– आर.के. सिन्हा
एयर इंडिया ने 470 अत्याधुनिक यात्री विमान के ऑर्डर देने के साथ ही एक इतिहास ही रच दिया है। मजे की बात यह है कि एयर इंडिया के पास अब भी 370 जेट और खरीदने का विकल्प बचा हुआ ही है। उसके इस फैसले से सारी विमान सेवाओं की दुनिया में भूचाल सा आ गया। अब एक और आंकड़े पर गौर करें। एक अनुमान के मुताबिक, इस साल 19 करोड़ देसी-विदेशी यात्री भारत के ऊपर से हवाई यात्रा करेंगे। कितना बड़ा है यह आंकड़ा। इस आंकड़े के आलोक में समझना होगा कि देश-दुनिया का एविएशन सेक्टर किस रफ्तार से छलांग लगा रहा है। इसलिए एयर इंडिया का करीब पौने पांच सौ विमानों को खरीदने का फैसला साबित करता है कि उसके इरादे साफ हैं और इच्छा शक्ति बुलंद भी ।
एयर इंडिया अपने को दुनिया की एक चोटी की एयरलाइंस के रूप में स्थापित करने का पूरा मन बना चुकी है। वह यूं ही तो इतना अधिक निवेश नहीं कर रही है। हालांकि अभी तो भारत में ही “एयर इंडिया” से बहुत आगे “इंडिगो” है। उसके पास 308 विमान हैं और भारत के एविएशन सेक्टर में उसकी 55 फीसद हिस्सेदारी भी है। पर अगर आपके पास आगे की योजनाएं और दुनिया को जीतने का जज्बा ही नहीं है तो फिर आपके बिजनेस करने का कोई मतलब ही नहीं है। दरअसल एयर इंडिया या बाकी अन्य भारतीय एयरलाइंसों को अपने को दुनिया की सर्वश्रेष्ठ एयरलाइंस साबित करने की तरफ बढ़ना होगा। अभी तक उनकी आपस में ही स्पर्धा रहती है।
दरअसल कोरोनाकाल के बाद देश में अचानक हवाई यात्रा की मांग में भारी तेजी देखने को मिल रही है। इसी के चलते भारत की घरेलू एयरलाइंस कम्पनियां एक हजार से ज्यादा नए विमानों का आर्डर करने जा रही हैं। इसकी शुरुआत टाटा ग्रुप की सहयोगी कंपनी एयर इंडिया ने कर भी दी है। आपको याद ही होगा कि पिछले साल टाटा ग्रुप ने एयर इंडिया को टेकओवर कर लिया था। जब टाटा ने एयर इंडिया को अपने नियंत्रण में लिया था, तब तक एयर इंडिया के विमानों तथा सर्विस की हालत बेहद शोचनीय सी हो गई थी। आप विमान यात्रा करने वाले किसी भी इंसान से पूछ लें कि एयर इंडिया किस तरह की सर्विस अपने ग्राहकों को दे रही थी। एक ही जवाब मिलेगा, बेहद खराब। सरकारीकरण ने एयर इंडिया को तबाह कर दिया था। उसे फिर से पटरी पर लाने के लिए टाटा मैनेजमेंट को कई स्तरों पर कई बरसों तक काम करते रहना होगा। अगर वह इस मोर्चे पर सफल रहा तो फिर उसके पास सारा आकाश होगा।
एयर इंडिया ने नए विमानों का आर्डर “बोइंग” और “एयरबस” कंपनियों को दिया है। एयर इंडिया ने वाइड और नैरो बॉडी दोनों ही तरह के विमानों का आर्डर दिया है। एक साथ इतनी बड़ी संख्या में विमानों का आर्डर देने का यह एक विश्व रिकॉर्ड है जो पहले अमेरिकी एयरलाइंस के नाम था जिसने 2011 में 460 विमानों का आर्डर एक साथ दिया था।
देखिए एयर इंडिया ने बहुत सोच-विचार करने के बाद ही इतने विमान लेने का फैसला किया है। फिलहाल एयर इंडिया के बेड़े में कुल 230 विमान हैं। वह इतने कम विमानों से बहुत लंबी दूरी तक नहीं जा सकती। एयर इंडिया को फिलहाल इंडिगो के अलावा स्पाइसजेट, गो फर्स्ट और अकासा से भी चुनौती मिल रही है तो इंटरनेशनल रूट में सिंगापुर एयर लाइन्स एमिरेट्स और कतर एयरलाइंस से भी चुनौती मिल रही है। दरअसल कतर एयरवेज, सिंगापुर एयरलाइंस, एमिरेट्स, जापान एयरलाइंस, एयर फ्रांस आदि के सामने हमारी कोई भी एयरलाइंस खड़ी भी नहीं होती। आखिर इन्होंने अपने को विश्व स्तरीय बनाने के संबंध में क्यों नहीं सोचा?
इस सवाल पर एविएशन सेक्टर के सभी जानकारों को सोचना होगा। सच तो यह है कि हमारी एयरलाइंसों में यात्रा करने वालों को अभी भी कोई बहुत सुखद अनुभव नहीं होता। कभी विमान में कायदे का भोजन नहीं मिलता तो कभी विमान की सीट पर लगा टीवी काम नहीं कर रहा होता है। देखिए भारत में एक से बढ़कर एक एयरपोर्ट हैं और नए बनते भी जा रहे हैं। अगले साल तक ग्रेटर नोएडा में स्थित जेवर एयरपोर्ट भी बन जाएगा। जेवर एयरपोर्ट में लगभग 30 हजार करोड़ रुपये की लागत से 5845 हेक्टेयर जमीन पर बन रहा एशिया का सबसे बड़ा एयरपोर्ट होगा। जेवर एयरपोर्ट के पहले चरण के बनने के बाद से ही सालाना 1.2 करोड़ यात्रियों की आवाजाही होने की संभावना है।
जेवर एयरपोर्ट के संचालित होने के बाद राजधानी के आईजीआई एयरपोर्ट पर दबाव कम होना चाहिए। आईजीआई एयरपोर्ट दुनिया का दूसरा सबसे व्यस्ततम एयरपोर्ट बन गया है। अब मात्र अमेरिका का अटलांटा एयरपोर्ट ही भारत के इंदिरा गांधी एयरपोर्ट से आगे है। चूंकि हवाई अड्डों पर मुसाफिरों की भीड़ बढ़ती ही जा रही है, इसे देखते हुए सरकार नवी मुंबई, नोएडा इंटरनेशनल एयरपोर्ट (जेवर), मोपा (गोवा), पुरंदर (पुणे), भोगापुरम (विशाखापट्टनम), धोलेरा (अहमदबाद) और हीरासर (राजकोट) में भी नए हवाई अड्डों को मंजूरी दे चुकी है। सरकार आगामी पांच वर्षों के दौरान दिल्ली, बेंगलुरु और हैदराबाद हवाई अड्डों की क्षमता को बढ़ाने के लिए 25 हजार करोड़ रुपये का निवेश करने जा रही है।
तो बात यह है कि सरकार देश के तमाम एयरपोर्टों को आधुनिक बना रही है और कई नए एयरपोर्ट भी बन रहे हैं। पर जिस रफ्तार से सरकार एविएशन सेक्टर को गति देने के संबंध में गंभीर है, क्या उसी तरह से भारतीय एयरलाइंस भी अपने को आकाश में लेकर जाना चाहती हैं ? एयर इंडिया के हालिया फैसले से तो बिल्कुल ऐसा ही लगता है। एयर इंडिया में विगत 15-16 सालों से नए विमान नहीं खरीदे गए थे। इससे साफ है कि एयर इंडिया पर जब तक सरकारी बाबू बैठे थे तब तक वहां पर कुछ ठोस काम हो ही नहीं रहा था।
पिछली सरकारों ने भी एयर इंडिया को बर्बाद होने से नहीं बचाया। इस बीच, भारतीय एयरलाइंसों के पास कमाने के लिए तो भारत में भी कोई कमी नहीं है। उन्हें भारत के भीतर भी खूब यात्री मिलते हैं। पर उनका लक्ष्य दुनिया की श्रेष्ठ एयरलाइंस बनने का ही होना चाहिए। जब भारत की अर्थव्यवस्था तेजी से छलांग लगा रही है तो फिर हमारी एयरलाइंस अपने हिस्से के आकाश को क्यों नहीं छू लेती।
(लेखक, वरिष्ठ संपादक, स्तंभकार और पूर्व सांसद हैं।)
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