– योगेश कुमार गोयल
विश्वभर के लगभग सभी देशों में पहली अप्रैल का दिन ‘फूल्स डे’ अर्थात् ‘मूर्ख दिवस’ के रूप में ही मनाया जाता है। कोई छोटा हो या बड़ा, इस दिन हर किसी को जैसे हंसी-ठिठोली करने का बहाना मिल ही जाता है और हर कोई किसी न किसी को मूर्ख बनाने की चेष्टा करता नजर आता है। लोग एक-दूसरे को किसी तरह का नुकसान पहुंचाए बिना ऐसी असत्य और मनगढंत कल्पनाओं को ही यथार्थ का रूप देकर, जिन पर कोई भी आसानी से विश्वास कर सके, एक-दूसरे को मूर्ख बनाने की चेष्टा करते हैं और अक्सर बहुत चतुर समझे जाने वाले व्यक्ति भी मूर्ख बन ही जाते हैं। शायद यही कारण है कि इस दिन चाहे कोई किसी का कितना ही विश्वासपात्र क्यों न हो, मस्तिष्क में यह बात विराजमान रहती है न कि कहीं यह हमें मूर्ख तो नहीं बना रहा! कई बार होता यह भी है कि लोग कोशिश तो करते हैं दूसरों को मूर्ख बनाने की लेकिन इस कोशिश में खुद ही मूर्ख बन जाते हैं और जब ऐसा होता है तो वाकई बड़ा मनोरंजक माहौल बन जाता है। कभी-कभी तो इस दिन सैंकड़ों-हजारों की संख्या में लोग एक साथ ‘मूर्ख’ बनते भी देखे गए हैं।
पहली अप्रैल को ‘मूर्ख दिवस’ के रूप में मनाए जाने का कारण यह माना जाता रहा है कि पुराने जमाने में चूंकि नए साल की शुरुआत 1 अप्रैल से ही होती थी, अतः लोग इस दिन को हंसी-खुशी गुजारना चाहते थे ताकि उनका पूरा साल हंसी-खुशी बीते। लोगों की इसी धारणा के चलते 1 अप्रैल को ‘हास्य दिवस’ के रूप में मनाने की परम्परा शुरू हुई थी लेकिन धीरे-धीरे लोगों का उत्साह इस दिवस के प्रति कम होने लगा तो कुछ लोगों ने इस दिन कृत्रिम हास्य के जरिये दूसरों को बेवकूफ बनाना शुरू कर दिया। लोगों को भी यह अंदाज इतना पसंद आया कि इस परम्परा ने धीरे-धीरे ‘मूर्ख दिवस’ का रूप ले लिया।
‘अप्रैल फूल’ बनाने की पश्चिमी देशों में शुरू हुई परम्परा भारतीय संस्कृति में कब और कैसे प्रवेश कर गई, यह पता भी न चला। भले ही इस परम्परा पर पाश्चात्य संस्कृति का रंग बहुत गहरा चढ़ा है पर यदि हम इस परम्परा में निहित उद्देश्यों को गहराई में जाकर देखें तो गौरवशाली भारतीय संस्कृति के आधार पर भी यह परम्परा गलत नहीं ठहराई जा सकती क्योंकि आज की भागदौड़ भरी अस्त-व्यस्त जिन्दगी में व्यक्ति के पास जहां चैन से सांस लेने के लिए दो पल की भी फुर्सत नहीं है, वहीं इस दिवस के बहाने साल में सिर्फ एक दिन ही सही, व्यक्ति को खिलखिलाकर हंसने का मौका तो मिलता है। संभवतः ‘मूर्ख दिवस’ मनाने की परम्परा की पृष्ठभूमि में व्यस्त जिंदगी में मानव मन को कुछ पल का सुकून प्रदान करने की प्रवृति ही समाई है लेकिन इसके साथ-साथ इस मौके पर इस बात का ध्यान रखा जाना भी अत्यंत आवश्यक है कि ‘मूर्ख दिवस’ सभ्य मजाक के जरिये किसी को कुछ समय के लिए मूर्ख बनाकर मनोरंजन करने का दिन है।
अप्रैल फूल के बहाने जानबूझकर किसी के साथ ऐसा कोई मजाक न करें, जिससे उसकी भावनाओं को ठेस पहुंचे या उसका कोई अहित अथवा नुकसान हो। मूर्ख दिवस की आड़ में किसी से अपनी दुश्मनी निकालने या अपने अपने किसी अपमान का बदला लेने की चेष्टा भी नहीं होनी चाहिए। यदि आप विशुद्ध भावना से शुद्ध हास्य के जरिये इस दिन किसी को मूर्ख बनाने की कोशिश करते हैं तो सभवतः उस व्यक्ति को आपके मजाक का बुरा भी नहीं लगेगा। वैसे भी शुद्ध हास्य तनाव से मुक्ति प्रदान करने के साथ-साथ मन में आपसी प्रेम भाव तथा भाईचारे की भावना का संचार भी करता है और शुद्ध हास्य से सराबोर माहौल और भी खुशनुमा बन जाता है। ऐसे में मूर्ख दिवस मनाने की प्रासंगिकता आज के तनाव व घुटन भरे माहौल में बहुत बढ़ जाती है।
हमारे यहां गधे और उल्लू को हमेशा ‘मूर्ख’ की उपमा दी जाती रही है, इसलिए अपने दोस्तों, परिचितों अथवा संबंधियों को एक अप्रैल के दिन कुछ समय के लिए ही सही, मूर्ख बनाकर अपना व दूसरों का स्वस्थ मनोरंजन करने में कोई हर्ज नहीं है। यदि ऐसा करते समय शालीनता, शिष्टता व सभ्यता की उपेक्षा न की जाए तो कोई संदेह नहीं कि मूर्ख दिवस की महत्ता आज के दमघोंटू माहौल में कई गुना बढ़ जाती है और वर्ष भर में एक दिन के लिए ही सही, यह दिन हमें हंसी-खुशी के फव्वारे छोड़ने अर्थात् खिलखिलाकर हंसने-हंसाने तथा मनोरंजन करने का भरपूर अवसर प्रदान करता है।
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)
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