नई दिल्ली(New Delhi)। आज चैत्र नवरात्रि (Chaitra Navratri ) का पांचवा दिन है और धार्मिक मान्यता के अनुसार इस दिन मां दुर्गा (Maa Durga) के पांचवे स्वरूप स्कंदमाता (skandamata) की पूजा की जाती है । मां दुर्गा के सभी रुपों में स्कंदमाता का ममतामयी रूप है और इनकी पूजा करने से बुद्धि का विकास होता है और ज्ञान की प्राप्ति होती है। स्कंद कुमार अर्थात स्वामी कार्तिकेय (Swami Kartikeya) की माता होने के कारण मां के पांचवे स्वरूप को स्कंदमाता कहा जाता है। स्वामी स्कंद बाल स्वरूप में मां की गोद में बैठे हुए हैं। मान्यता है कि निसंतान दंपत्ति सच्चे मन से नवरात्रि के पांचवे दिन का व्रत रखें और माता की पूजा-अर्चना करे तो सूनी गोद जल्द भर जाती है। आइए जानते हैं माता स्कंदमाता का स्वरूप, भोग, आरती और मंत्र…
स्कंदमाता की पूजा का महत्व (Importance of Skandmata Puja)
शुभ्र वर्ण वाली स्कंदमाता सिंह के अलावा कमल के आसान पर भी विराजमान रहती हैं इसलिए माता को पद्मासना भी कहा जाता है। सच्चे मन से पूजा करने पर स्कंदमाता सभी भक्तों की इच्छाओं को पूरी करती हैं और कष्टों को दूर करती हैं। संतान प्राप्ति के लिए माता की आराधना करना उत्तम माना गया है। माता रानी की पूजा के समय लाल कपड़े में सुहाग का सामान, लाल फूल, पीले चावल और एक नारियल को बांधकर माता की गोद भर दें। ऐसा करने से जल्द ही घर में किलकारियां गूंजने लगती हैं। स्कंदमाता मोक्ष का मार्ग दिखाती हैं और इनकी पूजा करने से ज्ञान की भी प्राप्ति होती है। माता का यह स्वरूप ममता की मूर्ति, प्रेम और वातस्ल्य का साक्षात प्रतीक हैं।
स्कंदमाता का स्वरूप
छान्दोगय उपनिषद् (Chandogya Upanishad) के प्रवर्तक सनत्कुमार की माता भगवती का नाम स्कंद है। अतः उनकी माता होने से कल्याणकारी शक्ति की अधिष्ठात्री देवी पांचवी दुर्गा स्कंदमाता के रूप में पूजी जाती हैं। अपने सांसारिक स्वरूप में यह देवी सिंह पर विराजमान हैं। इस दुर्गा का स्वरूप दोनों हाथों में कमलदल लिए हुए और एक हाथ से अपनी गोद में ब्रह्मस्वरूप सनत्कुमार को थामे हुए है। यह दुर्गा समस्त ज्ञान, विज्ञान, धर्म, कर्म और कृषि उद्योग सहित पंच आवरणों से समाहित विद्यावाहिनी दुर्गा भी कहलाती हैं। इस देवी की पूजा के दौरान धनुष बाण का अर्पण करना भी शुभ रहता है। स्कंद माता सूर्यमंडल की अधिष्ठात्रि देवी हैं इसलिए माता के चारों ओर सूर्य जैसा अलौकिक तजोमय मंडल व्याप्त है।
मां स्कंदमाता का पूजा मुहूर्त
पंचांग के अनुसार, आज 26 मार्च को चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि शाम 04 बजकर 32 मिनट तक है. आज प्रात:काल से प्रीति योग बना है, जो रात 11 बजकर 33 मिनट तक है. उसके बाद से आयुष्मान योग प्रारंभ होगा. आज रवि योग दोपहर 02 बजकर 01 मिनट से कल सुबह 06 बजकर 18 मिनट तक है.
स्कंदमाता पूजा विधि (Skandmata Puja Vidhi)
नवरात्रि के पांचवे दिन की पूजा भी वैसे ही होगी, जैसे अन्य दिनों में आप कर रहे हैं लेकिन स्कंदमाता की पूजा कुश अथवा कंबल के आसन पर बैठकर ही करें। माता की पूजा ब्रह्ममुहूर्त में ही करें और स्थापित प्रतिमा या तस्वीर के साथ आसपास कलश पर भी गंगाजल से छिड़काव करें। इसके बाद पूरे परिवार के साथ माता के जयाकरे लगाएं। माता को पीली चीजें प्रिय हैं इसलिए पीले फूल, फल, पीले वस्त्र आदि चीजें अर्पित करें। साथ ही अगर आप अग्यारी करते हैं तो रोज की तरह लौंग, बताशा आदि चीजें अर्पित करें। इसके बाद माता रोली, अक्षत, चंदन आदि चीजें अर्पित करें, फिर केले का भोग लगाएं। इसके बाद घी का दीपक या कपूर से माता की आरती उतारें और जयाकरे लगाएं। इसके बाद आप दुर्गा सप्तशती और दुर्गा चालीसा का पाठ कर सकते हैं और मां दुर्गा के मंत्रों का भी जप करें। शाम के समय में भी मां दुर्गा की आरती उतारें।
स्कंदमाता का भोग और उपाय (Maa Skandmata Bhog)
माता को पीले रंग की चीजें प्रिय हैं इसलिए आप केसर युक्त खीर बनाएं और माता को भोग लगाएं। साथ ही स्कंदमाता को केले का भोग भी लगाया जाता है। वहीं बुद्धिबल वृद्धि के लिए माता को 6 इलायची अर्पित करें सेवन करें। इसके बाद ‘ब्रीं स्कन्दजनन्यै नमः’ मंत्र का जप करें। बुद्धिबल के लिए यह उपाय दोपहर में शुभ मुहूर्त में करें। स्कंदमाता को कमल का पुष्प अति प्रिय है, इसलिए माता को कमल के फूल अर्पित करें।
स्कंद माता का मंत्र (Maa Skandmata Mantra)
सिंहासनगता नित्यं,पद्माश्रितकरद्वया।
शुभदास्तु सदा देवी,स्कंदमाता यशस्विनी।।
अर्थात् सिंह पर सवार रहने वाली मां और अपने दो हाथों में कमल का फूल धारण करने वाली यशस्विनी स्कंदमाता हमारे लिए शुभदायी हो।
या देवी सर्वभूतेषु मां स्कन्दमाता रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥
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