भोपाल। सर्वोच्च न्यायालय ने राम नरेश रावत बनाम लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग मध्यप्रदेश शासन के प्रकरण में स्पष्ट आदेश पारित करें हैं कि मध्य प्रदेश शासन के शासकीय विभागों में कार्यरत स्थाई कर्मियों को 15 दिसंबर 2016 से सातवें वेतनमान का न्यूनतम वेतनमान का लाभ दिया जाए। लेकिन जल संसाधन विभाग मध्य प्रदेश के प्रमुख अभियंता जल संसाधन विभाग में कार्यरत 8000 स्थाई कर्मियों को स्थायी वर्गीकृत करने की दिनांक से नियमित वेतनमान का न्यूनतम वेतन देने की कार्यवाही कर रहे हैं। इसमें से स्पष्ट है कि प्रमुख अभियंता जल संसाधन विभाग सर्वोच्च न्यायालय के आदेशों की अवहेलना कर रहे हैं।
मध्यप्रदेश कर्मचारी मंच के प्रांत अध्यक्ष अशोक पांडे ने बताया कि संगठन ने सर्वोच्च न्यायालय का आदेश का हवाला देकर मध्य प्रदेश सरकार से मांग की थी कि राम नरेश रावत बनाम लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग मध्यप्रदेश शासन के प्रकरण में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा 15/12/2016 को दी गई रूलिंग के परिपालन में समस्त विभागों के स्थाई कर्मियों को सातवें वेतनमान का न्यूनतम वेतन मान का लाभ लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग के स्थाई कर्मियों के समान ही एरियर सहित 15/ 12/2016 से दिया जाए।
लेकिन लेकिन जल संसाधन विभाग के प्रमुख अभियंता द्वारा प्रदेश के समस्त मुख्य अभियंताओं को दिनांक 21 दिसंबर 2022 को जारी किए गए पत्र में मात्र नियमित वेतनमान का न्यूनतम वेतन देने का प्रस्ताव के निर्देश दिए गए है। उक्त पत्र में सातवें वेतनमान देने का कहीं कोई उल्लेख प्रमुख अभियंता द्वारा नहीं किया गया है। जल संसाधन विभाग के प्रमुख अभियंता न्यायालय से आदेश प्राप्त स्थाई कर्मियों को सातवें वेतनमान का लाभ देने में आनाकानी कर रहे हैं। इस कारण जल संसाधन विभाग के स्थाई कर्मियों में भयंकर आक्रोश व्याप्त है। मध्यप्रदेश कर्मचारी मंच ने मध्य प्रदेश शासन के मुख्य सचिव को पत्र सौंपकर मांग की है कि जल संसाधन विभाग के समस्त 8000 स्थाई कर्मियों को 15 /12/ 2016 से एरियर सहित सातवें वेतनमान का लाभ संवर्ग वार दिया जाए। मध्यप्रदेश कर्मचारी मंच ने निर्णय लिया है कि यदि जल संसाधन विभाग में स्थाई कर्मियों को मनमाना न्यूनतम वेतनमान दिया गया तो मध्यप्रदेश कर्मचारी मंच जल संसाधन विभाग के प्रमुख अभियंता के विरुद्ध अवमानना याचिका न्यायालय में दायर करेगा।
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