नई दिल्ली (New Delhi)। कहते हैं अगर दिल से चाहो तो कुछ भी असंभव नहीं। एक आदमी जो 11 साल की उम्र तक बोल नहीं सकता था और केवल 18 साल की उम्र के बाद पढ़ना और लिखना सीखा और अब कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी (cambridge university) का अब तक का सबसे कम उम्र का अश्वेत प्रोफेसर (black professor) बन गया है। जी हां, हम बात कर रहे हैं 37 वर्षीय जेसन आर्डे की, जो अगले महीने यूनिवर्सिटी में समाजशास्त्र के प्रोफेसर के रूप में काम शुरू करेंगे।
कहते हैं अगर दिल से चाहो तो कुछ भी असंभव नहीं। जेसन आर्दे नाम के एक शख्स ने इसे सच कर दिखाया है। यह वो शख्स है जो 11 साल की उम्र तक बोल नहीं पाता था। 18 साल की उम्र तक उसका भाषाई ज्ञान शून्य था। लेकिन उसने हिम्मत नहीं हारी, जमकर पढ़ाई की और मात्र 37 साल की उम्र में कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी का प्रोफेसर बन गया। अगले महीने वह समाजशास्त्र के प्रोफेसर पद पर काम शुरू करेंगे। यह शख्स अब इस प्रतिष्ठित विवि में सबसे युवा अश्वेत प्रोफेसर बन चुका है।
डॉक्टरों की भविष्यवाणी गलत साबित
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, जेसन का परिवार सम़द्ध नहीं था। उनके चिकित्सकों ने भविष्यवाणी की थी कि उनके बोलने की क्षमता में शायद ही कुछ सुधार हो लेकिन, आज उन्होंने अपने डॉक्टरों की भविष्यवाणी को गलत साबित किया। रिपोर्ट्स के मुताबिक, ब्रिटेन में 23,000 में से सिर्फ 155 अश्वेत यूनिवर्सिटी प्रोफेसर हैं। डॉक्टरों को गलत साबित करने के लिए जेसन ने अपनी मां के बेडरूम की दीवार पर लक्ष्यों की एक सूची लिखी थी। उनमें से एक था, “एक दिन मैं ऑक्सफोर्ड या कैम्ब्रिज में काम करूंगा।”
फर्श से अर्श तक का सफर
जेसन बताते हैं कि उच्च शिक्षा की पढ़ाई की शुरुआत में उन्हें कई बार हिंसा झेलनी पड़ी। लेकिन हिम्मत नहीं हारी और कड़ी मेहनत जारी रखी। उनके पहचान वाले बताते हैं कि जेसन ने शुरुआत में बोल पाने की क्षमता न होने के बावजूद दो मास्टर डिग्री हासिल की। लिवरपूल जॉन मूरेस विश्वविद्यालय से शिक्षा में स्नातकोत्तर प्रमाणपत्र और पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। यूनिवर्सिटी ऑफ ग्लासगो स्कूल ऑफ एजुकेशन में नौकरी मिलने के बाद वे अब ब्रिटेन के कैम्ब्रिज विवि में सबसे कम उम्र के प्रोफेसर बन गए हैं।
अपनी उपलब्धियों और भविष्य के लक्ष्यों के बारे में माय लंदन से बात करते हुए, जेसन ने कहा: “मेरा काम मुख्य रूप से इस बात पर केंद्रित है कि कैसे हम वंचित पृष्ठभूमि से अधिक लोगों के लिए दरवाजे खोल सकते हैं और वास्तव में उच्च शिक्षा का लोकतंत्रीकरण कर सकते हैं। उम्मीद है कि कैम्ब्रिज जैसी जगह में होने से मुझे लाभ मिलेगा।”
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