नई दिल्ली (New Delhi) । कर्नाटक विधानसभा चुनाव (karnataka assembly election) के लिए तारीखों की घोषणा हो चुकी है। अब मतदान के लिए एक महीने के करीब ही समय बचा है। हालांकि, अभी तक ना तो भारतीय जनता पार्टी (Bharatiya Janata Party) ने और ना ही कांग्रेस (Congress) ने अपने सीएम कैंडिडेट की घोषणा की है। वहीं, जेडीएस एचडी कुमारस्वामी को सीएम पद के लिए उपयुक्त उम्मीदवार मानकर चल रही है। सबसे पहले बात सत्तारूढ़ भाजपा की ही करते हैं। भगवा पार्टी ने यह तो तय कर दिया है कि वह वर्तमान मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई (Chief Minister Basavaraj Bommai) की अगुवाई में ही चुनावी अखाड़े में उतरेगी, लेकिन यह भी कहा है कि नतीजे सामने आने के बाद मुख्यमंत्री तय किया जाएगा। बीजेपी के इस स्टैंड ने दुविधा बढ़ा दी है।
वहीं, कर्नाटक में कांग्रेस पार्टी खेमेबाजी से जूढ रही है। कर्नाटक कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष डीके शिवकुमार और विधानसभा में विपक्ष के नेता सिद्धारमैया दोनों ही खुद को सीएम कैंडिडेट मानकर चल रहे हैं। हालांकि, कांग्रेस ने दिल्ली से किसी का नाम तय करके नहीं भेजा है।
कांग्रेस और भाजपा आखिर मुख्यमंत्री उम्मीदवारों के नाम की घोषणा करने से परहेज क्यों कर रही है? आइए जानने की कोशिश करते हैं।
2018 में जब कर्नाटक में विधानसभा चुनाव हो रहे थे तो उस समय भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह (National President Amit Shah) ने एक साल पहले ही बीएस येदियुरप्पा को मुख्यमंत्री उम्मीदवार बना दिया था। हालांकि, बीच में उन्होंने इस्तीफा दे दिया। इसके बाद पार्टी ने बसवराज बोम्मई के हाथों में प्रदेश की सत्ता सौंप दी। इस चुनाव में बीजेपी सतर्कता से आगे बढ़ रही है। पार्टी के पास वैसे भी येदियुरप्पा के कद का कोई कद्दावर चेहरा नहीं है।
हिंदी भाषी राज्यों की तरह कर्नाटक में भी जाति हावी है। यही कारण है कि सत्तारूढ़ भाजपा सत्ता में बने रहने के लिए दो प्रभावशाली जातियों लिंगायत और वोक्कालिगा को साधने की कोशिश कर रही है। हाल ही में दोनों के आरक्षण के कोटे में 2-2 प्रतिशत का इजाफा किया गया था। कर्नाटक में लिंगायत भाजपा के पारंपरिक वोटर माने जाते हैं। लेकिन वोक्कालिगा का समर्थन जेडीएस के पास है।
लिंगायत की सियासी ताकत का अंदाजा आप इसी बात से लगा सकते हैं कि इस सुमदाय के अब तक तीन मुख्यमंत्री रहे हैं। बीएस येदियुरप्पा, जगदीश शेट्टार और बीएस बोम्मई ने कर्नाटक की कमान संभाली थी। येदियुरप्पा ने अब अपने सियासी रिटायरमेंट की घोषणा कर दी है। वह न तो चुनाव लड़ेंगे और न ही सीएम पद के दावेदार हैं। अब बीजेपी लिंगायत और वोक्कालिगा दोनों को एक पटरी पर लाने की कोशिश कर रही है। यही कारण है कि बीजेपी चुनाव प्रचार समिति की जिम्मेदारी लिंगायत समुदाय से आने वाले बसवराज बोम्मई को दी है। वहीं, चुनाव प्रबंधन की कमान वोक्कालिगा समुदाय से आने वाली केंद्रीय मंत्री शोभा करंदलाजे के पास है।
गुटबाजी का भी है डर
कर्नाटक में भारतीय जनता पार्टी कई धड़ों में बंटी हुई है। बसवराज बोम्मई, बीएस येदियुरप्पा, बीएल संतोष के अपने-अपने खेमे हैं। कुछ कैबिनेट मंत्री ऐसे भी हैं जो खुद को सीएम पद का प्रबल दावेदार मानते हैं। बासनगौड़ा आर पाटिल, केएस ईश्वरप्पा, एएच विश्वनाथ, सीपी योगीश्वरा जैसे अनुभवी भाजपा नेताओं का भी एक मजबूत समर्थन आधार है। ऐसे में अगर पार्टी किसी एक चेहरे पर दांव लगाती है तो इससे दूसरे गुटों के नेताओं में असंतोष पैदा होगा।
कांग्रेस के सामने क्या हैं चुनौतियां?
कर्नाटक में कांग्रेस का भी हाल बीजेपी के जैसा ही है। देश की सबसे पुरानी पार्टी यहां कई गुटों में बटी हुई है। एक तरफ प्रदेश अध्यक्ष डीके शिवकुमार का खेमा है तो दूसरी तरफ पूर्व सीएम सिद्धारमैया का गुट है। दोनों नेता कर्नाटक में मुख्यमंत्री पद के लिए खुलकर अपनी-अपनी दावेदारी पेश कर रहे हैं। कांग्रेस इस कलह को चुनाव तक रोकना चाहती है। दोनों नेताओं के राजनीतिक कद और आधार वोट का लाभ उठाना चाहती है। डीके शिवकुमार वोक्कालिगा समुदाय से आते हैं। वहीं, पूर्व मुख्यमंत्री सिद्धारमैया कोरबा समुदाय से आते हैं। प्रदेश में उनकी छवि एक मजबूत ओबीसी नेता के तौर पर है।
कांग्रेस जीती तो खड़गे तय करें सीएम
कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे हालांकि मुख्यमंत्री उम्मीदवार नहीं हैं। लेकिन कांग्रेस अगर सत्ता में आती है तो मुख्यमंत्री का फैसला करने वाले में वो भी रहेंगे। खड़गे कर्नाटक में कांग्रेस के सबसे मजबूत दलित चेहरा रहे हैं। वह कलबुर्गी से नौ बार विधायक चुने जा चुके हैं। कांग्रेस अध्यक्ष से पार्टी के लिए दलित वोटों को मजबूत करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने की उम्मीद है।
कांग्रेस को कर्नाटक के समर्थन की दरकार
कांग्रेस आज अपने राजनीतिक इतिहास में सबसे कमजोर स्थिति में है। कांग्रेस का जनाधार और राजनीतिक जमीन सिमटती जा रही है। पार्टी 9 साल से केंद्र की सत्ता से बाहर है। एक के बाद एक राज्य सरकारें खोती जा रही हैं। पार्टी केवल तीन राज्यों में सत्ता में है। ऐसे में कर्नाटक चुनाव में कांग्रेस की जीत 2024 के आम चुनाव से पहले उसकी वापसी की उम्मीद जगा सकती है। कांग्रेस उम्मीदों और दबाव से जूझ रही है और फिलहाल कोई जोखिम उठाने को तैयार नहीं है। यही कारण है कि उसने सीएम चेहरे की घोषणा करने से परहेज किया है।
©2024 Agnibaan , All Rights Reserved