नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयुक्त की नियुक्ति पर बड़ा दखल दिया है. चुनाव आयुक्त के तौर पर अरुण गोयल की नियुक्ति संबंधी फाइल मांगी है. कोर्ट ने कहा है कि सुनवाई शुरू होने के तीन दिन के भीतर नियुक्ति हो गई. नियुक्ति को लेकर अर्जी दाखिल करने के बाद ये नियुक्ति की गई है. हम जानना चाहते हैं कि नियुक्ति के लिए क्या प्रक्रिया अपनाई गई. अगर ये नियुक्ति कानूनी है तो फिर घबराने की जरूरत नहीं है. उचित होता अगर अदालत की सुनवाई के दौरान नियुक्ति ना होती.
दरअसल, पंजाब कैडर के रिटायर्ड आईएएस अधिकारी अरुण गोयल को चुनाव आयुक्त नियुक्त किए जाने पर सुप्रीम कोर्ट ने सवाल उठाते हुए अपने टिप्पणी में कहा है कि हम चाहते हैं कि चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति की प्रक्रिया पारदर्शी हो. जस्टिस अजय रस्तोगी ने टिप्पणी की कि हम यह नहीं कह रहे कि यह प्रक्रिया गलत है, लेकिन प्रक्रिया पारदर्शी होनी चाहिए. आप (सरकार) हमें वह मैकेनिज्म बताइए जिससे चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति की जाती है. दो ही दिन पहले ही आपने एक चुनाव आयुक्त को नियुक्त किया है.
AG ने पूछा- अदालत को कैबिनेट पर भरोसा नहीं?
वहीं केंद्र सरकार ने मुख्य चुनाव आयुक्त की नियुक्ति के लिए कॉलेजियम जैसी व्यवस्था कायम करने की मांग वाली याचिका का विरोध किया है. सुप्रीम कोर्ट ने इस दौरान कहा कि हम पूछ रहे हैं कि हमें वह तंत्र दिखाएं, जिसे आप नियुक्ति में लागू करते हैं. आपने अभी 2 दिन पहले किसी को चुनाव आयुक्त के रूप में नियुक्त किया है. यह याद होना चाहिए. हमें दिखाओ. हमने आपको कल कहा था. सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी पर अटॉर्नी जनरल ने कहा कि तो क्या अदालत कह रही है कि मंत्रिपरिषद पर भरोसा नहीं है. जस्टिस रस्तोगी ने कहा नहीं, हम अपनी संतुष्टि के लिए कह रहे हैं कि आपने दो दिन पहले नियुक्ति में जो मैकेनिज्म अपनाया था, वह हमें दिखाइए.
‘क्या हम राष्ट्रपति या मंत्रिपरिषद को हटा देंगे’
संविधान पीठ से केंद्र की ओर से एएसजी बलबीर सिंह ने कहा कि मामला यह नहीं है कि किसी अक्षम व्यक्ति को नियुक्त किया गया है. वास्तव में चुनाव आयोग ने पूरी तरह से ठीक काम किया है. कोई विशिष्ट आरोप मौजूद नहीं है. ऐसा नहीं है कि अराजकता है. ऐसा नहीं है कि चुनाव प्रक्रिया में भागीदारी के मामले में लोकतांत्रिक प्रक्रिया खतरे में है. आज एक प्रक्रिया है जो काम कर रही है. कुछ गलत हुआ, ऐसा कोई विशिष्ट उदाहरण नहीं पेश किया गया है. अब अगर हम कोई वैकल्पिक व्यवस्था लाते हैं तो क्या हम राष्ट्रपति या मंत्रिपरिषद को हटा देंगे.
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