सही सवाल तो कैसा बवाल…देश में बढ़ती जा रही अश्लीलता और इंदौर में उभरते जा रहे उसके समकक्ष परिदृश्य पर भाजपा महासचिव कैलाश विजयवर्गीय की टिप्पणी का जहां संभ्रांत और सभ्य समाज ने पुरजोर स्वागत किया, वहीं विरोधी राजनीतिक दलों ने परम्परागत विरोध जताते हुए उसे कहीं शहर के नाइट कल्चर से जोड़ा तो कहीं शूर्पणखा शब्द पर एतराज जताते हुए पहनावे की स्वतंत्रता तक की पैरवी कर डाली…देश बदल रहा है…समाज बदल रहा है… संपन्नता बढ़ रही है… व्यक्तिगत विचारधाराएं देश पर हावी हो रही हैं…महिलाएं पुरुषों के मुकाबले न केवल आगे बढ़ रही हैं, बल्कि उनसे बेहतर कर रही हंै… अभी तक वो देश में केवल सामाजिक और सांस्कृतिक सभ्यता की धरोहर मानी जाती थीं, लेकिन अब देश का अभिमान और विकास और विश्वास की आन, बान और शान बनकर उभरती जा रही हंै… देश को मिली नारी शक्ति की यह वास्तविक पूंजी यदि नए भारत की ताकत बनकर दुनिया में देश का मान बढ़ा रही है तो उनको सहेजने और संवारने की जिम्मेदारी भी देश पर बढ़ती जा रही है…उनका भटकाव विध्वंस ला सकता है…उनका पतन देश को गिरा सकता है…वो भले ही शक्ति का पुंज बन गई हों, लेकिन आज भी उनमें भावुकता है…उनकी किशोर अवस्था में अज्ञानता है…वो अपने विध्वंस को नहीं पहचानती हैं…आकर्षण की होड़ में गंदी नजरों के सामने खुद को परोसकर न केवल वो स्वयं के भविष्य के लिए घातक बन रही हैं, बल्कि समाज को भी बहलाने और बिगाडऩे की दोषी बनती जा रही हैं…उनका परिवेश उनके इस अपराध की पहली दस्तक है…और यदि उन्हें हर भाषा में नहीं समझाया गया तो हम उनकी मासूमियत के विनाश के दोषी समझे जाएंगे… विजयवर्गीय हर मंच पर दबी आवाज में मुखर होकर अश्लीलता का विरोध करते रहे हैं… लेकिन इस बार उन्होंने यदि अश्लीलता की तुलना शूर्पणखा से की है तो यह उस नीयत और नियति का सर्वोच्च उदाहरण है, जिसने त्रेता युग में एक नारी की भूल से उपजे विध्वंस का आईना समाज को दिखाया था… शूर्पणखा वो स्त्री थी, जिसने छद्म आकर्षण से मोहिनी स्वरूप धारण कर एक पत्नीव्रता पुरुष को बहलाने, फुसलाने और उत्तेजित कर उसकी मर्यादा को नष्ट करने का प्रयास किया…इस प्रयास पर अपनी प्रतिक्रिया भविष्य को सौंपते हुए लक्ष्मण ने शूर्पणखा की नाक नहीं काटी, बल्कि उसकी नीयत को सबक सिखाया, जो नारी जाति के लिए उपहास बन रही थी…उसी शूर्पणखा की नादानी की वजह से शिवभक्त रावण तक बहन के प्रेम की खातिर मर्यादा पुरुषोत्तम से भिड़ गए और शूर्पणखा एक परिवार… अनेक भाई …एक राज्य और एक धर्मनिष्ठ रावण के पतन का कारण बनी….यदि उस समय शूर्पणखा को कोई ज्ञान देने वाला मिल जाता…सही राह बताता…स्वयं के पतन से परिचय कराता तो वह अपने परिवार, अपने कुल के विनाश का कारण नहीं बनती… शूर्पणखा उस विध्वंस का कारण ही नहीं, बल्कि हर युग में इस धरा के लिए वह सबक है जो नारी शक्ति को नीयत और नियति का सबक सिखाती है…इस सत्य को समझने और स्वीकारने के बजाय विरोधी राजनीतिक दल जहां अश्लीलता की पैरवी पर आमादा हैं, वहीं पहनावे को स्वतंत्रता कहकर बालिकाओं की मासूमियत को बहकाने के अपराधी भी बन रहे हैं… कांग्रेस की नेत्री अपने परिचय की मोहताजी मिटाने के लिए जहां मुुद्दे को भटकाव की दिशा दे रही हैं, वहीं आम आदमी पार्टी के नेता वैचारिक बेईमानी पर उतर आए, जबकि वो जानते और मानते हैं कि इस शहर का नाइट कल्चर जहां विकास की दिशा है, वहीं अश्लीलता उस पर लगता दाग… इस दाग को मिटाने की सामूहिक जिम्मेदारी उन पर… हम पर… हम सब पर है….
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