भोपाल। रोजी-रोटी के लिए भागमभाग कर रहे अभिभावकों के लिए बच्चों की पढ़ाई सबसे बड़ी परेशानी बनी हुई है। प्राइवेट स्कूलों में बच्चों की पढ़ाई हर साल महंगी होती जा रही है। स्कूलों के फीस स्ट्रक्चर में 10 पर्सेंट तक की बढ़ोतरी अब आम हो गई है। पिछले साल भी स्कूलों ने फीस में बढ़ोतरी की थी और इस बार भी सेशन शुरू होने से पहले फीस बढ़ोतरी को लेकर फैसला लेने की बात कही जा रही है। नर्सरी (प्री-स्कूल) में एडमिशन के वक्त पैरंट्स को 50 हजार से भी ज्यादा रकम जमा करवानी पड़ती है। दरअसल, स्कूल तीन महीने की फीस एक साथ जमा करवाते हैं और एडमिशन के वक्त एडमिशन फीस, बिल्डिंग फीस, एनुअल चार्ज समेत कई तरह की फीस वसूलते हैं।
आलम यह है की प्राइवेट स्कूलों में हर साल फीस बढ़ाई जा रही है। ट्यूशन फीस के अलावा स्कूल बिल्डिंग फीस, टेक्नॉलजिकल चार्ज, स्मार्ट क्लास, मेडिकल फीस, एनुअल चार्ज में वसूलते हैं, इनमें भी बढ़ोतरी की जाती है। राजधानी भोपाल के कई निजी स्कूलों में केजी की एडमीशन फीस एक लाख तक है। इसे एडमीशन फीस, ट्यूशन फीस आदि मद में वसूला जा रहा है। इसके अलावा साल भर में ली जाने वाली फीस अलग है। यही नहीं शहर के कई मिशनरीज और निजी स्कूलों ने इस साल फीस में कम से कम 10 प्रतिशत की बढ़ोतरी कर दी है। लेकिन, स्कूल शिक्षा विभाग के अफसर मौन हैं। उनका कहना है कि फीस का दर्द है तो अभिभावक शिकायत करें। फिर मामले की जांच होगी।
कानून ताक पर
गौरतलब है कि निजी स्कूलों की फीस नियंत्रण के लिए तीन साल पहले राज्य में कानून बना था। लेकिन, अधिकारियों के दुलमुल रवैये का फायदा उठाते हुए निजी स्कूल संचालक हर साल फीस बढ़ा रहे हैं। इस साल भी शहर में नामीगिरामी निजी स्कूलों ने 5 से 6 हजार रुपए तक फीस बढ़ दी है। कई बड़े स्कूल एडमिशन फीस के नाम पर 50 से एक लाख तक वसूल रहे हैं। फीस बढ़ाने के पीछे उनका तर्क है कि फीस विनियमन अधिनियम में 10 प्रतिशत फीस बढ़ाने का नियम है। यह बढ़ोतरी उसी के तहत है। स्कूलों की इस मनमानी पर अधिकारी चुप हैं। संभागीय अधिकारी अरविंद चौरबड़े का कहना है कि स्कूलों ने यदि 10 प्रतिशत से अधिक फीस बढ़ाई है और शिकायत मिलती है, तो कार्रवाई की जाएगी। एक्ट के तहत अभिभावक स्कूलों से फीस बढ़ाने का कारण पूछ सकते हैं। फीस युक्ति संबंध नहीं है, तो शिकायत कर सकते हैं। राजधानी के सीबीएसई स्कूलों में एडमिशन प्रक्रिया शुरू है, लेकिन अब तक स्कूल शिक्षा विभाग ने फीस का लेखा- जोखा स्कूलों से नहीं मांगा है। न ही तीन साल के ऑडिट के आधार पर फीस तय की गई है। अधिकारियों का कहना है कि अभिभावकों की तरफ से फीस को लेकर कोई शिकायत आएगी तो कार्रवाई होगी। गौरतलब है कि राज्य सरकार ने निजी स्कूलों की फीस बढ़ोतरी रोकने के लिए फीस नियामक समिति बनाई है। अभिभावक 181 या कलेक्टर, जिला शिक्षा अधिकारी को स्कूलों की शिकायत कर सकते हैं।
नियमों में कई कड़े प्रावधान
प्राइवेट स्कूलों के फीस स्ट्रेक्चर को लेकर बनाए गए नियमों में कई कड़े प्रावधान रहें। निजी स्कूल हर साल 10 से 15 फीसदी से ज्यादा फीस नहीं बढ़ा सकते। अधिक फीस वसूलने पर स्कूल प्रबंधन पर 2 लाख रुपए तक का अर्थदंड और कानूनी कार्रवाई का प्रावधान है। दूसरी बार शिकायत सही पाए जाने पर अर्थदंड दोगुना फीस बढ़ाने के लिए स्कूल को अपनी आमदनी और खर्चे दिखाना होंगे। पिछले शैक्षणिक सत्र की तुलना में 10 से अधिक और 15 प्रतिशत या उससे कम है तो जिला समिति को भेजना होगी, वह इस पर 45 दिन में निर्णय लेगी। फीस वृद्धि 15 प्रतिशत से ज्यादा है तो जिला समिति 7 दिन में अपने अभिमत के साथ राज्य समिति को भेजेगी। जिला समिति निजी विद्यालय के प्रबंधन से ऐसी अतिरिक्त जानकारी या साक्ष्य मांग सकेगी कि वह फीस क्यों बढ़ा रहे हैं। फीस बढ़ाने पर निर्णय लेने से पहले समिति स्कूल प्रबंधन और छात्रों या पालक संगठनों का पक्ष भी लेना होगा।
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