नई दिल्ली। देश के 50वें मुख्य न्यायाधीश डॉ धनंजय यशवंत चंद्रचूड़ (Chief Justice Dr Dhananjay Yashwant Chandrachud) पहले ऐसे CJI बनेंगे, जिनके पिता भी देश के मुख्य न्यायाधीश रह चुके हैं. न्यायपालिका के इतिहास (history of judiciary) में पहली बार पिता- पुत्र की जोड़ी होगी, जिन्होंने देश के मुख्य न्यायाधीश के महिमामय पद को सुशोभित किया है. लेकिन कानून और न्याय शास्त्र (law and jurisprudence) को समझने का उनका अलग नजरिया है. यही वजह है कि डी वाई चंद्रचूड़ ने रिव्यू के लिए आई याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए दो बार अपने पिता जस्टिस वाईवी चंद्रचूड़ के फैसलों को ही पलटा.
निजता के अधिकार को संविधान के तहत मौलिक अधिकार (Fundamental Rights) घोषित करने वाला सुप्रीम कोर्ट के नौ जजों की संविधान पीठ का फैसला एक अनोखे कारण के लिए ऐतिहासिक था. लेकिन जब वो फैसला सुप्रीम कोर्ट में रिव्यू के लिए आया तो जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ ने आपातकाल (emergency) के दौरान दिए गए उस प्रसिद्ध ADM जबलपुर मामले में अपने पिता वाईवी चंद्रचूड़ के लिखे फैसले को पलट दिया था.
पलटा था आपातकाल के दौरान का फैसला
दरअसल 28 अप्रैल, 1976 को जस्टिस वाई वी चंद्रचूड़ पांच- जजों की संविधान पीठ का हिस्सा थे. उस पीठ ने 4:1 के बहुमत से फैसला सुनाया था कि आपातकाल के दौरान सभी मौलिक अधिकार निलंबित हो जाते हैं. नागरिकों को अपने अधिकारों की सुरक्षा के लिए संवैधानिक अदालतों से संपर्क करने का अधिकार नहीं है. इसके 41 साल बाद, उनके बेटे और सुप्रीम कोर्ट के जज जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ ने फैसले को खारिज करते हुए कहा कि एडीएम जबलपुर वाले मामले में बहुमत बनाने वाले सभी चार जजों के दिए फैसले में गंभीर त्रुटियां हैं. एडीएम जबलपुर के फैसले द्वारा पैदा की गई अधिकांश समस्याओं को 44 वें संविधान संशोधन द्वारा ठीक कर दिया गया था.
जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ ने उस मामले में जस्टिस एच आर खन्ना द्वारा दिए गए अल्पसंख्यक फैसले (minority verdict) को सही ठहराते हुए कहा था कि जस्टिस खन्ना द्वारा लिए गए विचार को स्वीकार किया जाना चाहिए. उनके विचारों की ताकत और इसके दृढ़ विश्वास के साहस के लिए सम्मान में स्वीकार किया जाना चाहिए. जस्टिस खन्ना का स्पष्ट रूप से यह मानना सही था कि संविधान के तहत जीवन के अधिकार और व्यक्तिगत स्वतंत्रता की मान्यता इसके अलावा उस अधिकार के अस्तित्व को नकारती नहीं है और न ही यह एक गलत धारणा हो सकती है कि संविधान को अपनाने में भारत के लोगों ने मानव व्यक्तित्व के सबसे कीमती पहलू जीवन और स्वतंत्रता को उस राज्य को सौंप दिया, जिसकी दया पर ये अधिकार निर्भर होंगे.
व्यभिचार पर पिता-पुत्र की अलग राय
दूसरे व्याभिचार कानून मामले में भी जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और उनके पिता, भारत के पूर्व CJI वाई वी चंद्रचूड़ शामिल थे. साल 1985 में, तत्कालीन CJI वाई वी चंद्रचूड़ ने जस्टिस आरएस पाठक और एएन सेन के साथ धारा 497 की वैधता को बरकरार रखा. उस फैसले के भी 33 साल बाद उनके बेटे जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ ने पलट दिया. इस मामले में उन्होंने कहा कि हमें अपने फैसलों को आज के समय के हिसाब से प्रासंगिक बनाना चाहिए. कामकाजी महिलाओं के उदाहरण देखने को मिलते हैं, जो घर की देखभाल करती हैं, उनके पतियों द्वारा मारपीट की जाती है, जो कमाते नहीं हैं.
वह तलाक चाहती है लेकिन यह मामला सालों से कोर्ट में लंबित है. अगर वह किसी दूसरे पुरुष में प्यार, स्नेह और सांत्वना ढूंढती है, तो क्या वह इससे वंचित रह सकती है. उन्होंने लिखा कि अक्सर, व्यभिचार तब होता है जब शादी पहले ही टूट चुकी होती है और युगल अलग रह रहे होते हैं. यदि उनमें से कोई भी किसी अन्य व्यक्ति के साथ यौन संबंध रखता है, तो क्या उसे धारा 497 के तहत दंडित किया जाना चाहिए? व्यभिचार में कानून पितृसत्ता का एक संहिताबद्ध नियम है. यौन स्वायत्तता के सम्मान पर जोर दिया जाना चाहिए. विवाह स्वायत्तता की सीमा को संरक्षित नहीं करता है. धारा 497 विवाह में महिला की अधीनस्थ प्रकृति को अपराध करता है.
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