इन्दौर। रेल बजट में बीते कुछ साल से मालवा-निमाड़ की रेल परियोजनाओं के लिए तगड़ी राशि मिल रही है, लेकिन इसके बावजूद इंदौर-दाहोद, छोटा उदयपुर-धार, इंदौर-बुदनी नई रेल लाइन, महू-खंडवा बड़ी लाइन, इंदौर-देवास-उज्जैन और राऊ-महू रेल लाइन के दोहरीकरण जैसे महत्वपूर्ण कार्य तय समय से काफी पिछड़ चुके हैं।
न तो जनप्रतिनिधि रेल परियोजनाओं की मानिटरिंग कर रहे हैं, न ही आला अफसरों को यह चिंता रहती है कि बजट में मिली पूरी राशि का उपयोग हो। हालांकि, हर साल की तरह इस साल भी जनप्रतिनिधि और आला अधिकारी मानिटरिंग का दावा जरूर कर रहे हैं। सबसे चिंताजनक बात यह है कि ढीलपोल के कारण परियोजनाओं की लागत लगातार बढ़ रही है।
इंदौर-दाहोद रेल प्रोजेक्ट
केवल इंदौर से टिही के बीच मालगाडिय़ों के लिए लाइन चालू हो पाई। दाहोद से कटवारा के बीच का भी काम पूरा नहीं हुआ। कटवारा से झाबुआ, सरदारपुर, धार आदि क्षेत्रों में काम की ज्यादा गतिविधियां दिखाई नहीं देतीं। 14 साल में रेलवे 205 किमी लाइन ही नहीं बना पाया। प्रोजेक्ट वर्ष 26 तक पूरा होगा।
छोटा उदयपुर-धार प्रोजेक्ट
यह लाइन छोटा उदयपुर तरफ से बनते हुए धार की ओर आ रही है। 14 साल में 157 किमी लंबे रेल मार्ग का 100 किमी लंबा हिस्सा भी तैयार नहीं हो पाया है। इस कारण मार्ग पर गुजरने वाली ट्रेनों को लंबे समय तक इंतजार करना पड़ रहा है। इस प्रोजेक्ट के 2025 तक पूरा होने का अनुमान है।
महू-खंडवा अकोला ब्राडगेज
महू-सनावद के बीच घाट सेक्शन का सर्वे बीसियों बार हो गया है, लेकिन काम शुरू होने के ठिकाने नहीं हैं। अंग्रेजों ने चार साल में घाट सेक्शन बना दिया था, लेकिन रेलवे सर्वे ही पूरा नहीं कर पा रहा है। कई बार समय सीमा भी तय हुई, लेकिन काम नहीं हुआ। प्रोजेक्ट पूरा होने में छह साल तक लग सकते हैं।
इंदौर-उज्जैन दोहरीकरण
यह काम इंदौर से देवास के बीच सबसे पहले होना था, क्योंकि इसी सेक्शन में ट्रेनों का अत्यधिक दबाव है। रेल अफसरों ने मनमानी करते हुए उसे उज्जैन से शुरू करवाया। प्रोजेक्ट मंजूर होने के चार साल अब इंदौर तरफ काम की कुछ गतिविधियां दिखाई दे रही हैं। लक्ष्य है कि 2023 तक प्रोजेक्ट पूरा किया जाए।
जनप्रतिनिधि भी सजग हों
केवल धनराशि स्वीकृत हो जाने से काम नहीं होते हैं। रेलवे को भी कई परेशानियों का सामना करना पड़ता है। ऐसे में अधिकारियों के साथ तालमेल कर काम में आ रही बाधाओं को दूर करने के लिए क्षेत्र के सांसदों को प्रयास करना चाहिए। लेकिन सांसदों में ही तालमेल नहीं है और ना ही नेताओं में।
कड़ी मानिटरिंग की जरूरत
रेलवे विशेषज्ञ नागेश नामजोशी के अनुसार अफसरों के पास यह कहने का बहाना नहीं है कि प्रोजेक्ट के लिए पैसा नहीं है। आला अधिकारियों और जनप्रतिनिधियों को चाहिए कि वे लगातार मैदानी इंजीनियरों और ठेकेदार एजेंसियों की मानिटरिंग करें।
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