नई दिल्ली (New Delhi)। सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने कुत्ते के काटने के झूठे मामले (false dog bite cases) के चलते जज बनते-बनते रह गई (Judge kept on becoming) अपूर्वा पाठक (Apoorva Pathak) (30) की याचिका पर सुनवाई करने का फैसला किया है। शीर्ष अदालत ने इस मामले में मध्य प्रदेश हाईकोर्ट (Madhya Pradesh High Court) को नोटिस भी जारी किया है। जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस अहसानुद्दीन अमानुल्लाह की पीठ ने पाया कि एक लावारिस कुत्ते को पीटे जाने से बचाने की कोशिश करने पर अपूर्वा पाठक के खिलाफ मामला दर्ज किया गया था, जिसके मद्देनजर उनकी न्यायिक सेवा में नियुक्ति रद्द कर दी गई।
अपूर्वा पाठक यूनिवर्सिटी से डिस्टिंक्शन और गोल्ड मेडल के साथ लॉ ग्रेजुएट हैं। उन्होंने मध्य प्रदेश न्यायिक सेवा परीक्षा- 2019 पास की थी। उन्हें सिविल जज (जूनियर डिवीजन) के रूप में नियुक्ति के लिए चुना गया। पोस्टिंग का इंतजार कर रहीं अपूर्वा चयन सूची से अपना नाम गायब देखकर हैरान रह गईं।
अपूर्वा के वकील नमित सक्सेना ने तर्क दिया कि पिछले आपराधिक मामले जिसमें उन्हें बरी किया जा चुका है के आधार पर उन्हें नियुक्ति से वंचित करना संविधान के अनुच्छेद- 14 के तहत निर्धारित मौलिक अधिकार का उल्लंघन है। क्योंकि उनके साथ अन्य उम्मीदवारों जैसा समान व्यवहार नहीं किया गया है। फरवरी 2018 में की गई एक शिकायत में आरोप लगाया गया था कि याचिकाकर्ता ने अपने पालतू कुत्ते को शिकायतकर्ता को काटने के लिए मजबूर किया।
याचिकाकर्ता ने 23 अप्रैल, 2022 को सिविल जज वर्ग-द्वितीय के पद के लिए तैयार की गई चयन सूची में मेरिट नंबर- 12 पर अपनी उम्मीदवारी को बहाल करने के लिए निर्देश मांगा है।
सुने बिना ही ले लिया गया नाम हटाने का फैसला
याचिका में दलील दी गई कि याचिकाकर्ता का नाम उसे सुने बिना ही हटा दिया गया। जबकि अदालत उन्हें इस मामले में बरी कर चुकी थी। याचिका में कहा गया कि यह ध्यान रखना उचित है कि न्यायिक सेवा परीक्षा के सभी चरणों में याचिकाकर्ता ने झूठे मामले में फंसाए जाने के उक्त तथ्य का उल्लेख किया था। उन्होंने यह भी बताया था कि निचली अदालत ने उन्हें बरी कर दिया है।
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