उज्जैन। संभाग के सबसे बड़े सरकारी जिला अस्पताल में इन दिनों बजट के अभाव में मरीजों को मिलने वाली उपचार सुविधाएँ प्रभावित हो रही है। इतना ही नहीं संभाग स्तर के इस सरकारी अस्पताल में स्वीकृति के बावजूद डॉक्टरों के 43 प्रतिशत पद खाली पड़े हैं। जिला अस्पताल में मरीजों के उपचार के लिए 750 बेड की व्यवस्था है। यहाँ जिले के अलावा संभाग के अन्य क्षेत्रों से भी दुर्घटनाओं से लेकर अन्य तरह की बीमारियों के मरीज उपचार के लिए आते हैं। कहने को तो सरकारी जिला अस्पताल में मरीजों की जाँच के लिए सेंट्रल लैब, डायलेसिस यूनिट, ओपीडी, आइसीयू आदि की व्यवस्था है। इसके अलावा दीनदयाल उपचार योजना के तहत मरीजों को 100 से अधिक प्रकार की नि:शुल्क दवा वितरण का केन्द्र भी जिला अस्पताल में है। मगर पिछले दो वर्षों में बजट के अभाव में यहाँ मरीजों को मिलने वाली उपचार सुविधाएँ लगातार प्रभावित हो रही है। स्थिति यह है कि जिला अस्पताल के इमरजेंसी वार्ड तक में ब्लड प्रेशर जाँचने की मशीन तक नहीं है। इसके अलावा जिला अस्पताल के 10 बेड के आइसीयू को अत्याधुनिक बनाने का काम भी पिछले दो महीनों से चल रहा है।
बजट की कमी के चलते यह काम अभी तक पूरा नहीं हो पाया है। इसके अलावा डायलेसिस यूनिट को अपडेट करने का काम भी धीमा चल रहा है। इससे मरीजों को परेशानी हो रही है और आइसीयू की आवश्यकता वाले मरीजों को माधव नगर तथा अन्य अस्पतालों में भेजा जा रहा है। दूसरी ओर जिला अस्पताल में मरीजों के उपचार के लिए शासन की ओर से डॉक्टरों के 77 पद स्वीकृत हैं, परंतु वर्तमान में यहाँ केवल 44 डॉक्टर ही सेवाएँ दे रहे हैं। बाकी के 33 पद वर्षों से खाली पड़े हैं जो कुल स्वीकृत पदों का 43 प्रतिशत है। यही कारण है कि जिला अस्पताल के इमरजेंसी वार्ड से लेकर ओपीडी और अन्य वार्डों में उपचार के लिए आ रहे मरीजों को समय पर चिकित्सक और उपचार नहीं मिल पा रहा है। हालाँकि अस्पताल प्रबंधन का कहना है कि रिक्त पदों की पूर्ति करने के लिए शासन से लंबे समय से माँग की जा रही है, परंतु स्वीकृत पद के मुकाबले डॉक्टरों की नियुक्ति नहीं की जा रही। इधर बजट के अभाव में जिला अस्पताल के बेड पर गद्दे और चादर तक नये नहीं खरीद पा रहे हैं।
©2024 Agnibaan , All Rights Reserved