इंदौर (Indore)। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान (Chief Minister Shivraj Singh Chouhan) ने जोर-शोर से हर तरह के माफियाओं के खिलाफ इंदौर सहित प्रदेशभर (statewide) में मुहिम शुरू करवाई, जिसमें से अन्य माफियाओं के खिलाफ तो कार्रवाई हुई, मगर इंदौर में भूमाफियाओं का साथ पुलिस ने देकर शिवराज के ऑपरेशन को ही फेल साबित कर डाला। अब चर्चा यह है कि मुख्यमंत्री बड़े या इंदौरी भूमाफिया..? क्योंकि तमाम मंचों पर मुख्यमंत्री ने इन भूमाफियाओं को जमीन में 6 फीट गाढऩे और पूरी तरह से खत्म करने का संकल्प लिया और पुलिस-प्रशासन, सहकारिता विभाग को पूरी छूट भी कार्रवाई करने की दी। इंदौर में प्रशासन ने भूमाफियाओं से जमीनें छुड़वाकर पीडि़तों को भूखंड बांटे भी। मगर चिराग शाह जैसे जादूगरों ने पुलिस के साथ सांठगांठ कर शिवराज के ऑपरेशन भूमाफिया को ही पलीता लगा दिया। जो काम सुप्रीम कोर्ट भी नहीं कर सका उसे इंदौर के कई थाना प्रभारियों ने कर दिखाया और चिराग शाह के खिलाफ जो 23 प्रकरण दर्ज हुए उनमें गंभीर अपराधों के लिए जो धाराएं लगाई उनसे उसे बरी कर डाला।
अभी दीपक जैन उर्फ मद्दे को इंदौर पुलिस ने मथुरा से पकड़ा और उसे इंदौर लाकर पूछताछ के बाद जेल भिजवा दिया। मगर मद्दे के साथ मौजूद चिराग शाह को पुलिस ने यह कहते हुए छोड़ दिया कि उसके खिलाफ कोई प्रकरण ही नहीं शेष है और सभी मामलों में जमानतें भी मिल गई। अग्निबाण ने चिराग के खिलाफ दर्ज 23 प्रकरणों की जब पड़ताल की तो चौंकाने वाले तथ्य हाथ लगे और उससे यह भी साबित हुआ कि प्रदेश के मुखिया यानी मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान की आंखों में किस तरह इंदौर पुलिस ने धूल झोंकी और प्रशासन तथा सहकारिता विभाग ने जितनी मेहनत से इन भूमाफियाओं के खिलाफ प्रकरण थानों में दर्ज करवाए उनमें अधिकांश में पुलिस ने ना सिर्फ क्लीनचिट दी, बल्कि कोर्ट में चालान तक पेश कर डाले।
इन तमाम भूमाफियाओं के साथ शामिल रहे चिराग शाह के मामले में तो हैरतअंगेज जानकारी सामने आई। लसूडिय़ा, बाणगंगा, तुकोगंज थानों पर दर्ज चिराग के खिलाफ जो एफआईआर पुलिस ने दर्ज की और उस एफआईआर में ही उसे गंभीर अपराधों का दोषी भी बताया और उसके खिलाफ 420, 467, 468, 471 के साथ धारा 120बी के सबूत बाते हुए आरोपी बनाया गया। मगर बाद में भोपाल, इंदौर के आला पुलिस अफसरों, मंत्री-नेताओं के साथ सांठगांठ कर थाना प्रभारियों को भी अपने पक्ष में चिराग ने कर लिया और जो गैर जमानती धाराएं 467, 468, 471 और 120बी थी, उनमें क्लीनचिट हासिल कर ली और कुछ मामलों में सामान्य 420, 406 की जमानती धाराएं रहने दी और थानों से ही चिराग को इन मामलों में जमानतें दे दी गई।
मजे की बात यह है कि चिराग ने ही पुलिस मुख्यालय को अपने खिलाफ दर्ज प्रकरणों को एक साथ शामिल कर जांच करने का आवेदन लगाया, जिस पर पुलिस ने एसआईटी गठित कर चार थाना प्रभारियों को शामिल कर जांच करवाई। चिराग पर फिनिक्स, सेटेलाइट, कालिंदी गोल्ड सहित अन्य मामलों में ये एफआईआर प्रशासन ने बड़ी मेहनत से दर्ज करवाई और तत्कालीन कलेक्टर मनीष सिंह ने इन चर्चित भूमाफियाओं पर नकेल भी कसी और इनके कब्जे से जमीनों को छुड़वाकर पीडि़तों को भूखंड बंटवाए। वहीं मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान लगातार इन माफियाओं के खिलाफ कार्रवाई करने के निर्देश भी अधिकारियों को देते रहे। बावजूद इसके इंदौर पुलिस ने चिराग शाह पर गजब की मेहरबानी दिखाई और जो काम सुप्रीम कोर्ट नहीं कर सका वह थाना प्रभारियों ने कर दिखाया, जिसके चलते चिराग को पकडक़र छोड़ दिया। अब देखना यह है कि मुख्यमंत्री इस मामले में कितनी गंभीरता से जांच करवाते हैं, ताकि चिराग जैसे भूमाफिया भी बच न सकें।
अब डीजीपी बनाएं एसआईटी और करवाएं निष्पक्ष जांच
मुख्यमंत्री तक इंदौर पुलिस द्वारा चिराग को बचाने के सप्रमाण मामले भिजवाए जा रहे हैं, ताकि उनके ऑपरेशन भूमाफिया की जो किरकिरी हो रही है वह न हो सके। अब प्रदेश के पुलिस महानिदेशक यानी डीजीपी को चिराग शाह जैसे भूमाफिया को इस तरह इंदौर पुलिस ने सेटिंग कर बचाया, उसकी जांच के लिए एक विशेष एसआईटी गठित करना चाहिए, जिसमें इंदौर के अधिकारियों को शामिल न करते हुए भोपाल या अन्य जिलों से अधिकारियों की टीम भेजी जाए और चिराग के खिलाफ जो 23 एफआईआर लसूडिय़ा, बाणगंगा व अन्य थानों में दर्ज हुई उसकी गंभीरता से जांच हो।
दस्तावेजी साक्ष्य नहीं ढूंंढ सके – कथनी साक्ष्यों का दे डाला हवाला
भोपाल मुख्यालय से मिले निर्देश के आधार पर पुलिस उप महानिरीक्षक मनीष कपुरिया ने 08.06.2021 को पुलिस अधीक्षक पूर्व को पत्र लिखा, जिसमें चिराग शाह द्वारा प्रस्तुत आवेदन-पत्र का हवाला दिया गया और एसआईटी यानी जांच दल का गठन कर सही बिन्दुओं पर विवेचना करवाकर प्रकरण का विधिवत निकाल कराने के निर्देश जारी किए गए। चार थाना प्रभारियों, जिसमें लसूडिय़ा, तुकोगंज के अलावा विजय नगर के तत्कालीन थाना प्रभारी तहजीब काजी को भी बाद में शामिल किया गया। इसमें चिराग के खिलाफ थाना बाणगंगा में दर्ज पांच प्रकरणों के अलावा थाना तुकोगंज में दर्ज एक एफआईआर और थाना लसूडिय़ा में 9 एफआईआर, यानी 15 प्रकरणों का प्रतिवेदन तैयार किया गया। मगर इसमें दस्तावेजी साक्ष्य उपलब्ध होने की बजाय सिर्फ कथनी साक्ष्यों का मिलना ही जांच दल ने बताया।
पुलिस के आला अफसरों को ही नहीं पता कितने मामलों में मिली जमानत
चिराग शाह को अगर सभी प्रकरणों में जमानत मिल गई तो वह लगातार फरारी क्यों काटता रहा..? जब मद्दे को अपने दर्ज प्रकरणों में जमानत का लाभ मिला तो वह इंदौर में ही नजर आने लगा, लेकिन चिराग लगातार भूमिगत ही रहा। यहां तक कि पुलिस के आला अफसरों को भी इस बात की जानकारी नहीं है कि चिराग को किन-किन प्रकरणों में जमानत मिल गई। ऐसे कोई अदालती आदेश मीडिया को भी नहीं दिए गए। पुलिस कमीश्नर हरीनारायणचारी मिश्र से पूछने पर उन्होंने कहा कि वे इस मामले की जांच करवा रहे हैं कि सभी थानों में चिराग के खिलाफ कुल कितनी एफआईआर अभी तक दर्ज हुई और उनमें चालान पेश होने के बाद वर्तमान में क्या स्थिति है।
चिराग के आवेदन पर ही मुख्यालय के निर्देश पर बनाया था जांच दल
मजे की बात यह है कि एक तरफ चिराग ने पुलिस के साथ सेटिंग की, तो दूसरी तरफ अपने खिलाफ दर्ज मामलों मे जांच कराने का आवेदन पुलिस मुख्यालय में आवेदन लगाया, जिसके आधार पर एक जांच दल बनाया और उसमें शामिल थाना प्रभारियों ने गोल-मोल जांच रिपोर्ट देते हुए गंभीर धाराओं से चिराग को बरी कर दिया। यहां तक कि सुप्रीम कोर्ट में जो चम्पू, धवन के प्रकरण चल रहे हैं उसमें भी पुलिस ने चिराग के मामले में कोई पहल नहीं की। यही स्थिति जिला कोर्ट और हाईकोर्ट के प्रकरणों की भी है।
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