भोपाल। पंचांगीय गणना के अनुसार 15 दिसंबर को तड़के 4 बजकर 42 मिनट पर सूर्य देव वृश्चिक राशि को छोड़कर धनु राशि में प्रवेश करेंगे। धनु राशि में सूर्य का प्रवेश धनु संक्रांति कहलाएगी। धर्मशास्त्र के जानकारों के अनुसार धनुर्मास में एक माह तक विवाह आदि मांगलिक कार्य नहीं होंगे। यह महीना धर्म आराधना व तीर्थाटन के लिए विशेष माना गया है।
ज्योतिषाचार्य पं.अमर डब्बावाला ने बताया धर्मशास्त्र व निर्णय सिंधु में सूर्य की संक्रांतियों के संबंध में अलग-अलग बातें कही गई हैं। इनमें सूर्य की धनु संक्रांति विशेष बताई गई है। क्योंकि धनु संक्रांति में ही पौष मास आता है और पौष मास में सूर्य की आराधना विशेष बताई गई है। ऐसी मान्यता है कि धनु राशि के सूर्य की साक्षी में धर्म तथा तीर्थ यात्रा करने से भक्तों की मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। क्योंकि प्राकृतिक दृष्टि कोण से इसी दौरान हिमपात, शीतलहर, ठंड का बदला हुआ प्रभाव दृष्टिगत होता है। धर्म, तपस्या तथा आराधना के मान से इसी समय मनुष्य की परीक्षा होती है। धनु संक्रांति के परिभ्रमण में सनातन धर्म का पालन करने वाले श्रद्धालु निरंतर भगवत भजन करते हुए अपनी साधना उपासना को आगे बढ़ाते हैं, इससे उन्हें आदित्य लोक की प्राप्ति होती है।
मकर संक्रांति के बाद फिर गूंजेगी शहनाई
ज्योतिष मत के अनुसार सूर्य देव एक माह में राशि परिवर्तन करते हैं। इसके अनुसार 15 जनवरी को सूर्य धनु राशि को छोड़कर मकर राशि में प्रवेश करेंगे। इसे ही सूर्य की मकर संक्रांति कहा जाता है। मकर राशि से सूर्य उत्तरायन की ओर यात्रा शुरू करेंगे। सूर्य के उत्तरायन होती ही मकर संक्रांति के बाद से एक बार फिर मांगलिक कार्यों की शुरुआत होगी और शहनाई की गूंज सुनाई देगी। डब्बावाला के अनुसार धनु सूर्य के दक्षिणायन की आखिरी राशि है। बता दें सूर्य देव छह माह उत्तरायन तथा छह माह दक्षिणायन में भ्रमण करते हैं।
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