भोपाल। प्रदेश में सरकार 22 हजार मेगावाट बिजली की उपलब्धता के दावे करती है, लेकिन हकीकत यह है की जब भी बिजली की मांग बढ़ती है उत्पादन की पोल खुल जाती है। अगर हकीकत पर नजर डालें तो मप्र के बिजली सयंत्र 5 हजार मेगावाट बिजली भी नहीं बना पा रहे हैं। यानी बिजली के लिए प्रदेश को पूरी तरह निजी कंपनियों पर निर्भर रहना पड़ता है। अगर वर्तमान स्थिति का आकलन करें तो आने वाले समय में मप्र में बिजली संकट 5 हजार मेगावाट तक बढ़ सकता है। ऊर्जा विभाग से मिली जानकारी के अनुसार, वर्तमान में सरकारी उपक्रमों से बिजली का उत्पादन 4,991 मेगावाट हो रहा है। जबकि डिमांड 15,000 मेगावाट तक है। इस कमी को दूर करने सरकार एनटीपीसी, सेंट्रल जोन, बैंकिंग और निजी क्षेत्र से करीब 7,400 मेगावाट बिजली क्रय कर रही है। केंद्रीय विद्युत नियामक आयोग से जुड़ी टेरी संस्था ने आने वाले बिजली संकट को देखते हुए सरकार से प्लान बनाने को कहा है। केंद्रीय विद्युत नियामक आयोग ने मप्र में संभावित बिजली की दीर्घकालीन मांग का आकलन किया है। इस आकलन के आधार पर टेरी के साथ ऊर्जा विभाग की तीन चरणों में बैठक हो चुकी है। टेरी से विद्युत की दीर्घकालीन मांग एवं उपलब्धता का आकलन अगले माह तक सरकार को प्राप्त हो जाएगी।
नई विद्युत इकाई शुरू करने का प्रस्ताव
बिजली की कमी ने प्रदेश सरकार की तैयारियों की पोल खोल दी है। वैसे तो प्रदेश में 22 हजार मेगावाट बिजली की उपलब्धता के दावे किए जा रहे हैं लेकिन साढ़े 12 हजार मेगावाट बिजली की मांग पहुंचते ही संकट खड़ा हो जाता है। मप्र पॉवर जनरेटिंग कंपनी द्वारा भारत सरकार के उपक्रम कोल इंडिया लिमिटेड के साथ एक संयुक्त उपक्रम का गठन कर अमरकंटक ताप विद्युत गृह में 660 मेगावाट क्षमता की नई इकाई शुरू करने का प्रस्ताव दिया गया है। साथ ही सतपुड़ा ताप विद्युत गृह सारणी में 660 मेगावाट क्षमता की इकाई स्थापित करने का भी विचार है। इसके अलावा आयोग द्वारा वितरण कंपनियों के आरपीओ दायित्वों में बढ़ोतरी संभावित है, जिसकी वजह से नवकरणीय ऊर्जा उपलब्ध होगी। ऊर्जा विभाग के प्रमुख सचिव संजय दुबे का कहना है कि ऊर्जा विभाग ने जो प्लान तैयार किया है, उसके हिसाब से आगामी 2023 तक बिजली संकट नहीं होगा। केंद्रीय विद्युत नियामक आयोग के आकलन के आधार पर विभाग द्वारा बनाए गए प्लान से टेरी भी सहमत है। ऊर्जा विभाग ने मप्र में बिजली संकट को देखते हुए और इससे निपटने के लिए तैयार किए गए प्लान पिछले दिनों मुख्यमंत्री के समक्ष प्रस्तुत किया । इस प्लान से मुख्यमंत्री संतुष्ट नजर आए।
22 हजार मेगावाट नहीं उपलब्धता
प्रदेश सरकार के बिजली उपलब्धता के 22 हजार मेगावाट के दावे पर प्रबंध संचालक मप्र पावर मैनेजमेंट कंपनी के अनुसार 22 हजार मेगावाट अलग-अलग श्रेणी में बिजली के करार है। कोयला से बनने वाली बिजली का 14 हजार मेगावाट हिस्सा है जिसमें 80 फीसदी ही इकाई से बिजली उत्पादन होता है जो करीब 10-11 हजार मेगावाट है। इसके अलावा हवा,न्यूक्लियर, सोलर से बिजली मिलती है। कई बार मौसम और हवा नहीं चलने से इनका हिस्सा पर्याप्त नहीं मिलता है। प्रदेश में बिजली का संकट नहीं है। कभी थोड़ी कमी होती है तो एक्सचेंज के जरिए खरीद ली जाती है।
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