नई दिल्ली (New Delhi) । विपक्ष (opposition) को एकजुट करने की कोशिश में जुटी कांग्रेस (Congress) ने मोदी सरकार (Modi government) और भाजपा (BJP) को घेरने के लिए अब जाति जनगणना (caste census) को मुद्दा बनाया है। हालांकि सच्चाई यह है कि कांग्रेस आजादी के पहले से यूपीए सरकार-2 तक के कार्यकाल तक जाति जनगणना का घोर विरोधी रही है। जाति जनगणना का देश के पहले पीएम जवाहर लाल नेहरू से लेकर सरदार पटेल, इंदिरा गांधी, राजीव गांधी तक विरोध कर चुके हैं।
दरअसल जब 1931 में पहली और आखिरी बार जातिगत जनगणना हुई तो इसे कांग्रेस ने ब्रिटिश सरकार का समाज को तोड़ने का षडयंत्र करार दिया था। द्वितीय विश्वयुद्ध के कारण साल 1941 में जनगणना नहीं हो पाई, मगर जब आजाद भारत में पहली जनगणना हुई तो इसमें जातियों की गिनती की मांग ठुकरा दी गई।
जाति जनगणना पर संसद में पहली अनौपचारिक चर्चा साल 1951 में हुई। इस अनौपचारिक चर्चा में देश के प्रथम पीएम जवाहर लाल नेहरू ने इसका विरोध किया। इससे पहले जब आजाद भारत में पहली जनगणना की तैयारी शुरू हुई थी इसका देश के पहले गृह मंत्री सरदार पटेल ने विरोध किया था।
इस मामले में उन्हें नेहरू के साथ डॉ भीमराव आंबेडकर, डॉ अबुल कलाम आजाद का साथ मिला। साल 1961 में राज्यों के सीएम को लिखे पत्र में तो नेहरू ने जाति और धर्म के नाम पर आरक्षण पर ही सवाल खड़े किए थे।
नेहरू के बाद भी बरकरार रहा रुख
नेहरू के बाद इंदिरा और राजीव सरकार ने भी इस मामले में पुराना रुख अपनाया। इंदिरा गांधी ने बीती सदी के अस्सी के दशक में मंडल कमीशन की रिपोर्ट को ठंडे बस्ते में डाला। साल 1981 में बीपी मंडल की जातिगत जनगणना की मांग तत्कालीन गृह मंत्री ज्ञानी जैल सिंह ने खारिज कर दी थी।
गणना के बाद भी आंकड़े नहीं हुए जारी
यूपीए-2 सरकार में जातिगत जनगणना कराने का निर्णय लिया गया, मगर यूपीए-2 सरकार ने सत्ता में बने रहने तक इसके आंकड़े जारी नहीं किए। इससे पहले इस पर प्रणब मुखर्जी की अध्यक्षता में बना मंत्रिसमूह भी किसी नतीजे पर नहीं पहुंचा। पी चिदंबरम, मीरा कुमार, अजय माकन ने इसे अव्यवहारिक बताया।
यूपीए-2 में हुई जम कर माथापच्ची साल 2011 की जनगणना से पूर्व जाति जनगणना के सवाल पर यूपीए-2 सरकार में जम कर माथापच्ची हुई। कैबिनेट सचिवालय के अभिलेखागार को खंगाल कर यह जानने की कोशिश हुई कि जातिगत जनगणना नहीं कराने का फैसला नीतिगत है या नहीं। इसी समय रजिस्ट्रार जनरल सी चंद्रमौली ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि यह फैसला नीतिगत है। ऐसे में आधिकारिक स्तर पर इसकी इजाजत दी जा सकती है।
नेहरू का कथन अहम
साल 1961 में नेहरू ने राज्यों के सीएम को लिखे पत्र में जाति और धर्म के आधार पर आरक्षण को अनुचित ठहराया था। उन्होंने कहा था कि जब हम जाति और धर्म के आधार पर आरक्षण व्यवस्था का पक्ष लेते हैं तो सक्षम लोगों और दक्षता का दर्जा नीचे करते हैं। खासकर सेवा के क्षेत्र में आरक्षण अनुचित है। मैं चाहता हूं कि मेरा देश प्रथम दर्जे का बने।
क्यों हमलावर है कांग्रेस
दशकों से विरोध के बाद जाति जनगणना के पक्ष में खड़ी कांग्रेस इसी बहाने विपक्ष को एकजुट करना चाहती है। कांग्रेस को लगता है कि वह अपने इस दांव से सामाजिक न्याय की राजनीति करने वाले दलों को साध सकती है। गौरतलब है कि सपा, बसपा, राजद, जदयू, डीएमके समेत कई दल इसके समर्थन में हैं। नीतीश ने कांग्रेस को विपक्ष का सर्वसम्मत मुद्दा ढूंढने की सलाह दी थी। इसके बाद ही कांग्रेस अध्यक्ष ने पीएम मोदी को इस संदर्भ में पत्र लिखा।
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