भोपाल। क्या आप जानते हैं आपके घर पर टीवी, फ्रीज, पंखे, पानी की मोटर, मिक्सर, बल्ब आदि गिलहरी, भालू, कुत्ते, चीते आदि की मदद से चल रहे हैं। दरअसल बिजली कंपनी करंट की क्षमता के आधार पर तारों के नाम जीवों के आधार पर रखती है। वर्तमान में गिलहरी, नेवला, खरगोश, भालू, कुत्ता, चीता, जेब्रा, मच्छर आदि नामों के कंडक्टर चलन में हैं। बिजली कंपनी के टेक्निकल एक्सपर्टस के मुताबिक एक किमी बिजली कंडक्टर पर जहां गिलहरी यानी स्क्वायर कंडक्टर का वजन 85 किलो के करीब होता है, वहीं सबसे भारी कंडक्टर जेब्रा यानी पट्टेदार घोड़े का होता है, यह करीब 1600 किलो होता है। खास बात यह कि मेट्रो की ट्रायल के लिए बिजली कंपनी ने जिस पेंथर लाइन को चार्ज किया है, वह 33 हजार वोल्ट करंट देगी। वैसे मेट्रो के लिए 25 हजार वोल्ट की ही आवश्यकता है। यानी मेट्रो के चक्के के लिए यह लाइन स्थायी सब स्टेशन बनने तक पर्याप्त रहेगी। एक्सपर्टस के मुताबिक इंदौर में सभी प्रकार के कंडक्टरों का उपयोग हो रहा है। कुछ कंडक्टरों का उपयोग पावर के बिजली उत्पादन ईकाई से इंदौर पहुंचने में और कुछ का ग्रिड से घर, दफ्तर, कारखानों, दुकानों, मॉल तक बिजली पहुंचाने में किया जा रहा है।
इसलिए किया गया पेंथर लाइन का उपयोग
एक्सपर्टस के मुताबिक जैसे पानी का प्रवाह पाइप के साइज के अनुसार होता है, उसी तरह कंडक्टर का प्रवाह भी एम्पीयर में होता है। इसके तहत पेंथर की क्षमता 400 एम्पीयर, डॉग की 250 एम्पीयर, रकून की 200 एम्पीयर व रेबिट की 150 एम्पीयर रहती है। कहां कितनी मात्रा में करंट प्रवाहित करना है, उसके हिसाब से कंडक्टर का साइज रहता है। चूंकि सुपर कॉरिडोर पर आईडीए व बाकी कॉलोनियों के प्रोजेक्ट्स काफी संख्या में हैं व करंट की क्षमता ज्यादा है, इसलिए पेंथर लाइन का उपयोग किया गया है।
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