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चीन की चुनौती से निपटने के लिए हमें बनानी होगी व्यापक रणनीति

December 16, 2022

– कमलेश पांडेय

आपको पता है कि भारत-चीन के बीच वास्तविक नियंत्रण रेखा पर कई बार झड़प हो चुकी है, जिस दौरान भारतीय सेना ने अद्भुत शौर्य और पराक्रम दिखाते हुए कई बार चीनी सेना को खदेड़ चुकी है। इस दौरान हमारी सेना ने अपने वीर जवानों के बलिदान भी दिए हैं, जिस पर पूरे देश को गर्व है। अब तेजी से बदलते जियो-पॉलिटिक्स के बीच वक्त की मांग है कि चीन की चुनौती से निपटने के लिए हम व्यापक रणनीति बनाएं, ताकि 1962 का शर्मनाक इतिहास खुद को दोहरा नहीं पाए।

बता दें कि स्वतंत्र भारत में भारत और चीन के बीच एक बार ही युद्ध साल 1962 में हुआ था। तब एक माह तक चले युद्ध के दौरान चीन ने भारत की काफी जमीन हड़प ली थी, जिसे वापस पाने के लिए पीओके की तरह ही संसदीय प्रतिबद्धता दिखाने की जरूरत है। इस बात में दो राय नहीं कि सामरिक महत्व की दृष्टि से सीओके यानी चीन ओक्यूपाइड कश्मीर का अपना महत्व है।

इतिहास गवाह है कि 1967 में सिक्किम बॉर्डर पर नाथु ला में दोनों देश के सैनिक आपस में भिड़ गए थे, जिसमें दोनों पक्षों के कई सैनिकों की जान चली गई थी। हालांकि, वास्तविक संख्या के बारे में दोनों देश अलग-अलग दावे करते आये हैं। वहीं, 1975 में अरुणाचल प्रदेश में चीनी सेना ने भारतीय सेना के गश्ती दल पर हमला किया था, जिसके बाद भारतीय सेना ने भी जवाबी कार्रवाई की थी।


वहीं, 2020 में 15-16 जून की मध्य रात्रि के दौरान लद्दाख के गलवान में चीनी सेना ने भारतीय सेना पर हमला किया था, जिस हिंसक झड़प में भारत के एक कमांडर समेत 20 जवान शहीद हो गए, जबकि चीन के लगभग 42 सैनिकों को अपनी जान गंवानी पड़ी थी। वहीं, अगस्त 2020 में भारत ने चीन पर एक सप्ताह में दो बार सीमा पर तनाव भड़काने का आरोप लगाया था, जिसे चीन ने नकार दिया था।

सितंबर 2020 में ही चीन ने भारत पर अपने सैनिकों पर गोलियां चलाने का आरोप लगाया था। फिर भारत ने भी चीन पर ऐसा ही आप मढ़ा था। वहीं, 20 जनवरी 2021 को उत्तरी सिक्किम के नाकु ला में भारत-चीन के सैनिकों के बीच हुई झड़प में कुछ सैनिकों के घायल होने की खबर आई थी। जिसके बाद स्थानीय कमांडरों द्वारा स्थापित प्रोटोकॉल के अनुसार मामला हल किया गया था।

वहीं, 9 दिसम्बर 2022 को तवांग, अरुणाचल प्रदेश में भारत और चीन के सैनिकों के बीच झड़प हुई, जिसमें दोनों पक्षों के सैनिक घायल हुए। इन हालातों से स्पष्ट है कि भारत और चीन के बीच कभी भी कुछ भी हो सकता है, जिससे निपटने के लिए भारतीय सेना हमेशा सतर्क रहती है।

बता दें कि भारत के लद्दाख की 1,597 किलोमीटर, हिमाचल प्रदेश की 200 किलोमीटर, उत्तराखंड की 345 किलोमीटर, सिक्किम की 220 किलोमीटर और अरुणाचल प्रदेश की 1,126 किलोमीटर सीमा चीन से सटती है, जिसे के एलएसी कहा जाता है। वैसे तो ब्रिटिशकाल में ही मैकमोहन लाइन द्वारा भारत-चीन की सीमा को स्पष्ट कर दिया गया था, लेकिन चीन अब उसे मानने से इनकार करता है। यही वजह है कि दोनों देशों के सैनिक परस्पर लड़ते-भिड़ते रहते हैं।

भारत और चीन के बीच एलएसी तीन क्षेत्रों में बंटी हुई है। पहला पूर्वी क्षेत्र जो अरुणाचल प्रदेश से सिक्किम तक फैला हुआ है। दूसरा मध्य क्षेत्र जो उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश की सीमाओं में फैला हुआ है। और तीसरा पश्चिमी क्षेत्र जो लद्दाख की सीमा से जुड़ा हुआ है। इन क्षेत्रों में वक्त-वक्त पर पैदा हुए विवादों के मद्देनजर दोनों देशों के बीच कई बार सैन्य स्तर की बातचीत हो चुकी है, लेकिन तनाव अब भी जारी है।

कहना न होगा कि इस मामले में चीन का राजनीतिक नेतृत्व भी समझदारी नहीं दिखा पा रहा है, क्योंकि उसकी तो मूल मान्यता ही रही है कि सत्ता बंदूक की नली से निकलती है। इसलिए शायद वह इसी बंदूक की नली से अपनी सीमाओं का विस्तार करने को भी लालायित है।

रक्षा मामलों के जानकार बताते हैं कि ऊंची चोटियों पर काबिज होकर भारत की नकेल कसते रहने की गरज से चीनी सेना गाहे-बगाहे बखेड़ा खड़ी करती रहती है, जिसका माकूल जवाब अब मोदी सरकार में मिल रहा है। भारत ने अपनी सीमाओं पर त्वरित कार्रवाई के लिए सेना के माउंटेन स्ट्राइक कोर के छोटे युद्धक समूह तैनात कर रखे हैं। इन समूहों में इंफेंट्री, आर्टलरी तथा आर्म ब्रिगेड की यूनिटों को मिलाया गया है। इनके हाई एलर्ट पर रहने के कारण ही चीन की चालबाजी विफल साबित हो रही है।

भारत का माउंटेन स्ट्राइक कोर तो अब हमेशा तैयार रहता है जो अधिक ऊंचाई वाले इलाकों में युद्ध करने में दक्षता हासिल किए हुए है। वहीं, आईटीबीपी के जवान भी सीमाओं पर हर वक्त मुस्तैदी बरत रहे हैं। एलएसी पर भारत-तिब्बत सीमा पुलिस यानी आईटीबीपी के 173 बॉर्डर आउट पोस्ट यानी बीओपी हैं, जिनमें पश्चिमी क्षेत्र (लद्दाख) में 35, मध्य क्षेत्र (उत्तराखंड-हिमाचल प्रदेश) में 71और पूर्वी क्षेत्र (अरुणाचल प्रदेश-सिक्किम) के 67 बीओपी शामिल हैं।

बता दें कि चीन का नया सीमा कानून लागू होने के बाद से ही भारतीय सेना सतर्क है और मौका मिलते ही जवाबी कार्रवाई करने से नहीं हिचक रही है, क्योंकि मोदी सरकार ने उसे पूरी एहतियाती छूट दे रखी है।

देखा जाए तो चीन की तरफ से एलएसी के निकट सैन्य ढांचा खड़ा किये जाने और सैनिकों की तैनाती में लगातार इजाफा किये जाने और लगभग 600 से अधिक गांव बसा लेने से भारतीय सेना भी सतर्क है और उसी के अनुरूप जवाबी तैयारी भी कर रही है। चीन से मुकाबले के लिए भारत भी अपनी सीमा में सड़कों का जाल बिछा रहा है। गत पांच वर्षों में वह 2,088 किलोमीटर सड़कें बना चुका है।

इसके अलावा, सरकार अरुणाचल सीमा पर भी अरुणाचल फ्रंटियर हाईवे समेत 61 रणनीतिक सड़कों का निर्माण करेगी, जिसमें से 32 सड़कों के निर्माण की मंजूरी गलवान झड़प के बाद मिली है। बता दें कि अरुणाचल फ्रंटियर हाईवे नौ जिलों को जोड़ेगी और मैकमोहन लाइन के समानांतर बनेगी। वहीं, सेला पास में सेला टनल भी बनाया जा रहा है, जिससे चीन की सीमा तक पहुंच आसान होगी। इन सभी सड़कों के प्रतिरक्षात्मक होने के अलावा आर्थिक और पर्यटकीय महत्व भी है। इससे स्थानीय अर्थव्यवस्था को भी मजबूती मिलेगी।

इस बात में कोई दो राय नहीं कि भौगोलिक दृष्टिकोण, अर्थव्यवस्था और सैन्य तकनीक व जवान जमावड़े की दृष्टि से भारत से दुगुना से अधिक बड़ा है। लेकिन भारत भी आर्थिक नीति, सैन्य उपकरणों और जवान संख्या बल में उतना कमजोर नहीं है कि चीन की ओछी चाल बर्दाश्त करता रहे। यदि चीन अपनी मनमानी चाल इसी तरह से चलता रहेगा, तो उसे भारत की ओर से कड़ा जवाब भी मिलता रहेगा। हमारी पूरी रणनीति भी इसी बात पर केंद्रित रहनी चाहिए।

( लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)

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