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    पूर्वोत्तर का जनादेश और वैरियर एल्विन का पिंडदान…!

  • March 04, 2023

    – डॉ. अजय खेमरिया

    पूर्वोत्तर के तीन राज्यों ने जो जनादेश दिया है उसके तीन महत्वपूर्ण राजनीतिक आयाम हैं। चेन्नई में एक दिन पहले मुख्यमंत्री स्टालिन के जन्मदिन पर विपक्षी एकता का जो जमावड़ा जुटा था वह एक सियासी सर्कस साबित हुआ। क्योंकि त्रिपुरा में वामपंथी और कांग्रेस मिलकर भी भाजपा के विजय रथ को रोक नही पाए। इसलिए 2024 में संयुक्त विपक्ष की अवधारणा स्टालिन के जन्मदिन के 24 घंटे में ही कमजोर पड़ गई।

    दूसरा और सबसे महत्वपूर्ण है पूर्वोत्तर में “स्व”के भाव का प्रकटीकरण। देश के इस हिस्से को स्वाधीनता के बाद नेहरू जी ने एक मिशनरी एजेंट के रूप में आये कथित मानव विज्ञानी वेररियर एल्विन के हवाले करके जो डेमोग्राफिक बदलाब यहां खड़ा किया आज उसकी विदाई के तत्व भी इस जनादेश में छिपे हैं।


    राजनीतिक विमर्श नवीसी में आज भी भाजपा को काऊ बैल्ट की पार्टी कहने वालों के लिए भी यह जनादेश एक बड़े धक्के से कम नही हैं। यह प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अखिल भारतीय स्वीकार्यता और विश्वसनीयता पर पूर्वोत्तर की पुनर्मुहर भी है।

    इन तीनों आयामों में सबसे दीर्घकालिक पक्ष है वेरियर एल्विन के नेहरू जनित कुत्सित वातावरण का स्थायी पिंडदान। एल्विन जिसे इस देश के एकेडमिक्स मानवविज्ञानी के रूप में अधिमान्य करते रहे हैं। शातिर और अय्याश अंग्रेज एल्विन ने नेहरू की सहमति से पूर्वोत्तर के राज्यों खासकर नगालैंड, त्रिपुरा, मणिपुर, मेघालय में मिशनरीज का नेटवर्क खड़ा कर जनजातीय समाज में कन्वर्जन का काम किया।

    संयोग से केंद्र और इन राज्यों की सरकारों ने भी एल्विन की थ्योरी पर ही यहां सरकारी नीतियों को आकार दिया। डेमोग्राफिक बदलाब के साथ शेष भारत से इस क्षेत्र के रिश्तों को अलगाव की हवा इसी कुत्सित मानसिकता ने तेज की। 2014 के बाद इन राज्यों में राजनीतिक बदलाव का जो अभियान प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में आरम्भ हुआ उसका सुफल जनादेश में स्पष्ट पढ़ा जा सकता है।

    जिस “स्व” के लिए राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ हमेशा लोकजीवन में आग्रही रहा है उसका मूलाधार यही है कि भारत में रहने वाले सभी भारतमाता की संतान हैं और धर्म की विविधता के बाबजूद वे भारत बोध के साथ एक भारत श्रेष्ठ भारत के निर्माण में सहभागी हो सकते हैं। इन राज्यों में ईसाई मतदाताओं ने भी प्रधानमंत्री पर बड़ा भरोसा जताया है और यह विपक्ष सहित अंतरराष्ट्रीय दुष्प्रचार के बाबजूद कायम होना एक सामान्य राजनीतिक परिघटना नहीं है।

    वस्तुतः यह प्रधानमंत्री के रूप में पूर्वोत्तर में उनकी 47 यात्राओं से खड़ा किया गया भारतबोध का नतीजा भी है। इन राज्यों में जहां भारत की बात करने पर लोग भड़क जाते थे वे खुद को भारतीय मानने तक पर संदेह जताते रहे हो। उसी पूर्वोत्तर के जनजातीय क्षेत्रों से लेकर गिरिजाघरों तक लोग मोदी मोदी लगातार दूसरी बार दोहरा रहे हो यह किसी भी दृष्टि से महज चुनाव परिणाम भर नही है। इसे भारत मे नेहरूजनित एल्विन के जनजाति सिद्धान्त और राजनीति के शोक गीत के रूप में भी लिया जाएगा। एल्विन के कुकर्मों की कथा मध्य प्रदेश से बेहतर कौन समझता है जहां कोसी ( एल्विन की नाबालिग जनजाति पत्नी) की करुण चीत्कार आज भी महाकौशल में गूंजता है।

    (लेखक, स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)

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