इंदौर (Indore)। इंदौर हाईकोर्ट (Indore High Court) के जज सुबोध अभ्यंकर की कोर्ट में गुरुवार यानी आज अपर कलेक्टर अभय बेडेकर (Additional Collector Abhay Bedekar) को तलब किया गया था। यह मामला भूमाफियाओं (land mafia) से जुड़ा हुआ है। बता दे कि, कई आम जन से डायरी पर अलाटमेंट लेटर (allotment letter) पर लाखों रुपए लेकर उन्हें आज तक प्लॉट नहीं दिए है। लगभग 92 से अधिक पीड़ित परिवारों ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया है।
अधिवक्ता अभिषेक रघुवंशी और जितेंद्र यादव समेत कई अधिवक्ताओं ने 92 से अधिक पीड़ित परिवार का पक्ष रखा। यह मामला इंदौर के भूमाफिया चम्पू अजमेरा, चिराग शाह, हैप्पी धवन की कालोनी कालिंदी गोल्ड, फिनिक्स व सेटेलाइट से संबंधित है। सुप्रीम कोर्ट के एक आदेश के बाद भूमाफिया से पीड़ित इंदौर के सैकड़ों प्लॉटधारकों को राहत दिलाने में लगा इंदौर का जिला प्रशासन भी अब असहाय हो गया है। इस पूरे मामले को हाईकोर्ट ने अगली सुनवाई के लिए 15 मार्च को रख दिया है।
गुरुवार को जब हाईकोर्ट की इंदौर बैंच के सामने यह मामला सुना गया तो अपर कलेक्टर अभय बेडेकर ने कहा- सर मुझे धमकियां दी जाती हैं कि कोर्ट में आपके कपड़े उतरवा देंगे। आपकी नौकरी चली जाएगी। मैं मेरे अधिकार क्षेत्र में जितना कर सकता था, किया, लेकिन आरोपी सहयोग नहीं कर रहे हैं। बार-बार नोटिस देने के बाद भी नहीं आ रहे हैं। इन पर सख्ती की जरूरत है। हम तो इनकी जमानत रद्द करवाने के लिए भी आवेदन देना चाहते हैं। सुप्रीम कोर्ट द्वारा इंदौर के जिला प्रशासन को कमेटी बनाकर उक्त मामले में न्याय दिलाने हेतु नियुक्त किया था। जिस के संबंध में कुछ पीड़ित हाईकोर्ट पहुंचे हाईकोर्ट में सुबोध अभ्यंकर की बेंच में यह मामला चल रहा है। आज हाईकोर्ट में एडीएम अभय बेडेकर ने
बेडेकर उस टीम को लीड कर रहे हैं जो सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद इंदौर के जिला प्रशासन ने गठित की थी। यह टीम भूमाफिया रीतेश यानि चम्पू अजमेरा, हैप्पी धवन, नीलेश अजमेरी और चिराग शाह से उन लोगों को प्लॉट दिलाने के लिए गठित की गई है, जिन्होंने अपनी गाढ़ी कमाई का पैसा जमीन के इन जादूगरों की अलग-अलग कॉलोनियों में प्लॉट खरीदने में लगाए हैं। गुरुवार को हाईकोर्ट में बेडेकर ने जो कहा, वह घाट-घाट का पानी पी चुके इन शातिर भूमाफिया की जिला प्रशासन ही नहीं बल्कि इसके मुखिया और इंदौर के नए कलेक्टर डॉ. इलैया राजा टी के लिए भी सीधी चुनौती है।
यह किसी से छिपा नहीं है कि सुप्रीम कोर्ट ने भूमाफिया को जमानत दी थी ताकि प्रशासन का सहयोग करके जिन लोगों ने प्लॉट के लिए पैसा जमा कराया है, उन्हें प्लॉट दिलवाए जा सके। सुप्रीम कोर्ट ने जब यह मामला वापस हाईकोर्ट को पहुंचाया था, तब साफ-साफ कहा था कि यदि ये लोग प्लॉट दिलाने के मामले में सहयोग न करें तो प्रशासन इनकी जमानत रद्द करने के लिए हाईकोर्ट में आवेदन कर सकता है। हालत यह है कि इनकी कालोनियों में प्लॉट लेने वाले सैकड़ों प्लाटधारक अभी भी दर-दर भटक रहे हैं। इनमें से कई तो प्रशासन पर भूमाफिया पर सख्ती करने के बजाय उनसे हाथ मिलाकर चलने का आरोप लगा चुके हैं। ये पीड़ित सोशल मीडिया पर प्रशासन को लेकर जो टिप्पणी करते हैं, उसे देखकर आपकी आंखें भी फटी रह जाएंगी।
हाईकोर्ट के सामने पक्ष रखते हुए बेडेकर ने जो रिपोर्ट पेश की, उस पर भी गौर करना बहुत जरूरी है। इस रिपोर्ट में कहा गया है कि भूमाफिया से जुड़ी तीन कालोनियों कालिंदी गोल्ड, सैटेलाइट और फिनिक्स में 129 मामले तो रजिस्ट्री वाले सामने आए थे। इनमें से 61 को कब्जा दिलवा दिया गया है। सिर्फ कब्जा, नए सिरे से रजिस्ट्री अभी नहीं हुई है और ऐसे कब्जे का कोई लीगल स्टेटस नहीं है। पीड़ित न मकान बना सकते हैं न ही प्लॉट बेच सकते हैं। 109 लोग ऐसे हैं जिन्हें किसी सेल एग्रीमेंट के बजाय बुकिंग के नाम पर सिर्फ रसीद थमा दी गई। इनमें से 68 को भुगतान हो गया है, ऐसा सरकारी रिपोर्ट कह रही है। यह भुगतान भी आधा-अधूरा है। कई पीडि़तों ने चेक लिए ही नहीं, क्योंकि उन्हें प्लॉट चाहिए न कि पैसा। भूमाफिया उन पर इस बात के लिए दबाव बना रहा है कि पैसा लेकर सैटेलमेंट कर लो, कोई प्लॉट मिलेगा नहीं। सीधे-सीधे यही हो रहा है कि सुप्रीम कोर्ट से मिली सशर्त जमानत का भूमाफिया दुरुपयोग कर रहा है। प्रशासन उनके सामने असहाय नजर आ रहा है।
हाईकोर्ट में उस समय बहुत हास्यास्पद स्थिति बन गई, जब प्रशासन की ओर से कहा गया कि चारों भूमाफिया पर कितने आपराधिक मामले दर्ज हैं, ये किस स्थिति में हैं और कितने निराकृत हुए, इसकी हमें जानकारी दिलवाई जाए। बैंच का चौंकना स्वाभाविक था क्योंकि प्रशासन के पास ही जब इसकी जानकारी नहीं है तो फिर क्या माना जाए। मुद्दा तो यह भी उठा कि आरोपियों के वकील से ही उनका क्रिमिनल रिकॉर्ड और उन पर दर्ज प्रकरणों की जानकारी हमें दिलवा दी जाए।
इंदौर के नए कलेक्टर जनता के दुख-दर्द को लेकर बहुत संवेदनशील हैं। जिस अंदाज में वे जनसुनवाई में लोगों को राहत दिलवा रहे हैं, उसकी चर्चा पूरे प्रदेश में हैं। सवाल अब यह खड़ा हो रहा है कि जब प्रशासन का ही एक जिम्मेदार अफसर हाईकोर्ट में यह कहे कि मेरे कपड़े उतरवाने की धमकी दी जा रही है और कहा जा रहा है कि नौकरी चली जाएगी, तो फिर इन भूमाफिया से सख्ती से निपटने में परहेज क्यों हो रहा है? कलेक्टर साहब, अच्छे-अच्छे लोगों को अपनी जेब में रखने का दावा करने वाले इंदौर के इन सरगनाओं पर सख्ती कीजिए। पीड़ित लोगों को प्लॉट दिलवाइए। यदि ये लोग नहीं मानते हैं तो इन्हें फिर तीन ताड़ी में भिजवाइए। इस बात की भी तहकीकात जरूरी है कि आखिर ये भूमाफिया इस मामले में इतने बेलगाम कैसे हो गए हैं। कहीं आपकी टीम पीड़ितों को राहत दिलाने के बजाय इनके मददगार की भूमिका में तो नहीं आ गई है।
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