नई दिल्ली: अडानी ग्रुप के चेयरमैन गौतम अडानी (Adani Group Chairman Gautam Adani) ने इसी साल मई में स्विस बिल्डिंग मटीरियल कंपनी होल्सिम एजी (Swiss building materials company Holcim AG) की भारतीय सीमेंट कंपनी अंबुजा सीमेंट्स लिमिटेड और एसीसी लिमिटेड (Ambuja Cements Limited and ACC Limited) को 10.5 बिलियन डॉलर में खरीद कर सीमेंट कारोबार में एंट्री की. इस डील (Holcim Deal) के बाद अडानी ग्रुप 70 मिलियन टन क्षमता के साथ देश का दूसरा सबसे बड़ा सीमेंट प्रोड्यूसर बन गया. मौजूदा समय में आदित्य बिड़ला ग्रुप की अल्ट्राटेक सीमेंट लिमिटेड 115 मिलियन टन के उत्पादन के साथ सबसे बड़ी कंपनी है.
अडानी यहीं नहीं रुके, 17 सितंबर को होल्सिम डील के पूरा होने के मौके पर अपने भाषण में उन्होंने इस सेक्टर को लेकर अपना व्यू रखा. भारत दुनिया में सीमेंट का दूसरा सबसे बड़ा प्रोड्यूसर है, चीन की 1,600 किलोग्राम की तुलना में हमारी प्रति व्यक्ति खपत सिर्फ 250 किलोग्राम है. उन्होंने अगले पांच वर्षों में ग्रुप की सीमेंट क्षमता को दोगुना करके 140 मिलियन टन करने की योजना की घोषणा कर डाली. ग्रुप ने तुरंत कहा कि वह कारोबार में 20,000 करोड़ रुपये का निवेश करेंगे.
केवल पांच वर्षों में क्षमता दोगुनी करने की अडानी की महत्वाकांक्षा ऑर्गेनिक नहीं हो सकती है. अप्रूवल्स और दूसरी जरूरतों को ध्यान में रखते हुए, ग्रीन-फील्ड प्लांट्स को तैयार करने में समय के साथ काफी लेबर की भी जरूरत पड़ेगी. चूना पत्थर की उपलब्धता सुनिश्चित करना एक और बड़ी चुनौती है. ऐसे में दक्षिण भारत कई कारणों से अडानी के लिए मायने रखता है.
पश्चिम, उत्तर या मध्य भारत में ज्यादा क्षमता उपलब्ध नहीं है. इन क्षेत्रों में अब अडानी के अलावा अल्ट्राटेक, डालमिया भारत लिमिटेड और श्री सीमेंट लिमिटेड जैसे बड़े प्लेयर्स का दबदबा है. दूसरी ओर, दक्षिण भारत, सीमेंट का सबसे बड़ा उत्पादक होने के बावजूद (यह देश की 642 मिलियन टन नेमप्लेट क्षमता का 197 मिलियन टन है), 43 प्लेयर्स में सबसे ज्यादा बंटा हुआ है.
इसके अलावा, अडानी की मौजूदा 70 मिलियन टन क्षमता में से केवल लगभग 9 मिलियन (10 फीसदी से थोड़ा अधिक) दक्षिण भारत में है. यहां तक कि उत्तरी कर्नाटक में स्थित यह क्षमता भी दक्षिण महाराष्ट्र के बाजार का पेट भरती है. इस प्रकार, दक्षिण भारत विकास के लिए एक विशाल अवसर प्रदान करता है.
दूसरा सबसे अहम कारण यह भी है कि दक्षिण में कई प्लेयर्स फाइनेंशियल स्ट्रेच्ड हैं. वे पिछले एक दशक से हैवी सरप्लस से जूझ रहे हैं. इस रीजन में ऑपरेशनल कैपेसिटी 150 मिलियन टन है लेकिन महाराष्ट्र और पूर्वी क्षेत्र में 15 मिलियन टन की शिपिंग के बाद खपत 60 फीसदी औसत क्षमता उपयोग के साथ लगभग 80 मिलियन टन है. जिसकी वजह से सीमेंट को उत्तर, पूर्व या पश्चिमी क्षेत्रों में सब्सिडी पर बेचा जाता है.
जियो पॉलिटिकल टेंशन की वजह से कोयले और ईंधन की कीमतों में इजाफा देखने को मिला. इंडिया सीमेंट्स ने 2022-23 की दूसरी तिमाही में 113.26 करोड़ रुपये का नेट लॉस पोस्ट किया. श्रीनिवासन ने कहा कि नुकसान अब तक के इतिहास में सबसे ज्यादा है. प्रबंध निदेशक, पीआर वेंकटराम राजा ने विश्लेषकों को बताया कि EBITDA (ब्याज, कर, मूल्यह्रास और परिशोधन से पहले की कमाई) 582 रुपये प्रति टन आठ वर्षों में सबसे कम देखने को मिली. ऐसी ही कहानी दूसरी कंपनियों की भी देखने को मिली है.
साउथ के प्लेयर्स को सबसे बड़ी चिंता अडानी के धन जुटाने की क्षमता से है. इसका उदाहरण हम होल्सिम डील के रूप में देख सकते हैं. अडानी ने शुरूआत में 6.4 बिलियन डॉलर की बिड दी थी, जिसके बाद JSW ग्रुप ने 7 बिलियन डॉलर बोली लगाई. लेकिन जिस गति से अडानी ने धन जुटाया, उसकी वजह से यह डील हो गई.
खास बात तो ये है कि अडानी अपनी इच्छित क्षमता हासिल करने के लिए प्रीमियम पर भुगतान करने को तैयार है. होल्सिम के लिए उनका 161 डॉलर प्रति टन का भुगतान 2020 में निरमा ग्रुप द्वारा इमामी सीमेंट लिमिटेड के लिए भुगतान किए गए 90 डॉलर और 2018 में सेंचुरी टेक्सटाइल्स एंड इंडस्ट्रीज लिमिटेड के सीमेंट व्यवसाय के लिए अल्ट्राटेक द्वारा किए गए 100 डॉलर से अधिक है.
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