आइजोल: नॉर्थ ईस्ट इंडिया का मिजोरम (Mizoram) देशभर में सबसे खुशहाल राज्य (Happiest State) घोषित किया गया है. गुरुग्राम (Gurugram) के प्रबंधन विकास संस्थान में स्ट्रैटजी के प्रोफेसर राजेश के पिलानिया की ओर से एक स्टडी की गई है. स्टडी में दावा किया है कि मिजोरम देश का सबसे खुशहाल राज्य है. स्टडी 6 मापदंडों को आधार बनाकर की गई है. खुशहाल होने के साथ-साथ यह राज्य देश का ऐसा दूसरा राज्य भी है जहां पर 100 फीसदी साक्षरता है जो छात्रों को कठिन हालातों में भी उत्थान के अवसर प्रदान करता है.
बताते चलें कि पूर्वोत्तर के 8 राज्य असम, अरुणाचल प्रदेश, मेघालय, मणिपुर, मिजोरम, त्रिपुरा, नगालैंड, और सिक्किम हैं. इनमें से सिक्किम को छोड़ दें तो बाकी सभी 7 राज्यों के एक साथ जुड़े होने की वजह से इनको ‘7 सिस्टर्स‘ के नाम से भी जाना जाता है. इनमें से मिजोरम की एक अलग पहचान सबसे खुशहाल राज्य के रूप में होने की बात सामने आई है.
एनडीटीवी में प्रकाशित रिपोर्ट के मुताबिक इसमें कहा गया है कि मिजोरम का हैप्पीनेस इंडेक्स 6 पैरामीटर पर तैयार किया गया है जिसमें पारिवारिक रिश्ते, काम से जुड़े मुद्दों, सामाजिक मुद्दे और परोपकार, धर्म, प्रसन्नता पर COVID-19 के प्रभाव और शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य आदि पर प्रमुख रूप से शामिल किए गए हैं.
रिपोर्ट में यह भी कहा है कि मिजोरम के आइज़ोल में एक गवर्नमेंट मिजो हाई स्कूल (GMHS) के एक छात्र को कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ा है क्योंकि जब वह छोटा था तब उसके पिता ने अपने परिवार को छोड़ दिया था. बावजूद इसके वह आशावादी बना रहा और अपनी पढ़ाई में उत्कृष्टता हासिल करता रहता है. वह चार्टर्ड एकाउंटेंट बनने या सिविल सेवा परीक्षा (Civil Services exams) में शामिल होने की उम्मीद करता है, अगर उसकी पहली पसंद काम नहीं करती है.
इसी तरह, मिजो हाई स्कूल का कक्षा 10 का एक छात्र राष्ट्रीय रक्षा अकादमी (NDA) में शामिल होने की इच्छा रखता है. उसके पिता एक मिल्क फैक्ट्री में काम करते हैं और उसकी मां एक गृहिणी है. दोनों अपने स्कूल की वजह से अपनी संभावनाओं को लेकर आशान्वित हैं. एक छात्र ने कहा, “हमारे शिक्षक हमारे सबसे अच्छे दोस्त हैं, हम उनके साथ कुछ भी साझा करने से डरते या शर्माते नहीं हैं.’ मिजोरम में शिक्षक नियमित रूप से छात्रों और उनके माता-पिता से मिलते हैं ताकि उनकी किसी भी समस्या का समाधान किया जा सके.
मिजोरम की सामाजिक संरचना भी युवाओं की खुशी में योगदान करती है. राज्य के एक प्राइवेट स्कूल एबेन-एजर बोर्डिंग स्कूल की शिक्षिका सिस्टर लालरिनमावी खियांग्ते का कहना है कि यह परवरिश है जो युवाओं को खुश करती है या नहीं, हम एक जातिविहीन समाज हैं. साथ ही, यहां छात्रों पर पढ़ाई के लिए माता-पिता का दबाव भी कम है.
रिपोर्ट में आगे यह भी कहा गया है कि लिंग की परवाह किए बिना मिजो समुदाय का हर बच्चा जल्द से जल्द कमाना शुरू करना चाहता है. यहां पर युवाओं को आमतौर पर 16 से 17 साल की उम्र के आसपास रोजगार मिल जाता है. यहां के लोग किसी भी काम को छोटा नहीं मानते हैं. इसके लिए उनको प्रोत्साहित भी किया जाता है. अच्छी बात यह है कि लड़कियों और लड़कों के बीच कोई भेदभाव (no discrimination between girls and boys) नहीं होता है.
सिस्टर लालरिनमावी खियांग्ते ने कहा, “मिजोरम में टूटे हुए परिवारों की संख्या अधिक है, लेकिन समान परिस्थितियों में कई साथियों, कामकाजी माताओं और कम उम्र से ही वित्तीय स्वतंत्रता होने का मतलब है कि बच्चे वंचित नहीं हैं. जब दोनों लिंगों को अपना जीवन यापन करना सिखाया जाता है, और न ही दूसरे पर निर्भर रहना, तो एक जोड़े को अस्वास्थ्यकर सेटिंग में एक साथ क्यों रहना चाहिए?”
खियांग्ते के मुताबिक मिजोरम में टूटे परिवारों की संख्या ज्यादा है. लेकिन इसका असर बच्चों पर इसलिए ज्यादा नहीं पड़ता है क्यूंकि वह कम उम्र में ही कमाने लगते हैं और उनके पास रोजगार के अवसर होते हैं. कम उम्र में ही उनको कमाने की छूट और अवसर मिले होते हैं. कामकाजी माताओं की वजह से परिवार के टूटने के बाद भी इसका प्रतिकूल प्रभाव नहीं होता है. रिपोर्ट में यह भी बात कही गई है कि जब पुरुष और महिला दोनों लिंगों को अपना जीवन यापन करना सिखाया जाता है, तो फिर वो एक दूसरे के प्रति असहज स्थिति में रहने के लिए मजबूर क्यों हों?
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