नई दिल्ली (New Delhi)। सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने कहा है कि कॉलेजियम प्रणाली (collegium system) पूरी तरह से सही है ऐसा हम नहीं कहते। क्योंकि, कोई भी प्रणाली पूर्ण नहीं है। लेकिन यदि सरकार नियुक्तियों के लिए बेहतर प्रणाली लाना चाहती है तो लाए, परंतु जब जक मौजूदा प्रणाली है उसका सम्मान होना चाहिए। शीर्ष अदालत ने यह टिप्पणी उच्च न्यायपालिका (higher judiciary) में जजों की नियुक्ति (appointment of judges) पर कॉलेजियम की सिफारिशों (collegium recommendations) को रोकने और दोहराए जाने पर उन्हें हरी झंडी नहीं देने के मुद्दे पर सुनवाई करते हुए की।
जस्टिस एसके कौल और एएस ओका की पीठ ने यह टिप्पणी तब कि जब वकीलों ने कहा कि सरकार कॉलेजियम की सिफारिशों पर बैठ जाती है। कर्नाटक हाईकोर्ट के जजों की नियुक्ति के नाम भेजे गए जिन्हें डेढ़ वर्ष से ज्यादा समय से रोका हुआ है। इस देरी के कारण एक वकील आदित्य सौंधी ने जज की उम्मीदवारी से अपना नाम वापस ही ले लिया था। सौंधी ने नागरिकता कानून पर अपनी राय व्यक्त की थी। पीठ ने कहा कि यही स्थिति तबादलों की है, सरकार उन पर फैसले नहीं लेती। इसके कारण न सिर्फ न्याय का प्रशासन प्रभावित होता है, बल्कि इस देरी से लगता है कि उन जजों की ओर से कोई तीसरा पक्ष नियुक्तियों के मामले में हस्तक्षेप कर रहा है। सरकार को यह संदेश नहीं जाने देना चाहिए।
सरकार टिप्पणियों के साथ नाम वापस भेजे
कोर्ट ने कहा कि सरकार अपनी टिप्पणियों के साथ नाम वापस तो भेजे, लेकिन आप यह सोचकर ऐसा नहीं करते कि उन्हें कॉलेजियम दोहरा देगा। पीठ ने कहा, कई बार हमने नामों को हटाया भी है और सरकार की बात मानी है। यह उचित नहीं है आपको कॉलेजियम की सिफारिशें मंजूर करनी होंगी। हाल ही में हाईकोर्ट जजों के लिए 22 नामों को लौटाने के मामले में कोर्ट ने कहा कि कॉलेजियम को इस पर फैसला लेना है। इनमें से कुछ नाम ऐसे हैं जिन्हें केंद्र के लौटाने के बावजूद कॉलेजियम ने तीन बार दोहराया है।
वकील के पुराने केसों के कारण उसकी सिफारिश रोकना सही नहीं
पीठ ने कहा, किसी वकील की जज बनने की उसकी उम्मीदवारी को उसके वकालत के दौरान किसी केस विशेष में व्यक्त की गई राय के आधार पर नहीं रोकना चाहिए। जजों को इस बात के लिए प्रशिक्षित किया जाता है कि वह अपना काम स्वतंत्र होकर करें। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि वकालत के दौरान उसका क्या दृष्टिकोण था। उन्होंने जस्टिस वीआर कृष्ण अय्यर का उदाहरण दिया, जो एक दिग्गज जज बने और जिनकी स्वीकार्यता सभी बड़े जजों के बीच रही।
हालांकि, केरल में वकील रहने के दौरान उनकी एक स्पष्ट राजनैतिक सोच और जुड़ाव था। पीठ ने कहा कि बार के सदस्य होने के नाते अटॉर्नी जनरल सरकार को सलाह दें कि वकील मुद्दों पर बोलते हैं। हम पक्षों के लिए बहस करते हैं। एक अच्छा आपराधिक वकील अपराधी के लिए पेश होगा। यदि वह आर्थिक अपराधी है, तो वह उसका बचाव करेगा। इसका कोई मतलब नहीं होता।
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