बेंगलुरु (Bangalore) । कर्नाटक (Karnataka) में चुनावी रणनीति में सबसे अहम भूमिका पुराना मैसूर क्षेत्र (Mysuru) की है। यहां के चुनावी नतीजे भावी सरकार की दशा और दिशा तय करने में अहम हो सकते हैं। जेडीएस (JDS) के इस मजबूत गढ़ पर भाजपा (BJP) व कांग्रेस (Congress) दोनों की नजर है। भाजपा काफी लंबे समय से इस क्षेत्र में अपनी जमीन मजबूत करने में जुटी है, लेकिन अब चुनावों के समय उहापोह की स्थिति बनती जा रही है। इस बात की भी आशंका है कि जेडीएस की कमजोरी का लाभ कहीं कांग्रेस को न मिल जाए।
कर्नाटक के पुराना मैसूर क्षेत्र में 64 सीटें आती है। कुछ विश्लेषक इसमें बेंगलुरु को भी शामिल करते हैं। हालांकि, पिछली बार भाजपा को बेंगलुरु में भी झटका लगा था। ऐसे में अगर पुराना मैसूर क्षेत्र की 64 सीटों की बात करें तो बीते चुनाव में भाजपा को यहां महज 11 सीटें ही मिलीं थी। जेडीएस को 23 और कांग्रेस को 16 सीटें हासिल हुई थी। अन्य को चार सीटें मिली थी। यह क्षेत्र वोक्लालिगा समुदाय के प्रभाव क्षेत्र का माना जाता है, जिसके बड़ा समर्थन इसी समुदाय से आने वाले सबसे बड़े नेता और पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवेगौड़ा की पार्टी जेडीएस को मिलता रहा है।
भाजपा में आए प्रमुख नेता
बीते पांच वर्ष में भाजपा ने इस क्षेत्र में सेंध लगाने की काफी कोशिश की है। इस क्षेत्र के कुछ प्रमुख नेताओं को दूसरे दलों से भाजपा में लाया गया है और उनको सरकार में भी महत्वपूर्ण जगह दी गई है। हाल में मंडया की निर्दलीय सांसद सुमनलथा ने भी प्रधानमंत्री मोदी के समर्थन में एक बयान दिया था। सूत्रों के अनुसार भाजपा की कोशिश यही है कि भले ही उसे लाभ न मिले, लेकिन कांग्रेस को इसका लाभ नहीं मिलना चाहिए। ऐसे में उसके लिए जेडीएस का मजबूत रहना ही ज्यादा मुफीद है।
कांग्रेस को भी मिल सकता है लाभ
चुनावों को लेकर जो शुरुआती आकलन आ रहे हैं, उसमें जेडीएस को अपने इस गढ़ में कुछ झटका लग सकता है। ऐसे में लाभ किसे होगा तय नहीं है। चूंकि कांग्रेस नेता डी शिवकुमार भी वोक्कालिगा है और मुख्यमंत्री पद के दावेदार भी हैं, ऐसे में इस बात की भी संभावना है कि जेडीएस के कमजोर होने का लाभ कहीं कांग्रेस को न मिल जाए। हालांकि, पिछली बार कांग्रेस और जेडीएस ने मिलकर सरकार बनाई थी। पर जेडीएस का ऐसा कोई भाजपा विरोध नहीं है। पूर्व में भी भाजपा व जेडीएस साथ में सरकार चला चुके हैं।
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