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    राजीव गांधी हत्याकांड: क्‍या फिर जेल जाएंगे दोषी? इस कोर्ट में हो सकती है पुर्नविचार याचिका पर सुनवाई

  • November 21, 2022

    नई दिल्‍ली। राजीव गांधी हत्याकांड (Rajiv Gandhi assassination) के छह दोषियों को रिहा करने के 11 नवंबर के आदेश के खिलाफ केंद्र की पुनर्विचार याचिका पर सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) जल्द सुनवाई करेगा। आपराधिक मामला होने की वजह से प्रबल संभावना है कि इस याचिका को खुली अदालत (open court) में सुना जाएगा। सामान्यत समीक्षा याचिकाओं को सर्कुलेशन के जरिये जज चेंबर में सुनते हैं और बिना नोटिस के फैसला कर देते हैं।

    यह मामला खुली अदालत में आया तो पक्षों को नोटिस जारी किया जाएगा। सभी को सुनने के बाद कोर्ट फैसला लेगा। सुप्रीम कोर्ट में समीक्षा याचिकाओं की सफलता दर बहुत ही कम 0.1 फीसदी है। अनुच्छेद 137 तथा अनुच्छेद 145 के तहत सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) अपने द्वारा सुनाए गए फैसलों की समीक्षा करता है। वर्ष 1975 में दिए गए फैसले के अनुसार सुप्रीम कोर्ट तीन आधारों पर अपने फैसलों के खिलाफ समीक्षा याचिकाओं को स्वीकार करता है।


    विचार योग्य नहीं
    तमिलनाडु सरकार (Government of Tamil Nadu) के एएजी अमित आनंद तिवारी ने कहा है कि केंद्र की यह समीक्षा याचिका विचार योग्य नहीं है। मामले में सुनवाई के दौरान केंद्र के वकील मौजूद ही नहीं थे और एक बार मामले को इस बात पर स्थगित भी किया गया था कि केंद्र के वकील कोर्ट में नहीं हैं। उन्हें नहीं लगता कि कोर्ट इस याचिका को स्वीकार करेगा।

    क्या था आदेश
    जस्टिस बीआर गवई व बीवी नागरत्ना की पीठ ने मई 2022 के आदेश के आलोक में राजीव गांधी हत्याकांड के छह दोषियों को रिहा करने का आदेश दिया था। मई के आदेश में तीन जजों की पीठ ने दोषी एजी पेरारीवलन को संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत असाधारण शक्तियों का प्रयोग करते हुए रिहा करने का आदेश दे दिया था।

    कोर्ट ने कहा था राज्यपाल ने उनकी क्षमा याचिका पर फैसला लेने में ढाई वर्ष से ज्यादा समय गया है जिससे वह रिहाई का हकदार है। पेरारीवेलन के फैसले को आधार बनाते हुए दो जजों की पीठ ने 11 नवंबर शेष छह दोषियों को रिहाई का आदेश दे दिया।

    प्रक्रियात्मक भूल का मुद्दा
    इस मामले में केंद्र सरकार ने प्रक्रियात्मक भूलों को उठाया है। कहा कि सजा माफी की मांग कर रहे दोषियों ने केंद्र को पक्ष नहीं बनाया। इसके चलते केस उसके बिना पक्ष बने ही निर्णित किया गया है। यह नैसर्गिक न्याय के सिद्धांत का उल्लंघन है।

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