नई दिल्ली: गुजरात में हाल ही में गिरे उल्कापिंड ग्रहों की प्रक्रियाओं को समझने के लिए बेहद अहम संसाधन साबित हो सकते हैं. वैज्ञानिकों का कहना है कि यह उल्कापिंड ऑब्राइट है. उन्होंने इस बात की पुष्टि की है कि इस उल्कापिंड का निर्माण हमारे सौर मंडल में बेहद कम पाए जाने वाले विभेदित पिंड से हुआ है.
ये उल्कापिंड 17 अगस्त, 2022 को गुजरात के दियोदर तालुका में गिरे थे और इसकी कारण से इन्हें दियोदर उल्कापिंड का नाम दिया गया है. मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, ग्रामीणों ने आसमान में इसका कोई निशान नहीं देखा, बस गड़गड़ाहट की आवाज सुनी, जो उन्हें विमान से गुजरने सा लगा था.
इस उल्कापिंड एक बड़ा हिस्सा दियोदर में गिरा था, जबकि दूसरा पास के ही रावल गांव में गिरा. यहां ग्रामीणों ने उल्कापिंड के बड़े-बड़े टुकड़े एकत्र किए और उन्हें भौतिक अनुसंधान प्रयोगशाला के वैज्ञानिकों को सौंप दिया था. इन टुकड़ों का वजन करीब 200 ग्राम था.
इन नमूनों के विश्लेषण से पता चला कि उल्कापिंड ऑब्राइट का एक दुर्लभ नमूना था. ऑब्राइट उल्कापिंडों के दुर्लभ एकोन्ड्राइट समूह में आता है. ऑब्राइट्स में सोडियम, टाइटेनियम, मैंगनीज, क्रोमियम और कैल्शियम के सल्फाइड होते हैं. ये सभी लिथोफाइल तत्व हैं. यह विश्लेषण करंट साइंस जर्नल में प्रकाशित हुआ है.
इसमें कहा गया है कि उल्कापिंड के आगे के अध्ययन से हमें ग्रहों की प्रक्रियाओं को समझने में मदद मिल सकती है. बता दें कि ऑब्राइट उल्कापिंड भारत में एक दुर्लभ वस्तु है. पिछली बार 1852 में ऐसा उल्कापिंड उत्तर प्रदेश के गोरखपुर में गिरा था. इसके बाद भारत में ऑब्राइट गिरने की यह दूसरी घटना है.
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