भोपाल। प्रदेश के नगरीय निकायों का खजाना खाली है। प्रदेश के 16 नगर निगमों के साथ ही लगभग सभी नगरीय निकायों की माली हालत खस्ता है। हालात ये है कि निकायों के पास बजट नहीं होने से न केवल मेगा प्रोजेक्ट पर असर पड़ रहा है, बल्कि नियमित होने वाले सड़कों, बगीचे, नाले-पुलिया और रिटेनिंग वॉल जैसे काम अटक गए है। दरअसल प्रदेश के नगरीय निकाय खुद का खर्च भी मुश्किल से निकाल पा रहे हैं। उन्हें बार-बार आय के स्रोत बढ़ाने को कहा जा रहा है। इसके बावजूद सुधार नहीं हो रहा।
हालात यह हैं कि निकायों की आय का ज्यादातर हिस्सा वेतन, पेट्रोल-डीजल, स्टेशनरी, कार्यालयों के रखरखाव आदि पर ही खर्च हो रहा है। ऐसे में विकास कार्यों के लिए राज्य और केंद्र सरकार का सहारा बचता है। अनुदान के रूप में लगभग लगभग 80 प्रतिशत राशि मिलती है। चारों बड़े शहरों को छोड़ दिया जाए तो नगर निगम जैसी बड़ी संस्थाओं के अपने स्रोतों से कमाई सिर्फ 40 करोड़ सालाना तक हो पाती है। बुरहानपुर और मुरैना जैसे नगर निगमों की कमाई 4-5 करोड़ रुपए सालाना है। भोपाल नगर निगम की सालाना कमाई 300 करोड़ से कम है। कमाई और आय के स्रोत बढ़ाने में इंदौर नगर निगम अव्वल है। इस वित्तीय वर्ष में 300 करोड़ से ज्यादा वसूली की है। मार्च तक 700 करोड़ रुपए वसूली का अनुमान है।
नगर निगमों की हालत खस्ता
मप्र के ही नहीं बल्कि देश भर की नगर निगमों की हालत खस्ता है। आरबीआई ने 27 राज्यों के नगर निकायों की आर्थिक स्थिति को लेकर एक रिपोर्ट जारी की है। केंद्रीय बैंक ने ये रिपोर्ट जारी करते हुए चिंता जताते हुए कहा है कि नगर निकायों के पास अपने राजस्व के लिए कोई ठोस तरीका नहीं है बल्कि केंद्र और राज्यों सरकारों से निकायों को जो कुछ अनुदान राशि मिलती से उसी से निकायों का काम चलता है। उनके पास खुद का राजस्व बढ़ाने का कोई मजबूत तरीका नहीं है। आरबीआई ने कहा है कि जहां एक तरफ शहरों की आबादी बढ़ती जा रही है वहीं दूसरी तरफ शहरों को बेहतर सुविधा देने के लिए नगर निकायों के पास राजस्व की कमी है। जबकि निकायों के पास शहरों को विश्वस्तरीय सुविधा देने की जिम्मेदारी है लेकिन राजस्व की कमी के चलते ये बहुत दूर की बात है। हालांकि आरबीआई ने अपनी इस रिपोर्ट में इस बात को भी स्वीकार किया है कि पिछले कुछ दशकों में नगर निकायों के ढांचे में सुधार भी हुआ है। लेकिन कामकाज अधिक बेहतर नहीं हुआ। और इसका कारण ये है कि नगर निकायों के पास अपने राजस्व के लिए मजबूत साधन नहीं हैं। बता दें आरबीआई की ओर से नगर निकायों की आर्थिक स्थिति को ये लेकर ये रिपोर्ट साल 2017-18 से 2019-20 तक के वित्तीय खातों की जांच-पड़ताल करने के बाद जारी की गई है। जिसमें आरबीआई का ये मानना है कि नगर निकाय तमाम कोशिशों के बाद भी अपना राजस्व कमाने का कोई मजबूत तरीका नहीं निकाल पाए हैं। आरबीआई का मानना है कि शहरों में बेहतर सुविधाएं देने के लिए नगर निकायों को अपनी आर्थिक स्थिति मजबूत करने की जरूरत है जिसके लिए उन्हें चाहिए कि केंद्र और राज्य सरकारों से मिलने वाले अनुदान के अलावा अपने राजस्व के लिए मजबूत साधन जुटाए जाएं। क्योंकि शहरों में लोगों को विश्वस्तरीय सुविधाएं तभी मिलेगी जब नगर निकायों के पास अपना राजस्व होगा।वहीं इस रिपोर्ट में ना केवल देश के नगर निकायों की आर्थिक स्थिति पर सवाल उठाए गए हैं बल्कि अपने राजस्व को जुटाने के लिए कई तरीके भी बताए हैं। जिसमें केंद्रीय बैंक का कहना है कि नगर निकायों को राजस्व के लिए जरूरी है कि वो खाली जमीन पर भी टैक्स लगाना शुरू कर दे। इसके साथ ही इमारतों के साथ साथ जमीन पर भी टैक्स वसूला जाए, और यदि कोई इमारत को बेहतर या आधुनिक करवाता है तो उसके लिए भी टैक्स लिया जाए। और निवेशकों को आकर्षित करने के लिए बांड्स जारी रखे जाएं। हालांकि ये सुझाव नागरिकों की जेब अधिक ढिली करवा सकते हैं। लेकिन राजस्व को बढ़ाने के लिए आरबीआई ने देश के निकायों को ये सुझाव दिए हैं।
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