नई दिल्ली: मोदी सरनेम मानहानि मामले (Modi surname defamation case) में सूरत की सेशंस कोर्ट (Surat Sessions Court) से राहत नहीं मिलने के बाद राहुल गांधी (Rahul Gandhi) ने गुजरात हाईकोर्ट (Gujarat High Court) का दरवाजा खटखटाया था और इस मामले में अर्जेंट सुनवाई का अनुरोध किया. हाईकोर्ट ने इस मामले में शनिवार को सुनवाई की. इस दौरान राहुल गांधी की तरफ से उनके वकील अभिषेक मनु सिंघवी (Advocate Abhishek Manu Singhvi) पक्ष रखा. सिंघवी ने कोर्ट में दलील दी कि राहुल को जिस कथित अपराध के लिए दोषी ठहरा कर 2 साल सजा सुनाई गई है, वह न तो गंभीर है और ना ही इसमें नैतिक क्षुद्रता निहित है.उन्होंने कहा कि राहुल गांधी ने कभी पूर्णेश मोदी का नाम नहीं लिया. मोदी नाम एक मान्य जातीय समूह का नहीं है. एक नाम के करोड़ों लोग हो सकते है. तो क्या सभी लोग मुकदमा दर्ज कराएंगे?
सुनवाई के दौरान सिंघवी ने उच्च न्यायालय में कहा कि अगर दोषसिद्धि पर रोक नहीं लगाई गई तो राहुल गांधी को उस अवधि के लिए चुनाव लड़ने से रोक दिया जाएगा जो राजनीति में लगभग अर्ध-स्थायी है. उनका पूरा राजनीतिक करियर दांव पर लग जाएगा. उन्होंने कोई गंभीर अपराध नहीं किया. न कोई हत्या की. कृपया इस पर ध्यान दिया जाए. सिंघवी ने कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष की सजा पर रोक लगाने का अनुरोध किया. उन्होंने जस्टिस हेमंत प्राच्छक की अदालत में अपने आवेदन में कहा, ‘एक जमानती, असंज्ञेय अपराध में 2 साल की अधिकतम सजा का मतलब है कि वह अपनी लोकसभा सीट स्थायी रूप से खो सकते हैं, जो कि व्यक्ति और उस निर्वाचन क्षेत्र के लिए बहुत गंभीर मामला है जिनका वह प्रतिनिधित्व करते हैं.
अभिषेक मनु सिंघवी ने इस मामले में कई रेफरेंस भी पेश किए हैं. जिसमें नवजोत सिंह सिद्धू का भी उदाहरण दिया गया है. सिंघवी ने कहा कि जब सिद्धू को सजा पर स्टे मिल सकती है तो राहुल गांधी को क्यों नहीं? करीब डेढ़ घंटे की लंबी दलीलें देकर सिंघव ने सूरत कोर्ट के फैसले को लेकर सवाल खड़े किए हैं. सिंघवी ने उच्च न्यायालय से कहा कि राहुल गांधी की ‘मोदी उपनाम’ संबंधी टिप्पणी से जुड़े एक आपराधिक मानहानि मामले की सुनवाई प्रक्रिया को लेकर गंभीर दोषपूर्ण तथ्यों के आधार पर कांग्रेस नेता की दोषसिद्धि हुई.सिंघवी ने हाईकोर्ट में राहुल गांधी की ओर से दलील देते हुए यह टिप्पणी की.
उच्च न्यायालय राहुल गांधी की उस याचिका पर सुनवाई कर रहा है, जिसमें इस आपराधिक मानहानि मामले में उनकी दोषसिद्धि पर रोक नहीं लगाने के सूरत सत्र अदालत के आदेश को चुनौती दी गई है. जस्टिस हेमंत प्राच्छक ने सत्र अदालत के 20 अप्रैल के आदेश को चुनौती देने वाली गांधी की आपराधिक पुनरीक्षण याचिका पर सुनवाई की. अगर उच्च न्यायालय इस याचिका को मंजूर कर लेता है, तो इससे राहुल गांधी को फिर से संसद सदस्य बनाए जाने का मार्ग प्रशस्त हो सकता है. इससे पहले जस्टिस गीता गोपी की अदालत के समक्ष तत्काल सुनवाई के लिए इस मामले का उल्लेख किया गया था. जस्टिस गोपी ने बाद में खुद को सुनवाई से अलग कर लिया था और फिर जस्टिस प्राच्छक को यह मामला सौंपा गया था.
सिंघवी ने हाईकोर्ट में दलील देते हुए कहा कि सुनवाई प्रक्रिया को लेकर ‘गंभीर दोषपूर्ण तथ्यों’’ के कारण यह दोषसिद्धि हुई. एक लोक सेवक या एक सांसद के मामले में इसके उस व्यक्ति और निर्वाचन क्षेत्र के लिए भी ऐसे बहुत गंभीर परिणाम होते हैं, जिन्हें बाद में बदला नहीं जा सकता. इसके फिर से चुनाव को लेकर भी कठोर परिणाम होते हैं.
गुजरात में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के विधायक पूर्णेश मोदी द्वारा दायर 2019 के मामले में सूरत की मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट अदालत ने 23 मार्च को कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी को भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धाराओं 499 और 500 (आपराधिक मानहानि) के तहत दोषी ठहराते हुए 2 साल जेल की सजा सुनाई थी. फैसले के बाद राहुल को जनप्रतिनिधित्व अधिनियम के प्रावधानों के तहत संसद की सदस्यता से अयोग्य घोषित कर दिया गया था. राहुल गांधी 2019 में केरल के वायनाड से लोकसभा के लिए निर्वाचित हुए थे. सूरत की सत्र अदालत ने कांग्रेस नेता को दोषी ठहराये जाने के फैसले पर रोक लगाने की उनकी अर्जी 20 अप्रैल को खारिज कर दी थी. राहुल इस मामले में फिलहाल जमानत पर हैं.
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