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    कहां और कैसे हुई शिवलिंग की उत्पत्ति?, जानिए शिवजी से जुड़े ये रहस्य

  • December 10, 2022

    नई दिल्‍ली। पौराणिक कथाओं (mythology) के अनुसार इस ब्रह्मांड के सृष्टि बनने से पहले पृथ्वी एक अंतहीन शक्ति थी। सृष्टि बनने के बाद भगवान विष्णु पैदा हुए और भगवान विष्णु (Lord Vishnu) की नाभि से पैदा हुए भगवान ब्रह्मा। पृथ्वी पर पैदा होने के बाद कई सालों तक इन दोनों में युद्ध होता रहा है। दोनों आपस में एक दूसरे को ज्यादा शक्तिशाली मानते रहे। तभी आकाश में एक चमकता हुआ पत्थर दिखा और आकाशवाणी (Oracle) हुई कि जो इस पत्थर का अंत ढूंढ लेगा, उसे ही ज्यादा शक्तिशाली माना जाएगा। वह पत्थर शिवलिंग था।

    भगवान शिव को भक्त शिवशंकर, त्रिलोकेश, कपाली, नटराज समेत कई नामों से पुकराते हैं। भगवान शिव की महिमा अपरंपार है। हिंदू धर्म में भगवान शिव की मूर्ति व शिवलिंग दोनों की पूजा का विधान है। कहते हैं कि जो भी भक्त भगवान शिव की सच्ची श्रद्धा से पूजा-अर्चना करता है, उसकी हर मनोकामना पूर्ण होती है। धार्मिक शास्त्रों में शिवलिंग का महत्व बताया गया है. शिवलिंग को इस ब्रह्मांड का प्रतीक माना जाता है. तो चलिए पंडित इंद्रमणि घनस्याल से जानते हैं शिवलिंग से जुड़ी कुछ रोचक बातें।



    मान्यता है कि शिवलिंग की पूजा समस्त ब्रह्मांड की पूजा के बराबर मानी जाती है, क्योंकि शिव ही समस्त जगत के मूल हैं। शिवलिंग के शाब्दिक अर्थ की बात की जाए तो ‘शिव’ का अर्थ है ‘परम कल्याणकारी’ और ‘लिंग’ का अर्थ होता है ‘सृजन’। लिंग का अर्थ संस्कृत में चिंह या प्रतीक होता है।

    इस तरह शिवलिंग का अर्थ हुआ शिव का प्रतीक। भगवान शिव को देव आदिदेव भी कहा जाता है। जिसका मतलब है कोई रूप ना होना। भगवान शिव अनंत काल और सृजन के प्रतीक हैं। भगवान शिव प्रतीक हैं, आत्मा के जिसके विलय के बाद इंसान परमब्रह्म को प्राप्त कर लेता है।

    कैसे हुई शिवलिंग की उत्पत्ति?

    पौराणिक कथा के अनुसार, सृष्टि बनने के बाद भगवान विष्णु और ब्रह्माजी में युद्ध होता रहा। दोनों खुद को सबसे अधिक शक्तिशाली सिद्ध करने में लगे थे। इस दौरान आकाश में एक चमकीला पत्थर दिखा और आकाशवाणी हुई कि इस पत्थर का जो भी अंत ढूंढ लेगा, वह ज्यादा शक्तिशाली माना जाएगा. मान्यता है कि वह पत्थर शिवलिंग ही था। पत्थर का अंत ढूंढने के लिए भगवान विष्णु नीचे तो भगवान ब्रह्मा ऊपर चले गए परंतु दोनों को ही अंत नहीं मिला. तब भगवान विष्णु ने स्वयं हार मान ली. लेकिन ब्रह्मा जी ने सोचा कि अगर मैं भी हार मान लूंगा तो विष्णु को ज्यादा शक्तिशाली समझा जाएगा। इसलिए ब्रह्माजी ने कह दिया कि उनको पत्थर का अंत मिल गया है। इसी बीच फिर आकाशवाणी हुई कि मैं शिवलिंग हूं और मेरा ना कोई अंत है, ना ही शुरुआत और उसी समय भगवान शिव प्रकट हुए।

    शिवलिंग का अर्थ

    शिवलिंग दो शब्दों से बना है. शिव व लिंग, जहां शिव का अर्थ है कल्याणकारी और लिंग का अर्थ सृजन। शिवलिंग के दो प्रकार हैं, पहला ज्योतिर्लिंग और दूसरा पारद शिवलिंग। ज्योतिर्लिंग को इस पूरे ब्रह्मांड का प्रतीक माना जाता है. ज्योतिर्लिंग की उत्पत्ति को लेकर कई कथाएं प्रचलित हैं. कहते हैं कि मन, चित्त, ब्रह्म, माया, जीव, बुद्धि, आसमान, वायु, आग, पानी और पृथ्वी से शिवलिंग का निर्माण हुआ है।

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