ग्वालियर। मध्यप्रदेश (Madhya Pradesh) भारत का ह्रदय स्थल कहा जाता है। ग्वालियर जिला (Gwalior District) एक ऐतिहासिक नगरी है। यहां के भव्य दुर्ग की गाथा विश्व-विख्यात है। इतना ही नहीं आजादी के बाद भी ग्वालियर ही सबसे बड़ी रियासत थी, जो कि उस समय के 25 राजाओं को शामिल कर बनाई गई थी और इसे मध्यभारत का नाम दिया गया था। इसमें मालवा-बुंदेलखंड और छत्तीसगढ़ आदि शामिल थे। इसकी राजधानी ग्वालियर (capital gwalior) को ही बनाया गया था, लेकिन इसके बाद जब 1 नवंबर 1956 को प्रदेश का पुर्नगठन हुआ तो उस समय ग्वालियर को राजधानी न बनाकर भोपाल को प्रदेश की राजधानी (Bhopal is the capital of the state) बनाया गया। आखिर ऐसा क्या हुआ, जिसके कारण ग्वालियर को राजधानी नहीं बनाया गया, आइए जानते हैं।
आपको बता दें कि देश की आजादी के बाद जब मध्यभारत गठन हुआ तो इस समय विधानसभा का आयोजन ग्वालियर के मोतीमहल में ही किया जाता था। इतना ही नहीं अधिकांश प्रशासनिक अधिकारियों और मंत्रियों के बंगले ग्वालियर की गांधी रोड पर और दफ्तर गोरखी में ही संचालित थे। वहीं, दिल्ली से भी नजदीकी होने के कारण तत्कालीन निर्णय ग्वालियर को ही प्रदेश की राजधानी बनाने का निर्णय लिया गया था। लेकिन दो राजपरिवारों के विवाद के चलते भोपाल को राजधानी बना दिया गया।
इतिहासविद माता प्रसाद शुक्ला ने इस विषय पर प्रकाश डालते हुए बताया, जब मध्यभारत का गठन हुआ तो उस समय ग्वालियर को राजधानी बनाने को लेकर ग्वालियर-इंदौर के तत्कालीन राजपरिवारों के बीच कई बार विवाद की स्थिति बन जाती थी। ग्वालियर का राजपरिवार और उनके समयर्थक तो चाहते थे कि ग्वालियर को ही प्रदेश की राजधानी बनाया जाए। लेकिन यही स्थिति इंदौर में भी बनी हुई थी, जिसके चलते बीच का रास्ता निकाला गया, जिसमें यह निर्णय हुआ कि सात महीने तो ग्वालियर प्रदेश की राजधानी रहेगी और बाकी के पांच महीने इंदौर को राजधानी के सभी दायित्व संभालने का मौका दिया जाएगा।
यह व्यवस्था कुछ समय तक तो चली, लेकिन आए दिन विवाद बढ़ने लगा, जिसके चलते प्रदेश के विकास में भी परेशानी आने लगी। इसको लेकर तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने वल्लभ भाई पटेल को भेजा। वहीं डॉ. शंकर दयाल शर्मा जो कि उस समय वरिष्ठ राजनेताओ में थे। साथ ही प्रधानमंत्री के नजदीकी भी माने जाते थे। उन्होंने विचार दिया कि दोनों के मध्य में भोपाल है, इसे विकसित कर इसे ही राजधानी क्यों न बना दिया जाए, जो कि प्रधानमंत्री को सही भी लगा। इस तरह भोपाल को प्रदेश की राजधानी बनाया गया।
ग्वालियर के राजधानी न बनने के बीच क्या अटकलें आईं, इस विषय पर वरिष्ठ जानकार देवश्री माली से बातचीत हुई तो उन्होंने बताया कि इंदौर-ग्वालियर के आपसी मतभेद तो वजह थे ही। इसके साथ ही कई अन्य वजहें भी थीं। उन्होंने बताया कि उस समय मध्यप्रदेश देश का सबसे बड़ा राज्य माना जाता था, जिसके चलते ग्वालियर की अन्य शहरों से दूरी भी बहुत अधिक थी, जिसके चलते ओवर नाइट लोग नहीं पहुंच पा रहे थे और उस समय इतने परिपक्व साधन भी नहीं हुआ करते थे।
इसके अलावा उन दिनों जो लोग नहीं चाहते थे कि ग्वालियर राजधानी बने, उन्होंने एक विरोधभाषी चर्चाओं का बाजार गर्म कर रखा था कि ग्वालियर ही वो जगह है जहां से महात्मा गांधी की हत्या के आरोपी नाथूराम गोडसे ने बंदूक खरीदी और उसे चलाने की ट्रेनिंग भी ली थी। ऐसे स्थान को राजधानी कैसे बनाया जा सकता है। इसी तरह की चर्चाओं और कारणों के चलते ग्वालियर प्रदेश की राजधानी होने के गौरव से वंचित रह गया।
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