नई दिल्ली (New Delhi) । कांग्रेस नेता राहुल गांधी (Rahul Gandhi) की लोकसभा सदस्यता जाने के बाद पहला राजनीतिक मोर्चा अगले माह होने वाले कर्नाटक के विधानसभा चुनाव (Karnataka assembly elections) होगा। इस घटना के बाद बदलने वाले राजनीतिक समीकरण और आने वाले नतीजों का असर भविष्य की सियासी रणनीति पर भी पड़ेगा। कर्नाटक में भाजपा (BJP) और कांग्रेस (Congress) के बीच चुनाव प्रचार का एक अहम मुद्दा यह भी होगा।
कर्नाटक के मौजूदा सामाजिक और राजनीतिक समीकरणों में सत्तारूढ़ भाजपा और विपक्षी कांग्रेस के बीच पहले से ही कांटे का मुकाबला होने के आसार बने हुए थे। अब इस घटनाक्रम के बाद संघर्ष और ज्यादा बढ़ने के संकेत हैं। जहां भाजपा इसे ओबीसी के अपमान से जोड़ रही है, वहीं कांग्रेस इसे अडानी मुद्दे से ध्यान हटाने की कार्रवाई करार दे रही है। कर्नाटक के सामाजिक समीकरणों में भी ओबीसी समुदाय काफी अहम है। ऐसे में राज्य के त्रिकोणीय संघर्ष भाजपा, कांग्रेस और जद एस की रणनीति पर भी असर पड़ सकता है।
सूत्रों के अनुसार, इस घटनाक्रम से जेडीएस को नुकसान हो सकता है, जिसे राज्य के दूसरे बड़े समुदाय वोक्कालिगा का बड़ा समर्थन हासिल है। ओबीसी मुद्दे को भुनाने की लड़ाई के घमासान में अधिकांश सीटों पर मुकाबला कांग्रेस बनाम भाजपा होने की संभावना बढ़ गई है। ऐसे में यहां के नतीजे जिसके भी पक्ष में जाएंगे, उससे उभरने वाले समीकरण आने वाले अन्य विधानसभा और उसके बाद के लोकसभा चुनाव को भी प्रभावित कर सकते हैं।
चूंकि, कर्नाटक कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे का गृह राज्य भी है इसलिए भी यहां के चुनाव का अलग राजनीतिक महत्व है। यही वजह है कि शनिवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दावणगेरे की रैली में खड़गे पर भी निशाना साधा। कांग्रेस अध्यक्ष के गृह क्षेत्र कलबुर्गी में मेयर और डिप्टी मेयर चुनाव में कांग्रेस की हार का खास जिक्र किया।
कर्नाटक में अभी चुनावों की घोषणा भी नहीं हुई है, लेकिन कांग्रेस अपने आधे से ज्यादा उम्मीदवारों के नाम जारी कर चुकी है। वहीं, भाजपा को अभी इस बारे में प्रक्रिया शुरू करना बाकी है। भाजपा अगले सप्ताह उम्मीदवार चयन का काम शुरू कर सकती है। सत्ता विरोधी माहौल को देखते हुए भाजपा में पहले कई चेहरे बदले जाने की संभावना जताई जा रही थी, लेकिन अब बदले हुए माहौल में रणनीति को भी बदला जा सकता है।
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