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    पाकिस्तान के लिए डिफॉल्ट का खतरा और बढ़ा, फॉरेक्स रिजर्व 8 साल के निचले स्तर पर पहुंचा

  • January 06, 2023

    नई दिल्ली: पाकिस्तान की सरकार के तमाम दावों के बावजूद अर्थव्यवस्था के डिफॉल्ट होने का खतरा बढ़ता जा रहा है. आज आए आंकड़ों के अनुसार देश का विदेशी मुद्रा भंडार गिरावट के साथ 8 साल के निचले स्तरों पर पहुंच गया है. इस गिरावट के साथ पाकिस्तान के लिए एक तरह कुआं और दूसरी तरफ खाई की स्थिति बन गई है. रिजर्व खत्म होने के करीब पहुंचने से पाकिस्तान पर डिफॉल्ट होने का खतरा बढ़ गया है.

    वहीं अगर ऐसी स्थिति में पाकिस्तान को डिफॉल्ट से बचना है तो उसे कर्ज भुगतान के लिए दूसरे देशों से और कर्ज उठाना पड़ेगा जिसका बोझ आगे रिजर्व को और कमजोर कर सकता है. दरअसल इस हफ्ते रिजर्व में आई गिरावट की मुख्य वजह से दूसरे देशों से लिए कर्ज किश्त के भुगतान की वजह से दर्ज हुई है.

    पाकिस्तान के केंद्रीय बैंक का विदेशी मुद्रा भंडार आठ वर्ष के निचले स्तर 5.5 अरब डॉलर पर पहुंच गया है. इससे देश के सामने चूक का जोखिम भी बढ़ गया है.अर्थव्यवस्था को संभालने के सरकार के प्रयासों के बावजूद देश के विदेशी मुद्रा भंडार में गिरावट आई है. डॉन अखबार की रिपोर्ट के मुताबिक स्टेट बैंक ऑफ पाकिस्तान (SBP) का विदेशी मुद्रा भंडार 30 दिसंबर 2022 को समाप्त हुए हफ्ते के दौरान घटकर 5.576 अरब डॉलर रह गया जो इसका आठ साल का निचला स्तर है.


    इस हफ्ते के दौरान, बाहरी कर्ज के पुनर्भुगतान के लिए एसबीपी के विदेशी विनिमय भंडार से 24.5 करोड़ डॉलर की निकासी हुई है. इससे अब पाकिस्तान सरकार के समक्ष डिफॉल्ट का गंभीर खतरा मंडरा रहा है. वहीं अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष के साथ अगली किस्त जारी करने को वार्ता फिर से शुरू करने के अनेक प्रयास भी अब तक विफल रहे हैं.

    रिपोर्ट में कहा गया कि जनवरी 2022 में एसबीपी का विदेशी मुद्रा भंडार 16.6 अरब डॉलर था जिसमें 11 अरब डॉलर की गिरावट आई और यह 5.6 अरब डॉलर रह गया है ऐसे में पाकिस्तान सरकार के पास विदेशी कर्ज को चुकता करने के लिए मित्र देशों से और कर्ज लेने के अलावा और कोई रास्ता नहीं बचा है.

    अखबार की रिपोर्ट के मुताबिक देश के पास विदेशी मुद्रा को जो भंडार बचा है उससे महज तीन हफ्ते का आयात ही किया जा सकता है. यानि स्थिति नहीं सुधरी या और कर्ज नहीं मिला तो एक महीने में श्रीलंका की तरह ही पाकिस्तान को ज्यादा बड़े आपात कदम उठाने पड़ेंगे जिसका सीधा असर आम लोगों पर पड़ेगा.

    फिलहाल सरकार ईंधन की मांग कम करने के लिए बाजारों में काम करने की समय सीमा तय कर चुकी है. हालांकि अगले कदम काफी गंभीर हो सकते हैं. अगर श्रीलंका की बात करें तो पहले वहां भी बिजली के लिए बाजारों की समय सीमा तय की गई थी. जिसके बाद प्रतिबंधों का लंबा सिलसिला शुरू हुआ जो उग्र प्रदर्शनों का आधार बन गया जिसकी वजह से श्रीलंका को सत्ता परिवर्तन देखना पड़ा.

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