बेंगलुरु । भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) द्वारा 2009 में लॉन्च किया गया रिसैट-2 (RISAT-2) उपग्रह ने संभावित प्रभाव बिंदु पर पृथ्वी के वायुमंडल (Atmosphere of Earth) में अनियंत्रित रूप से साढ़े 13 साल बाद फिर से प्रवेश किया। इसरो ने कहा कि केवल 300 किलोग्राम वजन के उपग्रह (Satellite) ने 30 अक्टूबर को जकार्ता के पास हिंद महासागर में संभावित प्रभाव बिंदु पर पृथ्वी के वायुमंडल में अनियंत्रित होने के बाद फिर से प्रवेश किया।
रिसैट- 2 (रडार इमेजिंग सैटेलाइट-2) उपग्रह को शुरुआती स्तर पर चार साल के लिए डिजाइन किया गया था और इसके लिए सिर्फ 30 किलोग्राम ईंधन भरा गया था। राष्ट्रीय अंतरिक्ष एजेंसी मुख्यालय ने यहां बताया कि इसरो में अंतरिक्ष यान संचालन दल द्वारा कक्षा के उचित रख-रखाव और मिशन योजना के साथ ईंधन के किफायती उपयोग से रिसैट-2 ने 13 वर्षों के लिए बहुत उपयोगी पेलोड डाटा प्रदान किया। इसके वायुमंडल में प्रवेश के बाद से, विभिन्न अंतरिक्ष अनुप्रयोगों के लिए रिसैट-2 की रडार पेलोड सेवाएं प्रदान की गईं।
इसरो ने कहा कि वायुमंडल में फिर से प्रवेश करने के बाद उपग्रह में ईंधन नहीं बचा था। इसलिए ईंधन से कोई संदूषण या विस्फोट होने की उम्मीद नहीं है। वैज्ञानिकों के अध्ययनों ने पुष्टि की है कि एयरो-थर्मल विखंडन के कारण उत्पन्न टुकड़े वायुमंडल में फिर से प्रवेश करने पर जल जाएंगे और इसका कोई भी टुकड़ा पृथ्वी पर किसी तरह का कोई नुकसान नहीं पहुंचाएगा।
इसरो ने कहा कि “रिसैट-2 एक कुशल और श्रेष्ठ तरीके से अंतरिक्ष यान कक्षीय संचालन करने की इसरो की क्षमता का एक स्पष्ट उदाहरण है। जैसा कि रिसैट-2 ने साढ़े 13 वर्षों के भीतर पृथ्वी के वायुमंडल में फिर से प्रवेश किया, इसने अंतरिक्ष मलबे के लिए सभी आवश्यक अंतरराष्ट्रीय शमन दिशानिर्देशों का अनुपालन किया है, जो बाहरी अंतरिक्ष की दीर्घकालिक स्थिरता की दिशा में भी इसरो की प्रतिबद्धता को दर्शाता है।
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