नई दिल्ली । मोरबी पुल हादसे में (In Morbi Bridge Accident) सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने कहा कि उच्च न्यायालय (High Court) एक नियामक तंत्र (A Regulatory Mechanism) सुनिश्चित करे (Should Ensure), ताकि ऐसी घटनाएं दोबारा न हों (So that Such Incidents do not Recur) ।
सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात उच्च न्यायालय से कहा कि जांच के विभिन्न पहलुओं को सुनिश्चित करने के लिए समय-समय पर मामले का स्वत: संज्ञान लिया जाए । मामले में जवाबदेही तय करने और पीड़ितों के लिए पर्याप्त मुआवजे का इंतजाम किया जाए। प्रधान न्यायाधीश डी. वाई. चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति हिमा कोहली की पीठ ने कहा कि उच्च न्यायालय लगभग साप्ताहिक आधार पर मामले के विभिन्न पहलुओं की निगरानी कर रहा है और कई पहलुओं पर राज्य सरकार और नगर पालिका के अधिकारियों से पूछताछ की आवश्यकता होगी।
घटना में अपने भाई और भाभी को खोने वाले एक याचिकाकर्ता का प्रतिनिधित्व करने वाले वरिष्ठ अधिवक्ता ने मामले में कुछ मुद्दे उठाए। उन्होंने कहा कि इस मामले की एक स्वतंत्र जांच होनी चाहिए, नगर पालिका के अधिकारियों की जिम्मेदारी तय करने की जरूरत है, साथ ही यह सुनिश्चित करने की आवश्यकता है कि जो एजेंसी पुल का रखरखाव कर रही थी और उसके प्रबंधन को जवाबदेह ठहराया जाए और त्रासदी में जान गंवाने वालों के वारिसों को उचित मुआवजा दिया जाए। शीर्ष अदालत ने कहा कि उच्च न्यायालय को याचिकाकर्ता द्वारा उठाए गए पहलुओं पर विचार करना चाहिए।
गुजरात में मोरबी पुल ढहने की घटना की जांच के लिए एक न्यायिक आयोग के गठन की मांग वाली जनहित याचिका दायर करने वाले वकील विशाल तिवारी ने पीठ से इस मामले में एक आयोग नियुक्त करने का अनुरोध किया। मुख्य न्यायाधीश ने जवाब दिया कि आयोग मामले को ठंडे बस्ते में डाल देगा, मामले को न्यायाधीश देखेंगे।
सुनवाई का समापन करते हुए पीठ ने कहा कि उच्च न्यायालय की खंडपीठ पहले ही स्वत: संज्ञान लेते हुए मामले की सुनवाई कर रही है। शीर्ष अदालत ने याचिकाकतार्ओं को अपने मुद्दों को उठाने के लिए उच्च न्यायालय जाने के लिए कहा। सुप्रीम कोर्ट इस घटना की जांच के लिए एक न्यायिक आयोग के गठन की मांग वाली याचिका पर सुनवाई के लिए एक नवंबर को राजी हो गया था।
भारत के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश यूयू ललित की अध्यक्षता वाली पीठ के समक्ष तिवारी द्वारा याचिका का उल्लेख किया गया था। तिवारी ने शीर्ष अदालत के समक्ष दलील दी कि वह एक न्यायिक जांच आयोग की मांग कर रहे हैं। उनकी याचिका में कहा गया है कि यह घटना सरकारी अधिकारियों की लापरवाही व उनकी विफलता को दर्शाता है। इसमें कहा गया है कि एक दशक में देश में कुप्रबंधन, ड्यूटी में चूक और रखरखाव में लापरवाही के कारण कई घटनाएं हुई हैं। याचिका में कहा गया है कि पुल के ढहने के समय पुल पर क्षमता से बहुत अधिक लोग थे। पुल को फिर से खोलने से पहले निजी ऑपरेटर द्वारा कोई फिटनेस प्रमाणपत्र भी नहीं लिया गया था। गौरतलब है कि 30 अक्टूबर को हुए मोरबी पुल हादसे में 141 लोगों की मौत हो गई थी।
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