वैसे तो अमेरिका (US) आज दुनिया में महाशक्तियों की श्रेणी में आता है। यहां तक कि अमेरिका (US) ने कई लड़ाईयां भी लड़ी हैं और कई जीती हैं, किन्तु कुछ युद्ध उसके लिए गले की हड्डी बन गए थे। न निगलते बन रहा था और न उगलते बन रहा था। ऐसा ही एक युद्ध वियतनाम (war vietnam) का युद्ध है जहां अमेरिका को अपने करीब 58,000 सैनिकों को खोना पड़ा। उस समय ऐसा भी हुआ था कि उसके B-52 बमवर्षक भी काम नहीं आए थे उसे मुंहकी खानी पड़ी थी।
वियतनाम पर 19वीं सदी से फ्रांस का कब्जा रहा है। दूसरे विश्व युद्ध के दौरान जापान ने वियतनाम पर हमला किया। अब वियतनाम को एक साथ दो मोर्चे पर लड़ना था। ये वियतनाम का युद्ध था, जो करीब 20 साल (1955 से 1975) तक चला था।
जानकारी के लिए बता दें कि शीत युद्ध के दौरान जब पूरी दुनिया दो हिस्सों में बंटी थी, तब के दौर में यह सबसे भीषण सैन्य संघर्ष था। इसमें एक तरफ रूस और चीन समेत अन्य साम्यवादी सरकारों से समर्थन प्राप्त उत्तरी वियतनाम की सेना थी, तो दूसरी तरफ अमेरिका और अन्य मित्र देशों के समर्थन से लड़ रही दक्षिणी वियतनाम की सेना थी।
दिसंबर 1972 में हुए इस भीषण हमले को अमेरिका ने ऑपरेशन लाइनबैकर-II नाम दिया था। यह अमेरिका की वायु शक्ति का अब तक का सबसे भयानक और चौंकाने वाला प्रदर्शन था। 12 दिनों के अंदर B-52 बमवर्षक विमानों ने कुल 730 उड़ानें भरी थीं। तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार हेनरी किसिंजर के शब्दों में इतने बड़े पैमाने पर बम गिराने का मकसद उत्तरी वियतनाम को तहस-नहस कर देना था। तब के अमेरिकी राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन ने मिशन लॉन्चिंग की पूर्व संध्या पर 17 दिसंबर को कहा था कि “उत्तरी वियतनाम बहुत आश्चर्यचकित होने जा रहा है
ये हुआ था युद्ध का अंत
आखिरकार जनवरी 1973 में अमेरिका और उत्तरी वियतनाम के बीच एक शांति संधि हुई। इस संधि के साथ ही अमेरिका और वियतनाम के बीच युद्ध का अंत हो गया। लेकिन उत्तरी और दक्षिण वियतनाम के बीच लड़ाई जारी रही। 30 अप्रैल, 1975 को डीआरवी सेना ने साइगोन पर कब्जा कर लिया और उसका नाम हो चो मिन्ह शहर कर दिया। 1976 में डीआरवी ने वियतनाम का एकीकरण किया और उसका नाम समाजवादी गणराज्य वियतनाम हो गया।
अमेरिका और वियतनाम का नुकसान
युद्ध में दोनों पक्षों को भारी नुकसान उठाना पड़ा। वियतनाम के करीब 20 लाख लोगों को मारे जाने और 30 लाख के करीब लोगों को घायल होने का अनुमान है। करीब 1.2 करोड़ लोगों ने दूसरे देशों में शरण लिया। अमेरिका को अरबों डॉलर पैसा खर्च करना पड़ा और उसके करीब 58,000 सैनिक मारे गए।
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