अपनी-अपनी राह…अपनी-अपनी चाह…कांग्रेस के नेता प्रतिपक्ष गोविन्दसिंह के अविश्वास प्रस्ताव से पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस के मुखिया कमलनाथ भी आंखे फेर ली…गोविन्दसिंह सदन में अपनी महत्ता साबित करना चाहते थे और कमलनाथ इसे उनकी नादानी मानते थे…कमलनाथ जानते है कि अविश्वास कांग्रेस का मत हो सकता है, लेकिन वह बहुमत में नहीं बदल सकता है…लिहाजा कांग्रेस को छिछालेदारी में उलझाने और अपना अल्पमत साबित कर भाजपा को मजबूत बनाने की गलती का वो हिस्सा नहीं बनना चाहते थे…इसीलिए सदन छोडक़र खुद को इस नादानी से अलग कर कमलनाथ दूसरे कार्यक्रम में चलते बने…यह वाकया इस बात को साबित करने के लिए काफी है कि सत्ता के महाद्वंद्व से पहले तक भी कांग्रेस चुनाव लडऩे की शक्ति हासिल करना तो दूर वैचारिक शक्ति की एक जुटता भी हांसिल नहीं कर पा रही है…हर नेता अपनी राह पर चल रहा है…अपनी अपनी चाह के लिए संघर्ष कर रहा है…इसलिए भाजपा से लडऩे का संघर्ष सामूहिक नहीं बन रहा है…बीस सालों से सत्ता से रुखसत कांग्रेस बड़ी पार्टी से बुरी पार्टी हो चुकी है… सत्ता तो गई, संगठन की ताकत भी नहीं बच पाई…किसी तरह सत्ता पाई तो अहंकार के चलते टिक नहीं पाई, जिसे चुनाव का चेहरा बनाया उन्हें न केवल पीछे धकाया, बल्कि अपमान का जहर भी पिलाया…लिहाजा अमृत की खोज में सिंधिया ने भाजपा को हाथ थमाया और चंद महीनों में ही कमलनाथ सत्ता से अनाथ हो गए…हालांकि इतने कम समय में भी अपने मजबूत शासन की छाप छोड़ गए…लेकिन बीस साल सत्ता की रुखसती से थकी कांग्रेस अपने पैरों पर खड़ी नहीं हो पाई…वो अब भी दिशाहीन है…वो अब भी बिखरी हुई है…ना वो मुद्दों के संघर्ष में शामिल है और न ही जनता की जरूरतों में शुमार है…न कोई राह दिखाने वाला है और न कोई दिखाई राह पर चलने वाला…पिछली बार की तरह बिल्ली के भाग से छीका टूटने जैसी परिस्थिति बनने और फिर से सत्ता मिलने की आस में डूबी कांग्रेस ने यदि भाजपा के लगातार सत्ता में रहने से उपजी विरोधी भावनाएं यानी एंटीइंकबंसी का फायदा नहीं उठाया…खुद पर विश्वास नहीं दिलाया…एकजुट होकर ताकत से भिडऩे का हौंसला नहीं दिखाया तो जनता जैसा है वैसा चलने दो की राह पर चल पड़ेगी और बिखरी कांग्रेस एक थी कांग्रेस होकर रह जाएगी…वैसे भी भाजपा के विरोध में लगातार सत्ता में रहने से उपजी विरोधी भावनाएं है तो पक्ष में शिवराज का इतने लम्बे समय की सत्ता का अनुभव…जनता पर पकड़, और पार्टी की मजबूती शामिल है, जिसे केवल विरोधी भावनाओं से नहीं मिटाया जा सकता…इसीलिए कांग्रेस को चाहिए कि वो अविश्वास प्रस्ताव जैसी बचकानी हरकत के बजाय जनता के बीच विश्वास प्रस्ताव लेकर जाए और उस पर मोहर लगवाए…
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