नई दिल्ली: सांसद और विधायक कई मामलों में अदालत से दोषी करार दिए जाने और सजा पाने के बाद अपनी सदस्यता खो देते हैं. सजा की अवधि पूरी करने के बाद 6 वर्ष तक चुनाव लड़ने के लिए अयोग्य भी होते हैं. सवाल उठता है कि क्या किसी मामले में दोष सिद्धि के बाद सिर्फ 2 साल से अधिक की सजा पाने पर ही सांसद और विधायक की सदस्यता खत्म होती है और वह 6 साल तक चुनाव लड़ने के लिए अयोग्य हो जाता है? ऐसा नहीं है. दरअसल, कुछ मामलों में सिर्फ दोषी पाए जाने और फाइन देकर छूट जाने के बाद भी सांसद और विधायक की सदस्यता खत्म हो जाती है.
जनप्रतिनिधित्व कानून 1951 की धारा 8 में दोषी नेताओं, सांसदों और विधायकों को चुनाव लड़ने से रोकने का प्रावधान है. इस अधिनियम की धारा 8(1) के अंतर्गत प्रावधान है कि यदि सांसद या विधायक बलात्कार, अस्पृश्यता, विदेशी मुद्रा विनियमन अधिनियम के उल्लंघन; धर्म, भाषा या क्षेत्र के आधार पर शत्रुता पैदा करने, भारतीय संविधान का अपमान करने, प्रतिबंधित वस्तुओं का आयात या निर्यात करने, आतंकवादी गतिविधियों में शामिल होने जैसे अपराधों में लिप्त होता है, तो उसे इस धारा के अंतर्गत अयोग्य माना जाएगा और कोर्ट की तरफ से सिर्फ हर्जाना या जेल की सजा होने पर वह अपनी संसद या विधानसभा की सदस्यता गंवा देगा और 6 वर्ष के लिए अयोग्य घोषित कर दिया जाएगा यानी चुनाव नहीं लड़ सकेगा.
इस अधिनियम की धारा 8(2) में प्रावधान है की कालाबाजारी, मुनाफाखोरी, मिलावटखोरी और दहेज से जुड़े मामलों में 6 महीने से अधिक की सजा होने पर विधायक या सांसद अपनी सदस्यता गंवा देगा और सजा की अवधि पूरी करने के बाद चुनाव लड़ने के लिए 6 वर्ष तक अयोग्य रहेगा. इस अधिनियम की धारा 8(3) में प्रावधान है कि किसी भी अन्य अपराध के लिए दोषी ठहराए जाने वाले किसी भी विधायिका सदस्य को यदि 2 वर्ष से अधिक के कारावास की सजा सुनाई जाती है, तो उसे दोषी ठहराए जाने की तिथि से आयोग्य माना जाएगा. ऐसे व्यक्ति को सजा पूरी किए जाने की तिथि से 6 वर्ष तक चुनाव लड़ने के लिए अयोग्य माना जाएगा. यानी साफ है कि बहुत मामलों में सिर्फ दोषी पाए जाने के साथ ही सांसद और विधायक की सदस्यता खत्म होने का प्रावधान है और 6 वर्ष के लिए चुनाव लड़ने से अयोग्य होने का प्रावधान है.
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