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    गुजरात में AIMIM नहीं खोल पाई खाता, आखिर क्‍यों ओवैसी को मुस्लिमों ने नकारा ?

  • December 09, 2022

    नई दिल्‍ली । गुजरात (Gujarat) की जनता ने पिछले सारे चुनावी रिकॉर्ड को तोड़ते हुए बीजेपी (BJP) को सबसे ज्यादा सीटें देकर एक नया इतिहास तो रचा ही है लेकिन सबसे ज्यादा गौर करने वाली बात ये है कि वहां के मुसलमानों (Muslims) ने धर्म के आधार पर ध्रुवीकरण की राजनीति को पूरी तरह से नकार दिया है. अगर ऐसा हुआ होता, तो हैदराबाद के सांसद असदुद्दीन ओवैसी (MP Asaduddin Owaisi) की पार्टी AIMIM का खाता तो खुलना ही चाहिए था लेकिन ऐसा नहीं हुआ.

    गुजरात में तकरीबन 10 फीसदी मुस्लिम आबादी है लेकिन हैरानी की बात ये है कि मुसलमानों के सबसे बड़े खैरख्वाह बनने का ठेकेदार बनने वाले ओवैसी की पार्टी को इस लायक भी नहीं समझा कि उसे आधा फीसदी वोट तो मिल जाये. ओवैसी ने वहां मुस्लिम बहुल आबादी वाली 13 सीटों पर चुनाव लड़ा था लेकिन उनकी पार्टी को कुल 93 हजार ही वोट हासिल हो पाये, जो नोटा को मिले वोटों से भी बेहद कम है.


    गुजरात के चुनाव-नतीजों ने देश में धर्म व जाति के आधार पर होने वाले ध्रुवीकरण को ठुकरा कर अल्पसंख्यक मुस्लिम समुदाय ने देश को एक नया संदेश दिया है,जिस पर कांग्रेस समेत उन सभी पार्टियों को गंभीरता से सोचना चाहिए,जो इस वर्ग को अब तक अपना सबसे बड़ा वोट बैंक मानती आई है.नतीजों का विश्लेषण करें,तो अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी ने कांग्रेस के सबसे मजबूत माने जाने वाले मुस्लिम वोट बैंक में सेंध लगाने में कामयाबी तो पाई है लेकिन उन सभी सीटों पर बीजेपी को ही फायदा मिला है. इसलिये कि बीजेपी की रणनीति भी यही थी कि ऐसी तमाम सीटों पर कांग्रेस और आप के बीच जितने अधिक वोटों का बंटवारा होगा, उतना ही बीजेपी जी जीत का रास्ता आसान भी होगा और ऐसा ही हुआ भी.

    ये नतीजे राजनीतिक पंडितों के लिए भी एक बड़ा सवाल ये खड़ा करते हैं कि क्या गुजरात के मुस्लिमों ने साल 2002 में गोधरा की घटना के बाद हुए साम्प्रदायिक हिंसा को भुलाकर भगवा पार्टी के राज में ही अपनी जिंदगी को महफूज़ मान लिया है? हो सकता है कि ये समझौता खुशी का नहीं, बल्कि बेबसी व मजबूरी का ही रहा हो कि जहां चैन से जीना है, वहां की हुकूमत की नाफ़रमानी करना बेकार ही साबित होगा.

    ओवैसी की पार्टी के अलावा कांग्रेस और आम आदमी पार्टी को भी ये बड़ी उम्मीद थी कि गुजरात की 10 फीसदी मुस्लिम आबादी उसके पक्ष में वोट करके फ़िज़ा बदल सकती है. साल 2017 के चुनाव में ऐसा देखने को भी मिला लेकिन इसके बावजूद बीजेपी सत्ता पाने में कामयाब हो गई थी.हालांकि तब पाटीदार समाज की बीजेपी से नाराजगी भी एक बड़ी वजह थी कि उसने बीजेपी को 99 सीटों पर सिमटकर रख दिया था.वही कारण था कि कांग्रेस ने तब अपना सबसे बेहतर प्रदर्शन करते हुए 77 सीटें हासिल कर ली थी.और,अब गुजरात के चुनावी इतिहास में उसका सबसे खराब प्रदर्शन रहा है. इसकी वजह भी आप ही है क्योंकि जो प्रयोग उसने पंजाब में किया,वही अब उसे गुजरात में दोहरा रही है.वहां तो उसने दूसरे प्रयास में ही कांग्रेस से सत्ता छीन ली.गुजरात में वह अगले पांच साल बाद भी बीजेपी से सत्ता बेशक ही न छीन पाये लेकिन कांग्रेस के वजूद को तो मरणासन्न अवस्था में ला देने की तैयारी में है.इसका ट्रेलर उसने अपने पहले चुनाव में ही दे दिया है.

    कांग्रेस हमेशा से ही मुस्लिमों को अपना पारंपरिक वोट बैंक मानती आई है लेकिन आप ने उसमें जिस तरह से उसमें सेंध लगाई है,उसका खामियाजा दिल्ली के बाद अब गुजरात में भी उसे भुगतना पड़ा है.लेकिन गुजरात के नतीजों ने आप को भी इतना अहसास तो करा ही दिया है कि वहां के मुस्लिमों का भरोसा जीतने के लिए अभी उसे बहुत मेहनत करनी होगी.

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