अब अपने ही आंगन में ध्यान दे रहे तुलसी
चुनावी साल है और अपने क्षेत्र के लोगों की अनदेखी अच्छे-अच्छों को घर बिठा देती है। इसलिए अब हर नेता अपने-अपने विधानसभा क्षेत्र में कार्यकर्ताओं और मतदाताओं की पूछपरख में लग गया है। तुलसी भी अब अपने आंगन में ज्यादा ध्यान दे रहे हैं। जब भी मौका मिलते हैं वे सांवेर पहुंच जाते हैं। रेसीडेंसी कोठी में अपने क्षेत्र के अधिकारियों को मीटिंग में लताड़ लगा डालते हैं कि उनके क्षेत्र में ध्यान क्यों नहीं दिया जा रहा? वे इंदौर में रहते हैं तो फिर सांवेर ही उनका लक्ष्य रहता है। बाकी ग्वालियर के प्रभारी मंत्री होने के नाते वहां जाना उनकी मजबूरी में शामिल हैं। आखिर महाराज का क्षेत्र जो है। वैसे तुलसी राजनीति के अखाड़े के पुराने पेलवान हंै और उन्हें मालूम है कि अभी अगर अपने आंगन में ध्यान नहीं दिया तो किसी दूसरे को घुसपैठ का मौका न मिल जाए। यूं भी सांवेर के आंगन में जो दावेदार थे, उन्हें पहले ही तुलसी ने चित्त कर रखा है और वे ही अभी इस अखाड़े के बड़े पहलवान हैं।
दिल के अरमां फेसबुक पर आए
पांच नंबर के एक भाजपा कार्यकर्ता का दर्द इन दिनों फेसबुक पर झलक रहा है। उनके सामने समस्या यह है कि वे किसी एक नेता की भक्ति नहीं कर सके। स्वभाव से चंचल इस कार्यकर्ता ने अपनी पीड़ा इन शब्दों में बयां कर दी कि ‘ताउम्र संगठन का काम करना ये भाग्य की बात है, लेकिन उस कार्यकर्ता का फैसला कौन करेगा, जिसने सिर्फ संगठन को अपना सब कुछ माना और किसी का प_ा नहीं बन सका’। वैसे ये कार्यकर्ता निगम चुनाव में टिकट के दावेदार भी थे, लेकिन भाग्य काम नहीं कर पाया।
कुछ बड़ा करने के फेर में हैं चिंटू चौकसे
दो नंबर से चिंटू चौकसे के विधानसभा चुनाव लडऩे की खबरों के बाद उन्होंने इसकी तैयारी भी शुरू कर दी है। वैसे दो नंबर में रमेश मेंदोला जैसे विधायक के सामने जीतना आसान तो नहीं है। खैर चिंटू जी-जान से लगे हैं और बता रहे हैं कि वे जोश में हैं, इसके लिए क्षेत्र में राजनीति की शह और मात का खेल भी चल पड़ा है। चिंटू अगले महीने कुछ बड़ा करने जा रहे हैं और उसमें कांग्रेस के बड़े नेताओं का मजमा लगने वाला है। दो नंबर में एक तरह से यह चिंटू के लिए चुनावी आगाज कहा जा सकता है।
मीटिंग का बोलकर ले गए, स्वागत कर लौट आए
बेलेश्वर मंदिर के पुनर्निमाण की घोषणा मुख्यमंत्री ने क्या की। कई नेताओं की राजनीति चमक उठी। इसका श्रेय यहां बने तीन अलग-अलग ग्रुप अपने आपको दे रहे हैं। एक ग्रुप हिन्दू संगठन का है, दूसरा कांग्रेसियों का और तीसरा भाजपाइयों का है। भाजपा का जो ग्रुप था वह गुरूवार को भोपाल जाकर मंदिर निर्माण की घोषणा पर मुख्यमंत्री का स्वागत कर लौट आया। इसमें विधायक मालिनी गौड़ भी शामिल थीं। सबको ले जाने से पहले कहा गया कि वहां मुख्यमंत्री मंदिर निर्माण के संबंध में मीटिंग लेने वाले हंै, लेकिन वहां जो कुछ हुआ, उसको लेकर भाजपाई ही अब बुदबुदा रहे हैं कि इस तरह की राजनीति करना थी तो यहीं इंदौर में मुख्यमंत्री का स्वागत कर देते। झूठ बोलकर भोपाल ले जाने की जरूरत क्या थी? कुछ तो अपना बचाव यह कहते हुए कर रहे हैं हम तो मंदिर के लिए गए थे, राजनीति करने नहीं।
साब की व्यक्तिगत यात्रा बनी पार्टी की यात्रा
दक्षिण भारत के एक नेता की व्यक्तिगत यात्रा जो किसी संस्था के बैनर तले निकाली गई थी, उसको लेकर चर्चा चल रही है। साब ने अपने प्रभाव वाले मध्यप्रदेश में सबको घूमाया और फिर एक अन्य भाजपा शासित राज्य में ले जाकर यात्रा को वापस ले गए। साब की इस यात्रा में खर्चा करने के लिए कई नेताओं को जवाबदारी भी सौंपी गई थी। चूंकि साब का मामला था, इसलिए मना किसी ने नहीं किया और जनप्रतिनिधियों के साथ-साथ नेताओं ने भी दिल और जेब दोनों खोलकर यात्रा का स्वागत किया।
कांग्रेस में जाने के पीछे बिगड़े बोल
पिछले दिनों भाजपा के एक वार्ड संयोजक ने पाला बदलकर कांग्रेस का झंडा उठा लिया। वैसे यह पहली बार हुआ है जब दो नंबर विधानसभा में इस तरह पाला बदला गया है। इसकी तह में एक नेता के बिगड़े बोल सामने आ रहे हैं। जो कांग्रेस में पहुंचे हैं, वे एक नेता के नाम पर कह रहे हैं कि वे ज्यादती सह नहीं सकते, जबकि उक्त नेता का कहना था कि वे पार्टी को नुकसान पहुंचाने का काम कर रहे थे। एक नगर पदाधिकारी ने तो इस्तीफा देने के एक दिन पहले ही उक्त वार्ड संयोजक की लू भी उतारी थी ।
3 नंबरी विधायक ही सहृदयता, अलग से खोला ड्रा
विधायक आकाश विजयवर्गीय एक राजनीतिज्ञ तो हैं ही, लेकिन कई मौकों पर उनकी संवेदनशीलता भी बाहर आ जाती है। पिछले दिनों वे गुजराती समाज के एक आयोजन में पहुंचे। वहां लकी ड्रा भी निकाला जाना था। विजयवर्गीय के हाथों लकी ड्रा निकला, लेकिन उसमें एक भी बच्चे का नाम नहीं आया। इस पर बच्चे निराशन हो गए। तुरंत विजयवर्गीय ने भांपा कि बच्चे मायूस हो गए हैं तो उन्होंने कहा कि एक ड्रा उनकी ओर से निकाला जाएगा और जिसका ड्रा निकलेगा उसे वे साइकिल देंगे। बस फिर क्या था बच्चे खुश। ड्रा भी निकला और जिसका नाम आया उसे हाथोंहाथ साइकिल भी मिल गई।
शहर में हुए भाजपा के एक मोर्चा के कार्यक्रम में इक_ा किए गए चंदे की खबर चारों तरफ फैली हुई है। बड़े नेताओं ने इस कार्यक्रम में सहयोग किया और बड़े से बड़ा खर्चा कर दिया, फिर भी बताया जा रहा है कि कुछ पदाधिकारियों ने मंडल स्तर तक कार्यक्रम की व्यवस्था के नाम पर चंदा किया गया। इसकी जानकारी जब बड़े नेताओं तक पहुंची तो वे भी आश्चर्य में पड़ गए, क्योंकि खर्चे तो नेताओं ने उठा लिए थे, फिर चंदा वसूली क्यों की गई? इस सवाल का जवाब नगर संगठन ढूंढ रहा है। -संजीव मालवीय
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