नई दिल्ली (New Delhi)। कहते हैं कि समय के साथ हर चीज का बदलाव जरूरी है और यह नियम राजनीतिक पार्टियों (political parties) में पर लागू होता है। पूर्वोत्तर राज्यों में विधानसभा चुनाव (assembly elections in northeastern states) के नतीजे और खासतौर से त्रिपुरा (Tripura) में भारतीय जनता पार्टी (BJP) की जीत में कई सियासी संदेश छिपे हो सकते हैं।
कहा जा रहा है कि भाजपा फैसला लेने वाली प्रक्रिया में बदलाव करती नजर आ रही है। संकेत मिल रहे हैं कि भाजपा अब केंद्रीय नेतृत्व के अलावा प्रदेश इकाइयों को निर्णय लेने में खुली छूट दे रही है। इसका एक उदाहरण त्रिपुरा में मुख्यमंत्री के तौर पर मणिक साहा की वापसी भी हो सकती है।
एक मीडिया रिपोर्ट के अनुसार पहले जब मुख्यमंत्रियों से जुड़ी कोई बात होती थी, तो पार्टी नेता संसदीय बोर्ड का हवाला देते थे। हालांकि, त्रिपुरा में साहा की वापसी हो या मेघालय में कोनराड संगमा की सरकार का हिस्सा बनने का फैसला, भाजपा के संसदीय बोर्ड की बैठक नहीं हुई।
रिपोर्ट के अनुसार, पार्टी के कुछ नेता इसे संसदीय बोर्ड को कमजोर होने के तौर पर देख रहे हैं। अगस्त में ही बोर्ड में बदलाव किए गए थे। नए 11 सदस्यीय इस समूह में पीएम मोदी, शाह, राष्ट्रीय अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा और महासचिव बीएल संतोष जैसे बड़े नेता शामिल हैं।
ऐसे में कर्नाटक जैसे राज्य भी शामिल हैं, जहां कठिन चुनाव में मजबूत नेतृत्व की कमी पार्टी की मुश्किलें बढ़ा सकती है। पूर्व मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा के सियासी तस्वीर से बाहर जाने के बाद पार्टी को उनके स्तर का बड़ा नेता नहीं मिल सका है। गुजरात में संगठन के मजबूत होने के बाद भी भाजपा काफी हद तक पीएम मोदी की लोकप्रियता पर निर्भर रही।
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