारा प्रारंभिक प्रक्रियाएं पूरी कर ली गई हैं। इसी तरह 28 राज्यों ने सामाजिक सुरक्षा कानून पर मसौदा नियम प्रकाशित किए हैं।
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